निर्माणाधीन चिनकी बैराज के नज़दीक काट दिए गए सैकड़ों सागौन के पेड़, जैव विविधता पर मंडरा रहा बड़ा खतरा


इस इलाके में पशु-पक्षियों की 43 से ज्यादा प्रजापतियां हैं, मशीन से काट दिए गए सालों साल पुराने सैकड़ों सागौन के पेड़, कटाई देखकर ग्रामीण हुए रुहांसे 


ब्रजेश शर्मा ब्रजेश शर्मा
हवा-पानी Updated On :

लाखों हैक्टेयर में सिंचाई के लिए नर्मदा पर एक और बांध बन रहा है। दावा तो था कि इससे खुशहाली आएगी लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। दावों के उलट एक ओर बड़े पैमाने पर किसानों की जमीन डूब रही है तो दूसरी ओर इलाके की हरियाली भी अब खत्म हो रही है। जमीनें डूब रहीं हैं सो लकड़ी माफियाओं ने आसपास के पेड़ काटने शुरू कर दिए हैं। पिछले कुछ दिनों में नरसिंहपुर के इस इलाके में सैकड़ों पेड़ काट दिए गए। गांव वाले इसकी शिकायत कर रहे हैं लेकिन उनका आरोप वन विभाग के स्थानीय अधिकारियों पर ही है। ग्रामीण अपने इलाकों में हुई इस कटाई को देखकर भावुक हैं, उनका कहना है कि दशकों से जंगल को संवार रहे कीमती सागौन के पेड़ लोगों ने अपने लालच को पूरा करने के लिए काट डाले।

नरसिंहपुर में नर्मदा नदी पर बन रहा है चिनकी बैराज

चिनकी बैराज नाम की इस नई संरचना से दावा है कि इससे नरसिंहपुर, होशंगाबाद व रायसेन जिले में लिफ्टिंग प्रोजेक्ट के जरिए खेतों में पानी पहुंचाया जाएगा। पहुंचाने के लिए बनाए जा रहे चिनकी बैराज को लेकर प्रशासन और नेताओं के यह दावे खोखले हो रहे हैं कि चिनकी बैराज से ना तो किसानों की जमीन डूब में आ रही है और ना ही पर्यावरण को क्षति पहुंच रही है । यहां बैराज के इर्द-गिर्द बड़े पैमाने पर कई साल पुराने सागौन और फलदार पेड़ मशीनों से काट दिए गए। 400 से अधिक पेड़ों के कटने से नर्मदा किनारे यहां की जैव विविधता पर खतरा होने लगा है।

नर्मदा पर जहां चिनकी बैराज बन रहा है वहां दोनों तरफ बड़े पैमाने पर पेड़ हैं जिन्हें अब धराशायी किया जा रहा है। नर्मदा के हिरणपुर, बरमान तरफ नर्मदा किनारे एक पहाड़ी के घने जंगल में सैकड़ो सागौन के वृक्षों पर धड़ल्ले से मशीन चलाकर उन्हें धराशायी कर दिया गया। बड़े पैमाने पर यहां रातों रात सागौन की तस्करी की जा रही है । बड़ी पैमाने पर हो रही सागौन की कटाई पर वन विभाग की मिलीभगत से इंकार नहीं किया जा सकता और ग्रामीणों द्वारा बनाए जा रहे वीडियो देखने के बावजूद विभाग के बड़े अधिकारी इसे सिरे से नकार रहे हैं, उनका कहना है कि पहले तो ऐसा कुछ नहीं हुआ है और अगर कहीं हो रहा है तो वे इसकी जांच करवाएंगे।

पक्षियों के प्राकृतिक आवास हो रहे नष्टः चिनकी बैराज के आसपास पहाड़ी वन्य क्षेत्र में बड़ा जल संग्रहण क्षेत्र बनता है और इसी के चलते यहां काफी जैव विविधता है।   अब पेड़ों की कटाई से विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों के अस्तित्व पर असर है। बांध से प्रभावित वन क्षेत्र से पक्षियों के प्राकृतिक आवास प्रभावित हो रहे हैं। जहां बैराज बांध निर्माणाधीन हैं वहां नर्मदा के दोनों ओर पहाड़ी वन क्षेत्र है। इस वन क्षेत्र में पर्णपाती और स्क्रब वन हैं। जहां बांध बन रहा है वहां 14.72% वन्य क्षेत्र का हिस्सा है।  इस वन्य क्षेत्र में हुए एक अध्ययन के मुताबिक 43 प्रजातियों के पक्षी पाए जा रहे हैं, जिन के प्राकृतिक आवास हैं। अलावा इसके 10 प्रजातियों के अलग और 25 अन्य प्रजातियों के पक्षी हैं। बैराज बनने के पूर्व नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के द्वारा ही कराए गए एक अध्ययन के अनुसार 25 प्रजाति के ऐसे पक्षी हैं जो एक परिवार प्रजाति के हैं।

इसी इलाके के पिपरहा में चिनकी बहुउद्देशीय परियोजना के तहत बनाए जा रहे बैराज तरह के बांध के दोनों तरफ पहाड़ी वन क्षेत्र के बीच मेटा बेसिक चट्टानें हैं। कई चट्टानें तो 6 मीटर से अधिक लंबी चौड़ी है। इन्हें ब्लास्टिंग करके तोड़ा गया। धमाकों की आवाज के साथ-साथ मशीनरी के शोर-शराबे से अब दोनों तरफ जंगली क्षेत्र में रह रहे पक्षियों का कलरव सुनाई नहीं देता। पक्षी भी जल क्रीड़ा करते दूर तक दिखाई नहीं दे रहे l यहां धुआंधार का कलकल भी अब समाप्त हो गया है l

पिपरहा में नर्मदा जब चट्टानों के बीच से कलकल करके आवाज के साथ निकलती थी तो लोगों को यहां छोटा धुआंधार मनमोहक लगता था। पर्वत, धुआंधार और उसका सौंदर्य खत्म हो गया। यहीं कई तरह के पक्षी आकर्षण के केंद्र थे l क्षेत्र के एक समाजसेवी श्यामलाल पटेल कहते हैं कि यहां नर्मदा का प्राकृतिक सौंदर्य जिसे छोटा धुआंधार के नाम से जाना जाता था, वह खत्म हो गया।

जिन पक्षियों के प्राकृतिक आवास हैं उनमें व्हाइट प्रोटेट किंगफिशर, इंडियन रोलर, रेड वाटल्ड लैपविंग, बब्बलर, इंडियन राबिन, पाइड बुश चैट, लांग टेल्ड श्राइक, हाउस स्पैरो, ब्लैक ड्रॉन्गो, सामान्य मैना, बगुले आदि हैं। इसके अलावा जल भाग आदि के कई तरह की प्रजाति के पक्षी हैं। यहां बांध में कुल भूमि में 79.33% खेती बाड़ी की भूमि का उपयोग हो रहा है। सरकारी दावे के मुताबिक बांध ,बैराज के क्षेत्र में 757.69 हेक्टेयर भूमि निजी क्षेत्र की और 2216 .0 0 हेक्टर जमीन सरकारी है। सरकारी रिकॉर्ड में कई जगह जरुर नजूल, चरनोई या सरकारी दर्ज हो लेकिन आदिवासियों और गांव के कई लोग पीढ़ियों से परंपरागत तरीके से खेती-बाड़ी करते आ रहे हैं।

तरबूज , खरबूज ककड़ी की खेती नर्मदा किनारे रहने वाले कई ग्रामीणों के लिए चार पैसे देने का जरिया रही है। रबी व खरीफ की फसलें भी नदी के एकदम किनारे देखने को मिलती हैं। इस खेती बाड़ी की जमीन में दोमट और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी है। मध्यम कटाव वाली इस मिट्टी में नाइट्रोजन और पोटेशियम की मात्रा भी है। दोमट और बुलई प्रकृति की मिट्टी खेती-बाड़ी के लिए अच्छी उपयोगी मानी जाती है। ऐसी उपजाऊ जमीन जल ग्रहण क्षेत्र में डूब रही है यहां के कलरव करते पक्षी कठफोड़वा, जलमुर्गी, एवं अन्य जीव जंतु अब जैव विविधता के समाप्त होने के साथ ही देखने को नहीं मिलेंगे। यहां पहाड़ी पर सैकड़ो सागौन के वृक्षों को मशीन से काट जाने पर ग्रामीण बताते हैं कि बड़े पैमाने पर सागौन की तस्करी भी हो रही है पर अधिकारी बेफिक्र हैं।

यहां रहने वाले एक ग्रामीण मातवर सिंह कहते हैं कि सागौन कैसे कट गए यह बड़ा सवाल है जबकि गांव की लोग हमेशा पेड़ों को काटने से बचाते रहे हैं। ऐसा ही गुरसी गांव के ही लेखराम विश्वकर्मा कहते हैं कि यहां बड़े पैमाने पर वन विभाग के अधिकारियों ने ही जंगल कटवा दिया है लेकिन कोई शिकायत सुनने वाला नहीं । जंगल के नजदीक बसे गांव में रहने वाले ग्रामीण रामकुमार लोधी कहते हैं कि डेढ़ दो सौ पेड़ तो हाल ही में काटे गए हैं । यह कैसे काटे गए ,उन्हें मालूम नहीं।

यहीं पहाड़ी क्षेत्र में जंगल की देखभाल करने वाले चौकीदार नर्मदा प्रसाद धानक स्वीकार करते हैं कि करीब 300 पेड़ नाकेदार के कहने पर काटे गए हैं। उन्हें पूरी जानकारी नहीं है। जब विभाग का ही एक कर्मचारी 300 पेड़ काटे जाना स्वीकार कर रहा है तो यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि कितने पेड़ काट दिए गए और उनकी लकड़ी खुर्दबुर्द कर दी गई होगी । अभी भी बड़े पैमाने पर कई फुट लंबे, मोटे सागौन के दरख़्त जमीन पर पड़े हैं । इनमें वन विभाग के वकायदा नंबर भी लिखे हैं ।

जब इस मामले में जिला वन मंडल अधिकारी लवित भारती को वीडियो भेजे गए तो वह भी देखकर आश्चर्य जताया। उन्होंने कहा कि मैं टीम भेज कर चेक करवाता हूं। पेड़ों की कटाई को लेकर कोई भी अनुमति नहीं दी गई है।

पेड़ों की कटाई से दुखी होकर समाजसेवी बाबूलाल पटेल कहते हैं कि कटाई के मामले में हुए वन विभाग के अधिकारियों को ज्ञापन देंगे और दोषियों पर कार्यवाही की मांग करेंगे। कार्यवाही नहीं हुई तो डीएफओ को हटाने को लेकर वह आंदोलन करने से भी पीछे नहीं हटेंगे ।

पर्यावरणविद एवं नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ता राजकुमारसिन्हा कहते हैं कि जहां-जहां नर्मदा पर बैराज या बांध बने हैं वहां विनाश ही देखने को मिला है। बड़े पैमाने पर जंगल की कटाई यह बता रही है कि अधिकारी भी इसमें शामिल हैं।