
धार जिले में निजी स्कूलों और पुस्तक विक्रेताओं की सांठगांठ से हर साल करोड़ों रुपये का खेल खेला जा रहा है। शिक्षा का अधिकार जहां सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए, वहीं निजी संस्थानों ने इसे कारोबार बना दिया है। हर साल सत्र की शुरुआत से पहले स्कूलों द्वारा किताबों की दुकानें ‘फिक्स’ कर दी जाती हैं और पालकों को इन्हीं दुकानों से किताबें खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है।
एक दुकान, कई स्कूलों का सेटअप
जानकारी के अनुसार, जिले में लगभग 800 निजी स्कूल संचालित हो रहे हैं। इनमें से अधिकांश स्कूलों की किताबें केवल तय दुकानों पर ही मिलती हैं। शहर की करीब 10 प्रमुख दुकानों ने आपस में स्कूलों का बंटवारा कर लिया है। एक दुकान पर चार से पांच स्कूलों की किताबें उपलब्ध होती हैं। कई बड़े स्कूल जैसे कि सिटी इंटरनेशनल, दिल्ली पब्लिक, सेंट जॉर्ज, धार पब्लिक, मॉडर्न एकेडमी, पाटीदार स्कूल आदि की किताबें केवल खास दुकानों पर ही मिलती हैं। दूसरी किसी भी दुकान पर ये किताबें नहीं मिलतीं।
नर्सरी से 12वीं तक ‘लाभ’ तय
नर्सरी से लेकर 12वीं तक के बच्चों की किताबों का सेट हज़ारों रुपये में बेचा जा रहा है। जानकारी के मुताबिक, नर्सरी कक्षा के बच्चों की किताबों का सेट ₹1500 से ₹2000 तक का है, वहीं बड़ी कक्षाओं के सेट ₹4000 से ₹5000 तक बिक रहे हैं। जिले में निजी स्कूलों में करीब 80,000 बच्चे पढ़ते हैं। यदि प्रति छात्र ₹1500 का औसत खर्च जोड़ा जाए तो यह आंकड़ा ₹10 करोड़ तक पहुंचता है।
कमीशन का खेल, विभाग मौन
सूत्रों की मानें तो दुकानदार स्कूलों को मोटा कमीशन देते हैं। कुछ मामलों में यह रकम लाखों में पहुंच जाती है। एक स्कूल में यदि 1500 छात्र हैं और हर छात्र का सेट ₹1500 का है, तो कुल राशि ₹22.5 लाख बनती है। इसमें से बड़ा हिस्सा स्कूलों को कमीशन के रूप में लौटाया जाता है। शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन इस खेल पर चुप्पी साधे हुए है। कार्रवाई केवल कागजों में होती है। ज़मीनी स्तर पर किसी दुकानदार या स्कूल प्रबंधन पर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
केवी में सस्ती किताबें, आदान-प्रदान का चलन
धार के केंद्रीय विद्यालय (KV) में एनसीईआरटी पाठ्यक्रम के तहत पढ़ाई होती है। यहां पहली से पांचवीं तक की किताबों की कुल कीमत ₹250 से ₹680 तक है। इसके विपरीत, निजी स्कूलों में यही खर्च पांच गुना तक अधिक है। KV में पुराने छात्रों की किताबें नए छात्रों को दी जाती हैं, जिससे पालकों का खर्च कम होता है। लेकिन निजी स्कूलों में हर साल नया सेट अनिवार्य किया जाता है।
केंद्रीय विद्यायल और निजी स्कूल में किताबों का अंतर
उम्मीद की एक हल्की किरण
हाल ही में एसडीएम रोशनी पाटीदार द्वारा की गई कार्रवाई से थोड़ी उम्मीद जगी है। हालांकि पालकों को डर है कि यह भी सिर्फ औपचारिक कार्रवाई बनकर न रह जाए। पालक संगठनों की मांग है कि निजी स्कूलों को एनसीईआरटी की किताबें अपनाने के लिए बाध्य किया जाए और शिक्षा में पारदर्शिता लाई जाए।