धार ने रचा इतिहास: लिंगानुपात में बेटियों का पलड़ा भारी, अब माता-पिता की पहली पसंद बन रहीं बेटियां


NFHS-5 सर्वे में धार जिले में बेटियों का अनुपात 1056 पर पहुँचा। अब बेटी को मिल रहा है पहला स्थान, भ्रूण हत्या में भी आई कमी।


आशीष यादव आशीष यादव
धार Published On :

धार जिले ने एक ऐतिहासिक सामाजिक बदलाव की ओर कदम बढ़ाते हुए राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। हाल ही में जारी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5, वर्ष 2019–21) की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि जिले में प्रति 1,000 लड़कों पर 1,056 लड़कियों का जन्म हो रहा है। यह आंकड़ा न केवल मध्यप्रदेश बल्कि देशभर में भी एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा रहा है।

 

बेटियों को लेकर बदली सोच

कुछ दशक पहले तक जहां बेटियों को बोझ समझा जाता था, आज वही बेटियां माता-पिता की प्राथमिकता बन रही हैं। भ्रूण हत्या जैसे गंभीर अपराध, जो कभी समाज की कड़वी सच्चाई हुआ करते थे, अब धार जिले में लगभग समाप्ति की ओर हैं। यह बदलाव खासतौर पर इसीलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि जिले की 80 प्रतिशत आबादी आदिवासी और जनजातीय समुदाय से आती है, जहां शिक्षा और संसाधनों की कमी के बावजूद बेटियों को विशेष दर्जा मिल रहा है।

 

स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2015–16 में जिले में प्रति 1,000 लड़कों पर 992 लड़कियों का जन्म हो रहा था। लेकिन NFHS-5 की ताजा रिपोर्ट में यह संख्या बढ़कर 1,056 पर पहुंच गई है। इस परिवर्तन को स्वास्थ्य विशेषज्ञ सामाजिक जागरूकता, शिक्षा में सुधार और सरकारी योजनाओं के सही क्रियान्वयन का परिणाम मानते हैं।

 

मतदाता आंकड़ों में भी दिखा महिला प्रभाव

पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान निर्वाचन विभाग द्वारा जारी आंकड़ों में भी इस बदलाव की झलक देखने को मिली। जिले की सात में से चार विधानसभा सीटों—सरदारपुर, कुक्षी, मनावर और बदनावर—में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक पाई गई। इससे यह स्पष्ट होता है कि महिलाएं अब न सिर्फ जन्म ले रही हैं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक निर्णयों में भी सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।

 

सामाजिक प्रतिनिधित्व और आगे की राह

धार जिले की महिलाओं ने राजनीतिक रूप से भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। जिले से केंद्रीय मंत्री सावित्री ठाकुर और विधायक नीना वर्मा जैसे चेहरे सामने आए हैं, जो न केवल महिलाओं के लिए बल्कि पूरे जिले के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

 

हालांकि, जिला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. आर.के. शिंदे का कहना है कि अभी भी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में बेटियों को और अधिक समर्थन देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, “NFHS-5 के आंकड़े उत्साहजनक हैं, लेकिन अभी 2025–26 का सर्वे जारी है। उम्मीद है कि अगले आंकड़ों में स्थिति और बेहतर होगी।”

 

शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार में सुधार की दरकार

 

शिक्षा: आज भी लड़कों की तुलना में बेटियों की शिक्षा दर कम है। उन्हें स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक सुविधाएं और प्रोत्साहन मिलना जरूरी है।

 

स्वास्थ्य: किशोरी बालिकाओं और महिलाओं को पोषण व मासिक धर्म संबंधित कई समस्याओं से गुजरना पड़ता है। जिला अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में इनके लिए विशेष सेवाएं होनी चाहिए।

 

रोजगार: सरकारी नौकरियों में महिलाओं को आरक्षण तो है, लेकिन निजी क्षेत्र में भी बेटियों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे।

 

जनसंख्या में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी

2011 की जनगणना में जिले की कुल आबादी 21.85 लाख थी, जो अब 30 लाख के पार पहुंचने की संभावना है। इसमें महिलाओं की संख्या अनुमानतः 12 से 14 लाख के बीच हो सकती है। यह जनसंख्या संतुलन भी जिले में बेटियों की बढ़ती स्थिति को स्पष्ट करता है।

 



Related