मौसम की मार से बेहाल किसान, सोयाबीन की फसल संकट में


मध्यप्रदेश में सोयाबीन किसान दोहरी मार झेल रहे हैं। बारिश और कीट प्रकोप से फसल खराब हो रही है, जबकि मंडियों में उचित भाव न मिलने से किसान आर्थिक संकट में हैं।


आशीष यादव आशीष यादव
धार Published On :

पीला सोना कहलाने वाली सोयाबीन इस बार किसानों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई। मौसम की बेरुखी, कीट प्रकोप और अब लगातार हो रही बारिश ने फसल को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है। खेतों में खड़ी सोयाबीन या तो पानी में डूबी पड़ी है या कटाई के बाद भीगकर खराब हो रही है। किसानों का कहना है कि इस बार न उत्पादन सही मिल रहा है और न ही मंडियों में उचित भाव, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और भी कमजोर हो गई है।

 

लगातार बारिश ने बढ़ाई चिंता

पिछले चार दिनों से हो रही जोरदार बारिश ने खेतों में पानी भर दिया है। निचले इलाकों में फसल लगभग बर्बाद हो चुकी है, वहीं ऊंचे क्षेत्रों में थोड़ी बहुत उम्मीद बची है। किसानों के मुताबिक अगर यही स्थिति अगले कुछ दिनों तक बनी रही तो खड़ी फसल सड़ने लगेगी और सोयाबीन की फलियों में अंकुरण हो जाएगा, जिससे पूरी उपज बर्बाद हो सकती है।

 

मंडियों में भाव नहीं मिल रहा

पहले से ही किसान सोयाबीन की कीमतों को लेकर आंदोलन कर रहे थे, मगर अब बारिश से खराब हुई उपज का दाम और भी गिर गया है। मंडियों में नए सोयाबीन की खरीदी 3000 से 3500 रुपए प्रति क्विंटल पर हो रही है, जबकि अच्छी क्वालिटी की फसल भी बमुश्किल 4000 रुपए तक बिक रही है। किसानों का कहना है कि इतनी कीमत पर तो उनकी लागत भी पूरी नहीं हो रही, जबकि बाजार में सोयाबीन तेल आसमान छू रहा है।

मजदूरी और लागत ने बढ़ाया बोझ

किसानों की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होतीं। मजदूरी और कटाई का खर्च इस बार और बढ़ गया है। गीले खेतों में कटाई करवाने के लिए मजदूर मुंह मांगी कीमत ले रहे हैं। वहीं हार्वेस्टर और अन्य संसाधनों की लागत भी अधिक हो गई है। ऐसे में किसान दोहरी मार झेल रहा है—एक तरफ उत्पादन घटा है, दूसरी ओर लागत बढ़ गई है।

खरीफ फसल प्रभावित होने के चार कारण

1. बारिश की अनियमितता – समय से न बारिश होना और अब लगातार होना।

2. कीट प्रकोप और बीमारियां – इल्ली और पीलेपन की समस्या से उत्पादन प्रभावित।

3. औसत उपज में गिरावट – महंगे बीज और खाद-पानी के बाद भी उत्पादन घटा।

4. वैरायटी पर असर – जल्दी पकने वाली किस्मों को पहले बारिश ने मारा, जबकि बाद वाली पर जाते-जाते मानसून भारी पड़ गया।

 

 

किसानों की मांग

किसानों का कहना है कि सरकार अगर समय रहते नुकसान का सर्वे कराकर उचित मुआवजा और फसल का वाजिब दाम दिलवा दे तो उनकी कुछ हद तक भरपाई हो सकती है। वरना इस बार की खरीफ फसल पूरी तरह घाटे का सौदा साबित होगी।

कुलमिलाकर सोयाबीन किसानों की रीढ़ कही जाने वाली फसल है, मगर इस बार यह किसानों के लिए संकट का कारण बन गई है। किसान कर्ज, महंगाई और बाजार की मार झेल ही रहे थे कि अब मौसम ने भी उनकी कमर तोड़ दी। ऐसे में सवाल उठता है कि जब तक किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य और प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा नहीं मिलेगी, तब तक खेती को “लाभ का धंधा” बनाने का सपना अधूरा ही रहेगा।



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