
मानसून के चलते दो महीने से रुका नीलगाय पकड़ने का अभियान अब फिर से शुरू हो गया है। यह अभियान पीथमपुर स्थित ऑटो टेस्टिंग ट्रैक (नेट्रेक्स) पर चलाया जा रहा है, जहां नीलगायों की बढ़ती संख्या वाहन परीक्षण के लिए बड़ी बाधा बन गई थी।
मानसून के कारण रोक, अब फिर शुरुआत
वन विभाग ने मई 2025 में नीलगाय पकड़ने का पहला चरण शुरू किया था, जिसमें 53 नीलगायें पकड़ी गईं और उन्हें गांधी सागर अभयारण्य में छोड़ा गया। मानसून शुरू होने के बाद यह कार्य रोक दिया गया था। अब 12 अगस्त से फिर से अभियान शुरू किया गया है। पहले दिन किसी नीलगाय को पकड़ने में सफलता नहीं मिली।
डीएफओ का निरीक्षण
नवनियुक्त डीएफओ विजयानतम ने टीआर में जाकर अभियान की व्यवस्था का निरीक्षण किया और कर्मचारियों से चर्चा की। इस दौरान नेट्रेक्स के स्टाफ से भी मुलाकात कर नीलगाय पकड़ने की रणनीति पर विचार किया गया।
पहली बार बोमा पद्धति का इस्तेमाल
एसडीओ एसके रनशोरे ने बताया कि जिले में पहली बार बोमा पद्धति का उपयोग किया गया है, जिसमें नीलगाय को जाल की घेरेबंदी में लाकर वाहन में सुरक्षित स्थानांतरित किया जाता है। मानसून से पहले यह तकनीक सफल साबित हुई थी, लेकिन बारिश के कारण अभियान रोकना पड़ा था।
हादसों की रोकथाम के लिए जरूरी कदम
नेट्रेक्स दुनिया का पांचवां और एशिया का सबसे बड़ा हाई स्पीड ऑटो टेस्टिंग ट्रैक है, जो 1000 एकड़ क्षेत्र में फैला है और 11.3 किमी लंबा चार लेन वाला ट्रैक है। यहां वाहन 350 किमी प्रति घंटा की रफ्तार तक टेस्ट किए जाते हैं।
ट्रैक के आस-पास घना जंगल और दो बड़े तालाब हैं, जहां नीलगायों को भरपूर वनस्पति मिलती है। यह उनकी पसंदीदा जगह बन गई है, लेकिन कई बार नीलगाय अचानक ट्रैक पर आ जाती हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है और वाहन परीक्षण प्रभावित होता है।
किसानों को भी होगा लाभ
नीलगायों की वजह से आसपास के गांवों के किसानों को भी भारी नुकसान होता है। ये झुंड के रूप में खेतों में घुसकर हजारों हेक्टेयर फसलें बर्बाद कर देती हैं। पकड़ी गई नीलगायों को सुरक्षित स्थानों पर भेजने से किसानों को राहत मिलेगी। फिलहाल अनुमान है कि नेट्रेक्स परिसर में करीब 70 से अधिक नीलगायें मौजूद हैं, जिनकी संख्या समय के साथ बढ़ रही है।
अभियान में पांच जिलों की टीम
नीलगायों को पकड़ने के इस रेस्क्यू ऑपरेशन में पांच जिलों के वन विभाग के सदस्य शामिल हैं। यह अभियान आगामी दिनों में जारी रहेगा, ताकि ट्रैक पर वाहनों की टेस्टिंग निर्बाध रूप से चल सके और किसानों की फसलें भी सुरक्षित रहें।