नई शिक्षा नीतिः उद्भव विकास, समस्यायें और समाधान

hs tripathi एचएस त्रिपाठी
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डॉ एचएस त्रिपाठी

राजीव गांधी जी की सरकार के समय में तकनीकी वृद्धि और शिक्षा व्यवस्था में टेक्नोलॉजी का पाठ्यक्रम, व्यवसायिक पाठ्यक्रमों को ज्यादा जोर देते हुए शिक्षा नीति1986 बनाई गयी थी और उसका प्रभाव भी हुआ परन्तु जिस स्तर की स्किल होनी चाहिए थी उसका लक्ष्य हासिल ना हो सका यद्यपि वह नीति भी तत्समय की जरूरत थी.

पुरानी शिक्षा नीति के बाद बहुत बड़ा गैप हो गया और लगभग 34 वर्ष बाद वर्तमान नई शिक्षा नीति 2020 में नीति निर्धारकों ने आखिरकार राष्ट्रव्यापी विचार विमर्श के बाद स्वीकार किया, यद्यपि 1990 में नानम कमेटी की रिपोर्ट से पुरानी शिक्षा नीति में थोड़ा सुधार हुआ था पर वह तत्समय की परिस्थितियों के अनुसार बहुत ज्यादा कुछ बदलाव नहीं हुआ.

मोदी जी की सरकार द्वारा राष्ट्रव्यापी विचार विमर्श से एक समन्वित काफी अच्छी शिक्षा नीति सर्वसम्मति से लागू की गयी है जिसे सभी स्टेक होल्डर्स ने स्वीकार किया है. वास्तव में देश में उच्च शिक्षा प्राप्त मैन पावर स्नातकोत्तर, पीएचडी और कई प्रकार के प्रोफ़ेसनल कोर्स किये हुए हैं पर बेरोजगार इसलिए हैं क्योंकि उनके पास डिग्री तो है पर कोई भी एक स्किल नहीं है जिससे वो ज्ञान के साथ साथ रोजगार पा सके.

विदेशों की तुलना कर नीतियाँ तो बहुत अच्छी बनी पर स्किल को पहले मेंडेटरी नहीं किया गया यद्यपि कम्प्युटर को 1995 के बाद काफी बढ़ावा दिया गया उसके बाद की सूचना क्रांति ने नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी दोनों को कम्प्युटर को सीखने के लिए बाध्य किया.

नई शिक्षा नीति की सबसे बड़ी विशेषता स्किल और ज्ञान को एक समन्वित रूप में बहुत ज्यादा तवज्जो दी गयी है. इसमें प्रत्येक विधार्थी को स्नातक स्तर से ही अपने मूल विषयों के साथ साथ वैकल्पिक विषय, स्किल विषय और विशेष इंटरेस्ट के स्किल या स्पोर्ट्स का विषय को स्नातक डिग्री के साथ में सीखने और रोजगार मूलक ज्ञान प्राप्त करने में सहायता मिलेगी.

छात्र को अपनी पसंद के विषयों को चुनने की छूट दी गयी है जो अपने कोर विषय के अलावा अन्य संस्थान से स्किल प्राप्त कर स्नातक में उतने क्रेडिट जुड़वा सकता है. नई शिक्षा नीति 2020 सैद्धान्तिक रूप से देश के लिए बहुत उपयोगी है किंतु इसका ववास्तविक क्रियान्वयन अत्यंत दुरूह है क्योंकि अन्य संस्थान के क्रेडिट की समानता निर्धारित करना गुणवत्ता के साथ क्रेडिट ट्रांस्फर की स्पष्ट पॉलिसी का अभी तक अभाव है.

दूसरे एक ही समय में विषयों का अध्यापन समय सारिणी और उसे प्रभावी तरह से लागू करने में अभी समय लगेगा. एक दृष्टि में लागू कर देना और वह भी बिना पूरी तैयारी के लागू करना सिर्फ खानापूर्ति ही साबित होगी. यद्यपि यह कार्य प्रारंभ हो चुका है पर इसमें अभी 2-3 वर्ष मानक होने में लग जायेंगे.

चूँकि उच्च शिक्षा प्राप्त छात्रों का बड़ा समुदाय बिना किसी विशेष स्किल के था इसलिए स्किल के साथ स्कूल शिक्षा और उच्च शिक्षा दोनों छात्रों को योग्य होना आवश्यक था इसलिए स्किल को महत्व दिया गया. पर यह सब पेपर में तो बना दिया गया किंतु ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के स्कूल और कॉलेज में स्किल विषयों को पढ़ाने वाले विशेषज्ञ शिक्षकों का सर्वथा अभाव है.

स्किल विषयों के लिए पुस्तकों का भी सर्वथा अभाव है. दूसरा कारण छात्र अपनी समझ से कोर विषय के अलावा वैकल्पिक और स्किल कोर्स बिना ये सोचे भर देता है कि जहाँ वो पढ़ना चाहता है वहाँ उस विषय के अध्यापन की व्यवस्था है भी या नहीं और फिर वो बार बार बदलता है इसमें उस छात्र का इंटरेस्ट भी कम होता है.

इससे स्पष्ट है कि बिना किसी पूर्व तैयारी के नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को राज्यों ने लागू कर दिया यहाँ तक कि केंद्रीय विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में भी पूरी तैयारी नहीं की गयी और लागू कर दिया. यद्यपि लागू करने के इस प्रयोजन को ट्रायल एंड इरर् भी कह सकते हैं विकासशील देशों में कोई भी कार्य एक साथ हो जाए ऐसा हो नहीं पाता भले ही सरकार या स्टेक होल्डर्स ये दावे करते रहें. इसलिए प्रशासनिक अमला ऐसा सोचता है कि योजना फोर्सफुल्ली लागू कर दो फिर धीरे धीरे कमियों की पूर्ति करते रहो और यह फील्ड में दिख भी रहा है.

कर्नाटक और मध्यप्रदेश ने नई शिक्षा नीति लागू करने में काफी तत्परता दिखाई. मध्यप्रदेश ने तो स्कूल और उच्च शिक्षा के लगभग 80 % विषयों के पाठ्यक्रमों में भी विकास व बदलाव भी किया और 2021-22 सत्र से लागू भी कर दिया परन्तु छिटपुट विषयों की पुस्तकों को छोड़ दे तो अधिकांश विषयों की मानक पुस्तकें अभी तैयार नहीं हो पाई है.

यद्यपि शासन स्तर पर भरसक प्रयास जारी हैं कि सभी विषयों के साथ ही स्किल विषयों की पाठ्यक्रमों की पुस्तकें उपलब्ध हो जाएँ पर इसमें समय लगेगा अगर मानक पुस्तकें लाना है क्योंकि बाजार में अमानक पुस्तकें जल्दी आ जाती हैं जिससे स्किल का सही ज्ञान नहीं हो पाता. पुस्तकें लिखने के लिए ख्याति विशेषज्ञों का भी अभाव है.

मूल विषयों की पुस्तकों की कमी नहीं है पर पाठ्यक्रमों के हिसाब से नया डेवेलॉपमेंट किया जाना आवश्यक है. दूसरी सबसे बड़ी कमी उपलब्ध शिक्षकों की नई शिक्षा नीति के अनुसार अभी ट्रेनिंग एंड अडवांसमेंट नहीं है. स्कूल और कॉलेज शिक्षकों को भी नई शिक्षा नीति के अनुसार स्टाफ़ ट्रेनिंग मोड्युल पढ़ाये जाने चाहिए जिसका अभाव है.

तीसरा सबसे बड़ी कमी स्कूल और महाविद्यालयों विश्वविद्यालयों में नई शिक्षा नीति के स्तर का इंफ्रेस्ट्रॅक्चर विकसित होने में समय लग रहा है. 2007-08 में वार्षिक पद्धति से सेमेस्टर सिस्टम लाया गया फिर 2018-19 में फिर वापस वार्षिक सिस्टम पर लौटने लगे. शिक्षा में शॉर्ट टर्म प्रयोग अर्ध्य ज्ञान को बढ़ावा देता है कुछ भी बेहतर नहीं बन पाता.

उच्च शिक्षा में हर साल नए प्रयोग किसी भी बैच के विधार्थी उत्क्रष्ट् नहीं बन पाते एक दो अगर अपने दम पर बन भी गए तो उसका कोई असर नहीं होता. एक और बड़ी समस्या परीक्षा प्रणाली को नई शिक्षा नीति के अनुसार तैयारी होना चुनौती है, समय पर परीक्षा, और फिर स्कीम के अनुसार परीक्षा परिणाम की घोषणा और क्रेडिट ट्रांसफेर कर अंकसूचियाँ जारी करना और इसकी मानक तैयारी चल रही है.

स्किल संस्थानों, विश्वविद्यालयों महाविद्यालयों और स्कूलों के मध्य एक अंतरसंबंध होना आवश्यक है क्योंकि हर समान्य स्कूल और कॉलेज में स्किल का इंफ्रेस्ट्रॅक्चर और विशेषज्ञता तैयार करना संभव नहीं और इतना बजट भी सरकार के लिए संभव नहीं है इसलिए छात्रों से ही शुल्क के रूप में वसूली की जा सकती है जो गरीब और समान्य छात्र के लिए संभव नहीं. यह एक बड़ा अवरोधक है नई शिक्षा नीति के रास्ते में.

इस सब के बावजूद भी नई शिक्षा नीति को सफल तो बनाया ही जाना होगा. मध्य प्रदेश में अगर उच्च शिक्षा ही ले लें तो इस समय शासकीय सेक्टर में लगभग 10000 नियमित और अस्थायी शिक्षकों की संख्या होगी जिसमें से अनुभवी और स्टाफ़ ट्रेनिंग कॉलेज प्रशिक्षित की संख्या 3500 ही है शेष स्टाफ़ पी जी,या पी एच डी भर है अभी प्रशिक्षित नहीं है. दूसरी तरफ यू जी सी के मानदंडों से देखें तो पी जी के लिए शिक्षक विधार्थी अनुपात विज्ञान में 1:15, सामाजिक विषयों में 1:20, स्नातक स्तर विज्ञान में 1;30, सामाजिक विषयों में 1:50 के लगभग थोड़ा बहुत कम ज्यादा अनुपात निर्धारित है.

मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा में 11 से 13 लाख विद्यार्थियों का इनपुट है. स्नातक और पी जी दोनों को मिलाकर 1:50 /1:25का अनुपात ले लें तो भी लगभग 45000 से 50000 शिक्षक नई शिक्षा नीति के सफल संचालन के लिए चाहिए. शासकीय संस्थानों में तो फिर भी कुछ स्तर तक शिक्षक हैं पर निजी महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों का भारी अभाव है अगर हैं भी तो उनकी गुणवत्ता में प्रश्नचिंह है.

इसका सबसे बड़ा कारण समुचित पारिश्रमिक का ना मिलना और शोषण है. दूसरा शिक्षकों में भी स्किल का अभाव है क्योंकि स्कूलों की तरह कोई ट्रेनिंग कोर्स करके नहीं आते. उच्च शिक्षा में सिर्फ पी एच डी कर लेने को ही ट्रेनिंग मान लेते हैं जो बहुत गलत है.

वास्तव में जब कोई विधार्थी पी एच डी कर लेता है तब उसको मानना चाहिए कि अब नई व्यवस्था या अनुसंधान या बदलाव के लिए कदम बढ़ा सकता है यद्यपि अभी भी वो बदलाव के लिए ट्रेनिंग लेने के लिए स्वयं विधार्थी है. निर्णय लेने की क्षमता विकसित होना शेष है. इसलिए उच्च शिक्षा के लिए भी स्किल और ट्रेनिंग कोर्स होना आवश्यक है.

इस प्रकार से अगर समस्याओं को विश्लेषित कर हल निकालें तो निम्नलिखित समाधान पर विचार किया जा सकता है:

  1. 1. नई शिक्षा नीति के प्रत्येक मूल विषय और वैकल्पिक विषयों की मानक पुस्तकें उपलब्ध होना चाहिए.
  2. 2. स्किल विषयों की मानक पुस्तकें और लैब, टेक्नीशियन, प्रयोग संसाधन उपलब्ध होना चाहिए
  3. 3. अभी तक क्रेडिट ट्रांसफेर् पॉलिसी अंतर विश्वविद्यालयों और निजी और शासकीय के बीच तय नहीं हुई जिसे तत्काल बनाया जाना आवश्यक है
  4. 4. हर स्कूल हर महाविद्यालयों विश्वविद्यालयों में हर प्रकार की स्किल का इंफ्रेस्ट्रॅक्चर होना संभव नहीं इसलिए अंतर संबंध और एक्सचेंज पॉलिसी बनाया जाना आवश्यक है
  5. 5 स्किल विषयों और अन्य वैकल्पिक विषयों के शिक्षकों का भी एक्सचेंज पॉलिसी होना जरूरी है
  6. 6 ग्रामीण क्षेत्रों में स्किल विषय पढ़ाने वाले शिक्षकों का अभाव है इसलिए छात्रों की ट्रेनिंग वहाँ होनी चाहिए जहाँ सुविधा हो मात्र थ्योरी पढ़ा देने से कुछ ना होगा भले ही इसके लिए अलग से समय सारिणी और आवागमन की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएँ.
  7. 7 मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा में न्युनतम 24-25 हजार शिक्षकों की सिर्फ शासकीय सेक्टर में ही जरूरत है. कोई आवश्यक नहीं की सभी नियमित ही हो. आधे शिक्षक नियमित और आधे से ज्यादा अस्थायी रह सकते हैं. इसका एक उदाहरण देखिये मैंने स्वयं 2014 में पेनसिल्वनिया विश्वविद्यालय यू एस ए में 15 दिन प्रवास में स्टडी किया था की लगभग 45000 हजार विधार्थी के लिए 75000 शिक्षक वहाँ हैं जिसमें से मात्र 1500 शिक्षक ही नियमित जैसे है शेष सब कॉंट्रैट में कुछ वर्षों के लिए रहते है फिर या तो रेन्यु होता है या नये आ जाते हैं. पेन स्टेट यूनिवर्सिटी में 45000 विधार्थी में से 30000 के लिए डोरमेट्री भी थी और 24 घंटे लैब लाईब्रारी और संसाधन उपलब्ध थे और हर विधार्थी को कोई ना कोई स्किल आती ही है. तो जब हमारे देश में नई शिक्षा नीति 2020 इतनी वृहद बनाई गयी है तो उसकी तैयारी भी उसी स्तर की होनी चाहिए.
  8. 8 निजी सेक्टर में भी उतने ही 35 से 50 हजार शिक्षकों की आवश्यकता है क्योंकि इनकी संख्या भी कुल छात्र संख्या में शामिल है
  9. 9. हायर एडुकेशन सेलेक्शन कमिशन अलग से बनाया जाए जिससे गुणवत्ता पूर्ण शिक्षकों का चयन और ट्रेनिंग सभी महाविद्यालयों विश्वविद्यालयों और संस्थानों के लिए समय समय पर हो सके
  10. 10. अभी उच्च शिक्षा मात्र परीक्षा प्रणाली आधारित है साल भर परीक्षा ही चलती रहती है और सारे शिक्षक सरकारी फ़ाईलों और परीक्षा में ही विज़ि रहते हैं. इसलिए प्रत्येक शिक्षक को ही अपने विद्यार्थियों का परीक्षण कर समय समय पर मूल्यांकन कर अंक पढ़ायी के दौरान ही भेजते रहना चाहिए जिसका टेबुलेशन विश्वविद्यालयों के स्तर पर होता रहे और स्नातक स्तर की एक बार परीक्षा आयोजित हो उसमें विधार्थी बैठे और पास करे. कोई वर्ष की सीमा नहीं कितनी ही बार में पास करे. सिर्फ अध्यापन व्यवस्था पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए. पूरी उच्च शिक्षा परीक्षा प्रणाली बेस्ड हो गयी है जबकि इसे अध्यापन बेस्ड होना चाहिए.
  11. 11. सभी महाविद्यालयों विश्वविद्यालयों में उच्च अंक अवार्ड करने का या सबसे ज्यादा क्रेडिट और ग्रेड देने का होड़ चल रहा है. मूल्यांकन पर्सेंटाईल 99.99% तक पहुँच गया है हर विषय में जबकि किसी भी विषय का पर्सेंटाईल 100 के आसपास नहीं हो सकता. ऐसा कोई ज्ञानी छात्र विरले ही होता है कभी कभी जिसे समग्र ज्ञान हो पर तीसरा लड़का 80-100 के बीच पर्सेंटाईल में है तो ये ज्ञान का विस्तार नहीं औसत मूल्यांकन का प्रमाण है. इसमें सबसे बड़ा दोष शिक्षकों का ही है जो अध्यापन ना कर अन्य कार्य करते हैं या बाध्य किये जाते हैं और समस्या से बचाने के लिए 100 पर्सेंटाईल का औसत मूल्यांकन होता है या अल्प मूल्यांकन होता है.

 

और भी बहुत प्रश्न हैं पर नई शिक्षा नीति 2020 के प्रथम सोपान के लिए इतना ही फिर कभी अगले सोपान में क्रमशः…