पुस्तक समीक्षाः आने वाली पीढ़ियों के लिए दस्तावेजी किताब है ‘जादूनामा’


‘जादूनामा’ में जावेद अख्तर की शायरी है, तो उनकी जीवन साथी शबाना आज़मी, उनके छोटे भाई मनोचिकित्सक सलमान अख़्तर, बेटे फरहान अख़्तर और बेटी ज़ोया अख़्तर और उनसे जुड़े लखनऊ, अलीगढ़ और भोपाल के दोस्तों के इंटरव्यू भी हैं।


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अभी हाल ही में इंदौर के लेखक अरविंद मण्डलोई की बहुप्रतीक्षित पुस्तक ‘जादूनामा’ का प्रकाशन मंजुल पब्लिशिंग हाउस ने किया है, जो मशहूर स्क्रिप्ट राइटर एवं शायर जावेद अख़्तर की ज़िन्दगी एवं लेखन से जुड़े कई जाने-अनजाने पहलुओं को सामने लाती है।

जादू जावेद अख्तर का निकनेम है, और जादू से जावेद अख़्तर बनने की दिलचस्प कहानी किताब में दर्ज है। ‘जादूनामा’ पर अरविंद मण्डलोई कई साल से काम कर रहे थे और इसके लिए सामग्री जुटाने में उन्होंने अथक प्रयास किया है। इसी महीने दिल्ली में ‘जश्ने-रेख्ता’ के सालाना कार्यक्रम में ‘जादूनामा’ का लोकार्णण भी हुआ है।

किताब के सिलसिले में, यह भी दिलचस्प है कि भोपाल में 56 साल पहले जिस लॉयल बुक डिपो से जावेद अख़्तर ने मशहूर लेखक एवं फ़िल्मकार ख्वाजा अहमद अब्बास की किताब ‘इंकलाब’ खरीदी थी, उसी लॉयल बुक डिपो के मालिक विकास रखेजा के मंजुल पब्लिशिंग हाउस ने जावेद अख़्तर पर यह किताब छापी है। इस वाकये पर ‘जश्ने-रेख्ता’ में जावेद अख़्तर ने हंसते हुए टिप्पणी भी की थी कि ‘पुराना इन्वेस्टमेंट आज काम आया।’

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‘जादूनामा’ में जावेद अख़्तर की ज़िन्दगी और उनकी फ़िल्मों से जुड़े ढेरों किस्से-कहानियां हैं। इसमें उनकी शायरी है, तो उनकी जीवन साथी शबाना आज़मी, उनके छोटे भाई मनोचिकित्सक सलमान अख़्तर, बेटे फरहान अख़्तर और बेटी ज़ोया अख़्तर और उनसे जुड़े लखनऊ, अलीगढ़ और भोपाल के दोस्तों के इंटरव्यू भी हैं।

इस किताब के लिए अरविंद मण्डलोई ने फ़िल्म निर्देशक रमेश सिप्पी से लेकर करण जौहर तक के इंटरव्यू लिये हैं। इनमें से एक इंटरव्यू जावेद अख़्तर की पहली पत्नी हनी ईरानी का भी है। यह इंटरव्यू जावेद अख़्तर से अलग होने के बाद तफ़्शील से दिया गया हनी ईरानी का पहला इंटरव्यू है, जिसमें उन्होंने अपने सम्बंधों और जावेद अख़्तर से अलग होने के मसले पर साफ़गोई से बात की है।

इसके अलावा, किताब में जावेद अख़्तर के बारे में मशहूर स्क्रिप्ट राइटर सलीम खान, अमिताभ बच्चन, सुभाष घई, अनिल कपूर आदि हस्तियों के विचार भी शामिल हैं। अपने इंटरव्यू में रमेश सिप्पी ने कहते हैं कि ‘जावेद साहब का सिंगल हैंडेड कॉन्ट्रिब्यूशन बहुत अनफॉरगेटेबल है, मेरी ज़िन्दगी में भी, और  काफी लोगों की ज़िन्दगी में भी। अमिताभ बच्चन की ज़िन्दगी में भी’।

किताब का एक खास पहलू वे ऑटोग्राफ हैं, जो जावेद अख़्तर ने 10-15 वर्ष की उम्र में देश की जानी-मानी शख्सीयतों से लिए थे। इनमें जवाहरलाल नेहरू, दिलीप कुमार, साहिर लुधियानवी, कैफ़ी आज़मी, मजरूह सुल्तानपुरी, ई. एम. एस. नम्बूदरिपाद, मधुबाला, जॉनी वाकर, नीरज और प्राण सरीखी शख्सियतों के ऑटोग्राफ शामिल हैं। लेखिका पुष्पा भारती, गीतकार सुर्यभानु गुप्त और विधि विशेषज्ञ अमित दत्ता के संस्मरणों एवं लेखों में जावेद अख़्तर के व्यक्तित्व के अलग पहलू दिखते हैं।

भारत में कॉपीराइट कानून बदलने को लेकर जावेद अख़्तर ने लंबी एवं शानदार लड़ाई लड़ी है, जिसे याद करते हुए, मुबई के जाने-माने वकील अमित दत्ता ने ठीक ही कहा है कि ‘जैसे जावेद अख़्तर ने पटकथा लेखन को नए सिरे से परिभाषित करने, फ़िल्मी गीत लेखन को बुलंदियों पर पहुँचाने का काम किया है, वैसे ही उन्होंने भारत में कॉपीराइट कानून के क्षेत्र में बुनियादी परिवर्तन लाने के लिए अपना नेतृत्व प्रदान करके, फ़िल्म उद्योग की लीक से हटकर, सोच-समझ स्थापित करने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है’।

‘जादूनामा’ में जावेद अख़्तर के ग्रेट-ग्रेट ग्रैंडफादर फ़ज़ले हक़ ख़ैराबादी का जिक्र है, जिन्होंने ग़ालिब के ‘दीवान’ को एडिट किया था और जिन्हें 1857 की जंगे-आजादी में खुल कर हिस्सा लेने के कारण कालापानी की सजा हुई थी। ‘जादूनामा’ यह भी खुलासा करती है कि एक मशहूर शेर ‘न किसी के आंख का नूर हूं…..’ उनके दादा मुज़्तर ख़ैराबादी का है, न कि अंतिम मुगल शहंशाह बहादुर शाह जफ़र का, जैसाकि अभी हाल तक आम धारणा बनी हुई थी।

इस किताब में समय-समय पर दिए गए, जावेद अख़्तर के भाषणों को भी संकलित किया गया है, जिसमें विभिन्न विषयों पर जावेद अख़्तर के गंभीर एवं विचारोत्तेजक विश्लेषण सामने आते हैं। 16 वर्ष की उम्र में भोपाल के कॉलेज में आयोजित वाद-विवाद प्रतियोगिता में दिए गए पहले भाषण से लेकर इंडिया टूडे कॉन्क्लेव और सत्यजित राय मेमोरियल जैसे खास अवसरों पर दिए गए अपने बेबाक एवं सारगर्भित भाषणों में जावेद अख़्तर ने समाज, संस्कृति और सिनेमा से जुड़े ज्वलंत विषयों पर खुलकर बोला है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक दस्तावेजी एवं संग्रहणीय सामग्री है।

‘जादूनामा’ की भूमिका में अरविंद मण्डलोई कहते हैं कि ‘जावेद साहब की ज़िन्दगी समुद्र में चलते हुए जहाज की तरह है और मैंने इस किताब में उनकी ज़िन्दगी के ढेरों आयामों को गहराई से नापने की कोशिश की है।’

‘जादूनामा’ से पहले अरविंद मण्डलोई शायरी की तीन लोकप्रिय संपादित किताबें आ चुकी हैं- ‘ख्वाब के गाँव में’, ‘आवाज़ दो हम एक हैं’ और ‘साहिर की शायराना जादूगरी’। इन किताबों से प्राप्त आय का उपयोग वंचित समुदाय के बच्चों की शैक्षणिक गतिविधियों में किया जाता है।

‘जादूनामा’ के लिए कैलिग्राफी जाने-माने कैलिग्राफर अशोक दुबे ने की है और स्केच/पोर्ट्रेट सफ़दर शामी की है। किताब की लेआउट डिजाइन राज कुमार ने किया है। ‘जादूनामा’ का अंग्रेजी संस्करण भी आ चुका है; अनुवाद किया है प्रखर अनुवादक, लेखक और साहित्यिक इतिहासकार डॉ. रख्शंदा जलील ने। अंग्रेजी संस्करण के प्रकाशक भी मंजुल ही हैं।