
एक ओर सरकार गरीब मजदूरों को रोज़गार देने और उनके मेहनताने को समय पर खातों में पहुंचाने की कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी ओर ज़मीनी स्तर पर वन विभाग के कुछ कर्मचारी इस उद्देश्य को ठेंगा दिखाते नजर आ रहे हैं। धार जिले के ग्राम सेमलपुरा में झाबुआ से आए मजदूरों ने आरोप लगाया है कि उनसे पौधा रोपण का काम तो करवा लिया गया, लेकिन अब उन्हें मेहनताने का भुगतान नहीं किया जा रहा है। इसके विरोध में मजदूरों ने कलेक्टर और डीएफओ को आवेदन देकर न्याय की गुहार लगाई है।
82 हजार से अधिक की मजदूरी बकाया
आवेदन के अनुसार मजदूरों ने 640 कंटूर पर 129 रुपये की दर से कुल 82,560 रुपये की मजदूरी की है। उन्होंने बताया कि इस कार्य के लिए उन्हें अपने जेब से खर्च कर संसाधन जुटाने पड़े, लेकिन जब भुगतान की बारी आई, तो उन्हें टालमटोल किया जाने लगा। आरोप है कि ब्रिड गार्ड नाकेदार विजेन्द्र बामनिया और डिप्टी रेंजर धर्मेन्द्र रघुवंशी ने मजदूरी देने से इनकार कर दिया और उल्टा धमकाते हुए कहा कि “जहां जाना हो जाओ, पैसा नहीं मिलेगा।”
पिछले विवाद से जुड़ा है विभाग का व्यवहार?
दो हफ्ते पूर्व भी धार वन परीक्षेत्र में किसान के ट्रैक्टर को जबरन उठाकर लाने और रेंजर द्वारा किसान को गाली-गलौच व बंदूक की धमकी देने का मामला सामने आया था। इसके बाद संबंधित रेंजर का तबादला शहडोल कर दिया गया। यह मामला अभी जांचाधीन है। ऐसे में वन विभाग पर लगातार उत्पीड़न और मनमानी के आरोप लगना चिंता का विषय बन गया है।
डीएफओ ने दिया जांच का आश्वासन
मामले पर जिला वन अधिकारी (DFO) अशोक कुमार सौलंकी ने बताया कि मजदूरों द्वारा आवेदन प्राप्त हुआ है। उन्होंने कहा, “मजदूरी भुगतान न होने का मामला गंभीर है। जांच की जा रही है कि मजदूरी क्यों नहीं दी गई। यदि कोई अधिकारी या कर्मचारी दोषी पाया जाता है तो उस पर कार्रवाई की जाएगी और मजदूरों को उनका हक का पैसा दिलाया जाएगा।”
सवाल उठता है – कब मिलेगा मजदूरों को हक?
जहां मजदूर सरकार की योजनाओं में भरोसा जताते हुए जंगलों में श्रम दे रहे हैं, वहीं अगर उन्हें समय पर भुगतान न मिले और ऊपर से धमकियां दी जाएं, तो यह न केवल मानवाधिकार का उल्लंघन है, बल्कि सरकार की योजनाओं पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है।
अब देखना होगा कि प्रशासन इस मामले में कितनी तेजी से कार्रवाई करता है और क्या मजदूरों को उनका मेहनताना समय पर मिल पाता है या नहीं।