
जल के विविध स्रोतों में तालाब, नदी और जलाशय शामिल है। इसी जलसंपदा में मछली की विविध प्रजातियां करोड़ों लोगों के लिए अन्न सुरक्षा देती है तथा मछुआरों के लिए आजीविका का आधार भी बनती है। स्थानीय मछुआरों का जल और जलसंपदा पर अधिकार सुनिश्चित हो इसके लिए शासकीय सहयोग प्राप्त होना जरूरी होता है।
आज प्राकृतिक से कहीं ज्यादा मानवनिर्मित आघात होने के कारण जल और जलसंपदा पर निर्भर मछुआरा समुदाय पर प्रतिकूल असर हो रहा है। बड़े जलाशयों में ठेकेदार द्वारा मत्स्य व्यवसाय में शोषण, भ्रष्टाचार, और मानव अधिकारों का हनन किया जा रहा है। मध्यप्रदेश राज्य मत्स्य महासंघ द्वारा 7 बङे और 19 मझौले मिलाकर कुल 26 जलाशयों का नियंत्रण किया जाता है। जिसका कुल क्षेत्रफल 2.29 लाख हेक्टेयर है।
पूर्व में राज्य मत्स्य विकास निगम को समाप्त कर “राज्य मत्स्य महासंघ” के माध्यम से कार्य का संचालन किया जाना तय हुआ था, जिसका उद्देश्य था कि जलाशय और मछुआरा विकास के लिए स्थानीय सक्रिय मछुआरा प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए समस्त गतिविधियां उनके अनुसार संचालित की जाए। परन्तु मध्यप्रदेश राज्य मत्स्य महासंघ का विगत दो दशकों से अधिक वर्षों से चुनाव नहीं हुआ है और केवल राज्य शासन से नियुक्त प्रशासक के माध्यम से कार्य संपन्न कराया जा रहा है।
प्रदेश में विविध जलाशयों के स्तर पर गठित मत्स्य सहकारी संघों का जनतांत्रिक प्रक्रिया से गठन तथा संचालित करना जरूरी है। जलाशय की ठेकेदारी व्यवस्था के खिलाफ बरगी और तवा बांध के विस्थापित मछुआरों ने 90 के दशक में जोरदार संघर्ष किया था। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने बरगी में जलाशय स्तर की गठित 54 सहकारी समितियों के फेडरेशन को जलाशय में मत्स्य उत्पादन एवं विपणन का अधिकार दिया था।फेडरेशन ने मत्स्य उत्पादन और विपणन कार्य सफलता पूर्वक संपन्न किया।
बरगी बांध विस्थापित मत्स्य उत्पादन एवं विपणन सहकारी संघ ने 1994 से 2000 तक इन 6 सालों में औसत 450 टन का मत्स्य उत्पादन प्रति वर्ष, 319.94 लाख रुपए मछुआरों को पारिश्रमिक भुगतान, 1 करोड़ 37 लाख रुपए राज्य सरकार को रायल्टी, मछुआरों बिना ब्याज के नाव जाल हेतु ऋण, लगभग 100 विस्थापितो को इस कारोबार में रोजगार आदि दिया था। परन्तु इस सफल प्रयोग को दरकिनार करते हुए सन् 2000 से राज्य सरकार ने फिर से ठेका पद्वति चालू कर दी, तब से मत्स्य उत्पादन भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। ठेकेदार तो बाजार मूल्य से करोड़ों की कमाई कर रहे हैं, जबकि मेहनतकश मछुआरों का शोषण हो रहा है।
बरगी जलाशय का मत्स्य उत्पादन 2017- 18 में 55 टन 2018- 19 में 213 टन 2019- 20 में 95 टन 2020-21 में 28 टन 2021- 22 में 114 टन 2022-23 में 211 टन मात्र रह गया है। वहीं दूसरी ओर जलाशयों में मत्स्य बीज संचय की पारदर्शी व्यवस्था नहीं होने से मत्स्य उत्पादन में भारी कमी आ गई है।जिससे मछुआरा रोजगार की तलाश में पलायन करने को बाध्य है।
3 सितम्बर 2007 को प्रदेश के मुख्य सचिव और नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के वरिष्ठ अधिकारियों ने नर्मदा घाटी के जलाशयों में ठेकेदारी प्रथा से मत्स्याखेट बंद करने का निर्देश दिया था परन्तु मत्स्य महासंघ के प्रबंधक ने मुख्य सचिव के आदेश को भी मानने से इन्कार कर दिया। इससे समझा जा सकता है कि मत्स्य महासंघ किसके हितों के लिए काम कर रहा है। विगत कई वर्षों से मत्स्य महासंघ द्वारा मछली पकड़ने की मजदूरी दर नहीं बढाया गया है।
राज्य मत्स्य महासंघ द्वारा 2000 हेक्टेयर से बङे जलाशयों में मेजर और माइनर कार्प मछली पकङने की मजदूरी क्रमशः 34 और 20 रूपये प्रति किलो तय किया हुआ है।
मछली पकड़ने का मजदूरी शासन द्वारा घोषित मूल्य बाजार भाव से बहुत ही कम है जिससे ठेकदारों की कमाई तो बढती है, परन्तु मछुआरा आर्थिक तंगहाली में है।गैर मछुआरा समुदाय के प्रभावशाली लोग प्राथमिक मछुआरा सहकारी समिति के माध्यम से अधिकतर जलाशयों पर कब्जा किये हुए हैं और उन्हें जिले के विभागीय अधिकारियों का संरक्षण भी प्राप्त है।
बाणसागर जलाशय में ठेकेदारों द्वारा बाहर से मछुआरों को लाकर काम कराया जाता है, जिससे स्थानीय मछुआरों को काम नहीं मिल पाता है। ठेकेदार के लठैतों द्वारा मछुआरों के साथ मारपीट करना आम बात है। मछुआरा अपने खाने की लिए मछली भी घर नहीं ले जा सकता है। ठेकेदार के लोग इसके लिए घेराबंदी करते हैं। जबकि 1992-93 में राज्यपाल मोहम्मद कुंवर अली खान ने मछुआरों को मत्स्याखेट का 20 प्रतिशत मछली स्वयं इस्तेमाल करने की छुट दिया था।
दूसरी ओर मध्यप्रदेश सरकार एक सैकड़ा जलाशयों में फ्लोटिंग सोलर प्लांट लगाने की तैयारी कर रही है।नर्मदा नदी पर बने ओंकारेश्वर बांध में बनाए गए फ्लोटिंग सोलर प्लांट के कारण सैकड़ों मछुआरा मत्स्याखेट से वंचित हो गये हैं और भुखमरी के कगार पर आ गये हैं।
बरगी जलाशय के 16 हजार हेक्टेयर में मत्स्याखेट कार्य किया जाता है और उसमें से 10 हजार हेक्टेयर में फ्लोटिंग सोलर प्लांट लगाया जाना प्रस्तावित है जिससे हजारों परिवारों के समक्ष आजिविका का संकट खड़ा हो जाएगा।
मत्स्याखेट की सुरक्षा के लिए नदियों को बहते रहना और प्रदूषणमुक्त रखना भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।जिससे मछली की प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाया जा सके।
एक समय नर्मदा में महाशीर मछलियों की संख्या 30 प्रतिशत हुआ करती थी। अब यह संख्या घटकर 1 प्रतिशत से भी कम रह गई है। “महाशीर साफ पानी की मछली है, जिसे बहता पानी पसंद है। बांध और पानी की अपारदर्शिता के कारण नर्मदा अब महाशीर के प्रजनन के लिए अनुकूल नहीं रही, जिससे इसकी संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है।”
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