निजी गरबा आयोजनों पर विवाद: परंपरा के नाम पर धंधा, सुरक्षा इंतज़ाम नदारद


धार में निजी गरबा आयोजनों को लेकर विवाद गहराया। महंगे पास, भीड़भाड़ और सुरक्षा की कमी से लोग आक्रोशित, संस्कृति के अपमान का आरोप।


आशीष यादव आशीष यादव
धार Published On :

नवरात्र के पावन पर्व पर जहां परंपरागत गरबा समितियां मां दुर्गा की आराधना और सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रख रही हैं, वहीं दूसरी ओर शहर में निजी इवेंट कंपनियां गरबा उत्सव को कमाई का साधन बना चुकी हैं। महंगे पास, भीड़भाड़ और अव्यवस्था के चलते ये आयोजन लगातार विवादों में घिरते जा रहे हैं। लोगों का आरोप है कि ऐसे आयोजन न केवल सनातन संस्कृति का अपमान कर रहे हैं, बल्कि शहर की छवि भी धूमिल कर रहे हैं।

विवाद और अफरा-तफरी

शनिवार देर रात एक निजी गार्डन में आयोजित गरबा कार्यक्रम में युवाओं के बीच कहासुनी मारपीट तक पहुंच गई। मामला इतना बढ़ा कि दोनों गुट आपस में भिड़ गए और देर तक हंगामा चलता रहा। इस दौरान महिलाओं और बच्चों में भी डर का माहौल बना। गनीमत रही कि बड़ा हादसा नहीं हुआ, मगर वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद मामला और गरमा गया। लोगों ने प्रशासन से ऐसे आयोजनों की अनुमति रद्द करने की मांग की है।

 

परंपरा से खिलवाड़

धार सहित आसपास के क्षेत्रों में प्राचीन काल से मां दुर्गा की आराधना के लिए सामूहिक गरबा का आयोजन होता आया है। मंदिर प्रांगणों और सार्वजनिक पंडालों में होने वाले इन आयोजनों में कभी विवाद या सुरक्षा संबंधी प्रश्न नहीं उठे। मगर निजी इवेंट कंपनियों द्वारा आयोजित गरबों में न तो महिला सुरक्षा पर ध्यान है, न ही भीड़ प्रबंधन की योजना। इससे पर्व की गरिमा लगातार आहत हो रही है।

 

सुरक्षा इंतज़ाम नदारद

प्रशासन जहां सार्वजनिक गरबा पंडालों पर सख्ती बरत रहा है—सीसीटीवी, फायर सेफ्टी, मेडिकल व्यवस्था और निगरानी की शर्तें अनिवार्य की गई हैं—वहीं निजी आयोजनों में ऐसे किसी नियम का पालन नहीं किया जाता। नतीजा यह है कि असामाजिक तत्वों को भीड़ का फायदा उठाने का मौका मिल रहा है।

 

महंगे पास और मुनाफाखोरी

सूत्र बताते हैं कि इन आयोजनों में प्रवेश के लिए 500 से 1000 रुपए तक के पास बेचे जा रहे हैं। हर दिन करीब एक हजार लोगों की उपस्थिति से आयोजकों को लाखों रुपए की आमदनी हो रही है। लोगों का कहना है कि धार्मिक आस्था की आड़ में यह आयोजन महज कमाई का जरिया बन गए हैं, जबकि संस्कृति और सुरक्षा से आयोजकों को कोई सरोकार नहीं है।

 

लोगों की मांग

स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि यदि प्रशासन समय रहते सख्ती नहीं बरतेगा तो पर्व की पवित्रता लगातार प्रभावित होगी। उन्होंने मांग की है कि ऐसे आयोजनों की अनुमति तत्काल रद्द कर दी जाए और जो भी आयोजन हों, वे सार्वजनिक समितियों की परंपरा के अनुरूप, सुरक्षित और पारदर्शी हों।



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