मुख्य न्यायाधीश ने मप्र सरकार से ली विशेष सुविधा… ये क्या कह गए प्रशांत भूषण!


कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिराने वाले उनके विधायकों को अयोग्य ठहराने वाला मामला सुप्रीम कोर्ट में अब तक लंबित है। उन्होंने लिखा कि इस मामले में मप्र सरकार का बचना या जाना इसी मामले पर निर्भर है।


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बड़ी बात Updated On :
जस्टिस एसए बोबड़े और वकील प्रशांत भूषण


भोपाल। सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का चर्चित केस झेल चुके वकील प्रशांत भूषण ने एक बार फिर भारत के मुख्य न्यायधीश पर एक गंभीर  टिप्पणी की है। इस बार मामले में मध्यप्रदेश की मौजूदा सरकार और यहां के कुछ खास विधायकों का भी जिक्र है। प्रशांत भूषण का यह ट्वीट एक बार फिर न केवल देश में बल्कि मध्यप्रदेश की राजनीति में एक बड़े विवाद की वजह बन सकता है।

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बुधवार शाम को किए गए अपने एक ट्वीट में प्रशांत भूषण ने बताया कि भारत के मुख्य न्यायाधीश मध्यप्रदेश के कान्हा राष्ट्रीय उद्यान  गए थे और फिर यहां से वापस नागपुर में अपने घर पहुंचे।

भूषण ने लिखा कि इस दौरान मुख्य न्यायाधीश ने मप्र सरकार के द्वारा दिए गए एक विशेष हेलीकॉप्टर की सुविधा का लाभ उठाया। यही नहीं उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में लंबित मप्र के उस मामले का भी उल्लेख किया जो यहां की राजनीति में उथल-पुथल ला सकता है।

दरअसल कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिराने वाले उनके विधायकों को अयोग्य ठहराने वाला मामला सुप्रीम कोर्ट में अब तक लंबित है। उन्होंने लिखा कि इस मामले में मप्र सरकार का बचना या जाना इसी मामले पर निर्भर है। ऐसे में इसी मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बड़ा अहम है। यह मामला मुख्य न्यायाधीश की बैंच ही सुन रही है।

प्रशांत भूषण के इस नए ट्वीट से विवाद खड़ा होना तय है। उन्होंने एक बार फिर अपने सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए मुख्यन्यायाधीश की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं।

कुछ लोग इसे एक बार फिर उनके द्वारा शीर्ष अदालत का मान भंग करने वाला बता रहे हैं। इनके मुताबिक देश के अतिविशिष्ट पद पर बैठे व्यक्ति की कोई भी यात्रा एक राजकीय यात्रा ही होती है ऐसे में जस्टिस बोबड़े पर भूषण के सवाल बेबुनियाद हैं।

तो कुछ प्रशांत की बात से सहमत नजर आते हैं उनके मुताबिक विश्वसनियता के इस कठिन दौर में जब जस्टिस बोबड़े प्रदेश से जुड़े इतने महत्वपूर्ण मुद्दे को देख रहे हैं तो उन्हें यहां के मामलों में सावधान रहने की जरुरत है। हालांकि इस मामले में फिलहाल किसी ने भी खुलकर राय नहीं दी है।

उल्लेखनीय है कि इसी साल मार्च में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ गए 22 विधायकों ने दस मार्च को कांग्रेस छोड़कर भाजपा की सदस्यता ले ली थी।

जिसके बाद कमलनाथ की सरकार गिर गई थी। इसके बाद 13 मार्च को विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष कांग्रेस की ओर से इन विधायकों को अयोग्य करने के लिए याचिका दायर की गई थी।

विधानसभा अध्यक्ष ने बाद में विधायकों के त्यागपत्र तो मंजूर कर लिए लेकिन इन्हें अयोग्य घोषित करने के लिए दायर याचिका पर विचार नहीं किया गया जबकि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन माह का समय तय किया है। इस बीच इन विधायकों को प्रदेश सरकार में मंत्री भी बना दिया गया।

हालांकि जबलपुर के एक कांग्रेसी विधायक विनय सक्सेना ने  सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका लगाकर इन विधायकों की योग्यता रद्द करने की मांग की थी। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबड़े सहित जस्टिस एएस बोपन्ना व जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ याचिका की सुनवाई कर रही है।

 



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