
धार जिले में विकास कार्यों को लेकर प्रशासनिक बैठकों की परंपरा वर्षों से चलती आ रही है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे उलट है। जिले के प्रभारी मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की हालिया समीक्षा बैठक ने एक बार फिर यही साबित किया कि विकास योजनाएं कागज़ों से बाहर निकल नहीं पा रही हैं। अधिकारियों की लापरवाही और विभागीय समन्वय की कमी के चलते जिले का बहुप्रचारित विकास ठहर गया है।
बैठक की शुरुआत तो जोश से हुई, लेकिन जैसे-जैसे चर्चा आगे बढ़ी, वैसे-वैसे इसकी हकीकत सामने आती गई। बदनावर विधानसभा क्षेत्र में सड़क निर्माण को लेकर दो विभाग एक-दूसरे पर जिम्मेदारी टालते दिखे। प्रभारी मंत्री विजयवर्गीय जब इस मुद्दे पर नाराज हुए, तब जाकर विभागों ने ध्यान दिया कि आखिर किसकी ज़िम्मेदारी बनती है। इसी बैठक में एसी बंद होने के चलते नेता और अधिकारी गर्मी से बेहाल हो गए, लेकिन यह स्थिति जिले की योजनाओं की हालत का प्रतीक बन गई।
समीक्षा बैठक में मंत्री विजयवर्गीय ने नालों की सफाई, मौसमी बीमारियों की रोकथाम, बायपास सड़कों के प्रस्ताव, जल पुनर्चक्रण प्रणाली और तालाबों से अतिक्रमण हटाने जैसे मुद्दों पर निर्देश तो दिए, मगर इससे पहले की बैठकों में दिए गए आदेशों की तरह ही, इनका क्रियान्वयन अधर में लटका रहने की आशंका है।
बैठक में धार उद्वहन माइक्रो सिंचाई परियोजना, पीथमपुर का सिवरेज प्रोजेक्ट और 300 बेड के महिला हॉस्टल की जानकारी साझा की गई। हालांकि, इन योजनाओं का भी हाल पूर्व की परियोजनाओं जैसा न हो, यही उम्मीद की जा रही है। वहीं, जल निगम की 7 समूह जल प्रदाय योजनाओं में से अभी भी 600 से अधिक गांवों में काम अधूरा है।
बैठक में मंत्री ने विभागों का नाम तक भूल जाने की स्थिति में खुद को असहज महसूस किया। मीडिया के सामने जब उनसे पूछा गया कि किन-किन विभागों की समीक्षा की गई है, तो वे जवाब नहीं दे सके और विधायक नीना वर्मा से मदद मांगनी पड़ी। ऐसे में सवाल उठता है कि जब मंत्री ही विभागों के नाम भूल जाएं तो आम जनता की समस्याएं कैसे सुलझेंगी?
बैठक में प्रस्ताव पारित कर ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के लिए सेना और प्रधानमंत्री का धन्यवाद दिया गया, लेकिन जिले की समस्याओं के समाधान के लिए जिस सक्रियता की ज़रूरत थी, वह नदारद रही। कई जनप्रतिनिधि तबादलों को लेकर मंत्री के सामने आवेदन लेकर पहुंचे, जिससे विकास की बजाय व्यक्तिगत हितों पर अधिक जोर दिखाई दिया।