चिनकी बैराजः अशिक्षित आदिवासी किसानों की ज़मीनों से खिलवाड़ कर रही निर्माण कंपनी


19420 रु प्रति एकड़ में साल भर के लिए ली आदिवासी किसानों की जमीन, जहां खेती होती थी अब वहां बना दी सड़क, कहीं कर दिए बड़े गड्ढे 


ब्रजेश शर्मा ब्रजेश शर्मा
उनकी बात Updated On :
नर्मदा नदी के किनारे चल रहा है चिनकी बैराज का काम


नरसिंहपुर। नर्मदा नदी पर चिनकी बैराज के निर्माण का काम शुरू हो गया है। बैराज जहां बन रहा है वहां आदिवासियों की जमीन पर डूब के अलावा एक दूसरा खतरा भी है। आदिवासियों को लगता है कि उनकी जमीन अगर बच भी गई तो किसी काम की नहीं रहेगी और शायद वे कभी उस पर खेती न कर पाएं। इसकी वजह है बैराज बनाने वाली कंपनी जिसने इन आदिवासियों की जमीन किराए पर ली थी लेकिन इस पर बड़ी-बड़ी मशीनों से खुदाई कर डाली।

आदिवासियों कहना है कि उनकी जमीन को इस कंपनी ने खेती के लायक भी नहीं छोड़ा है। जमीनें अब इतनी खोदी जा चुकी हैं कि वहां कोई खेती नहीं हो पाएगी। निर्माणकर्ता कंपनी ने उनकी ये जमीनें औने पौने दामों में किराए से ली थीं और अब आदिवासियों को डर सता रहा है कि अब साल भर के लिए अनाज पानी की व्यवस्था भी नहीं हो पाएगी।

करीब सवा लाख हैक्टेयर में सिंचाई करने वाले चिनकी बैराज कई किसानों के लिए विकास के रास्ते खुलेंगे लेकिन बहुत से लोगों की जिंदगी में इससे अंधेरा छा रहा है। मध्यप्रदेश और गुजरात के बीच चल रहे नर्मदा जल के विवाद के लिए मध्यप्रदेश पानी का एक निश्चित मात्रा में इस्तेमाल कर सकेगा पर बैराज के लिए कई आदिवासी किसानों और सीमांत किसानों की डूब में आ रही जमीन उनके भविष्य को चौपट कर देंगी।  यह डर उन आदिवासियों को सता रहा है जिनकी जमीन नर्मदा की एकदम किनारे है और उसी के आधार पर वह जीवन बसर करते हैं ।

यहां  बैराज़ का निर्माण का कार्य कर रही हैदराबाद की कंपनी मैसर्स आरबीआर प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड हैदराबाद ने 5 हज़ार 834 करोड़ के निर्माण कार्य का टेंडर लिया है। इस कंपनी ने निर्माण स्थल के आसपास कुछ आदिवासियों की खेतिहर जमीन सिकमी अर्थात किराए पर ले ली और  उनकी हरी-भरी लगी फसल रौंद दी। आदिवासी बताते हैं कि इसके बदले में उन्हें नाम मात्र की क्षतिपूर्ति राशि दी गई है।

साल भर के लिए लीज पर ली उनकी जमीन का कंपनी ने इतना कम पैसा दिया कि अब आदिवासियों को यह लग रहा है कि साल भर में खेती से तीन फसल लेते थे तो जीवन बसर होता था पर अब जब जमीन चली गई तो अनाज पानी की व्यवस्था कैसे करेंगे?  यहां निर्माणकर्ता हैदराबाद की कंपनी ने एक एकड़ जमीन 19 हज़ार 420 रु में साल भर के लिए लीज पर ली है।

लीज का  सामान्य तौर पर अनुबंध कराया। लीज पर लेने के बाद जेसीबी से  खेती बाड़ी की पूरी जमीन चौपट कर दी , जिस पर अब उसमें दोबारा खेती करना संभव नहीं है।  यहां प्रभावित किसानों को अब डर सता रहा है कि क्या उनकी ली गई जमीन वापस  मिल सकेगी  या नहीं।  सरकार उन्हें पर्याप्त मुआवजा दे सकेगी,  पुनर्वास की व्यवस्था कर पाएगी?  इन कई सवालों के जवाब अधिकारियों के पास और निर्माणकर्ता कंपनी के पास नहीं है।

अशिक्षित आदिवासी किसानों से निर्माण ठेकेदार कंपनी ने जिस तरह का अनुबंध करवाया है वह है तो सिकमी का यानी खेती की जमीन किराए से लेने का जिस पर निमयानुसार खेती ही की जानी चाहिए लेकिन उसकी शर्तो में लिखा हुआ है कि किराएदार को किसी भी प्रकार का अतिरिक्त निर्माण कार्य, रोड, बैराज और अन्य कार्य करने के लिए स्वतंत्र होगा। जिसमें भूस्वामी का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। ऐसे में समझा जा सकता है कि कंपनी किस तरह किसानों की जमीनें खेती के नाम पर ले रही है और वहां बैराज बनाने तक के काम के लिए खुद को स्वतंत्र बता रही है।

ग्राम पिपरहा में निर्माण स्थल के पास नर्मदा किनारे एक किसान मुलायम भारिया की लगभग एक एकड़ खेती में गेहूं लगा था। कंपनी ने  किसान को औसत तौर पर 10 क्विंटल प्रति एकड़ की दर पर 2050 रु प्रति क्विंटल के हिसाब से 40 हज़ार 283 रु की क्षतिपूर्ति दे दी और 19 हज़ार 420 प्रति एकड़ की दर से साल भर के लिए किसान की जमीन किराए पर ले लीl  कंपनी का किसान के साथ यह अनुबंध 16 जनवरी 2023 से अगले साल 15 जनवरी 2024 तक के लिए हैl  कुछ और भी किसानों की जमीन ली गई हैं। अब जमीनों पर कई तरह के निर्माण हो रहे हैं उन्हें खोदा जा रहा है और मिट्टी निकाली जा रही है। अपनी जमीन की हालत देखकर किसान परेशान हैं और डरे हुए हैं। उन्हें नहीं पता कि काम करने के बाद कंपनी उनकी बात सुनेगी भी या नहीं। स्थानीय प्रशासन से भी उन्हें खास उम्मीदें नहीं हैं।  उनकी ली गई जमीन अब साल भर के लिए उनसे हाथ से जा रही है जबकि क्षतिपूर्ति सिर्फ एक फसल की मिल सकी है। वह अगली फसल कैसे ले सकेंगे। जब फसल नहीं ले पाएंगे तो साल भर उनका परिवार का भरण पोषण कैसे होगा?

इस तरह की आशंकाओं से ग्रस्त आदिवासियों के मन में भय है कि अपनी बात ना तो अधिकारियों के समक्ष रख पा रहे हैं और ना ही कंपनी के कर्ताधर्ता उनकी सुन रहे हैंl जब इस सिलसिले में बैराज के लिए मानिटरिंग का काम कर रहे रानी अवंती बाई लोधी परियोजना के इंजीनियर डीएस दोनेरिया से जब पूछा गया तो उनका कहना है कि किसान को एक साल की फसल की नुकसानी दी गई है। अभी वहां मशीनरी तात्कालिक तौर पर काम कर रही है। उन्होंने कहा कि भू अर्जन का कार्य जब होगा  तो विभाग के द्वारा किसानों को प्रति एकड़ की दर पर मुआवजा दिया जाएगा।

इस मामले में एक कानून के एक जानकार एड. सुलभ जैन कहते हैं कि कृषि भूमि अगर  सिकमी अर्थात किराए पर ली गई है तो उसका उपयोग सिर्फ कृषि कार्य के लिए ही किया जा सकता है। दूसरे निर्माण कार्य अगर कोई कर रहा है तो वह गलत हैl  उसकी खेती बाड़ी की जमीन पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। जिसकी क्षतिपूर्ति संभव नहीं है। इस मामले में समाजसेवी बाबूलाल पटेल कहते हैं कि कंपनी को पहले प्रभावित किसानों की समस्या सुनना चाहिए। उनको पर्याप्त क्षतिपूर्ति देना चाहिए तब वह जमीन लेते तो बेहतर होता। इस मामले में संबंधित कंपनी के अधिकारियों से बात करने की कई बार कोशिश की गई लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया।

 



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