एक साल से था इंतजार
मनरेगा के अंतर्गत जिले के 13 विकासखंडों में लगभग 50,000 निर्माण कार्य चल रहे हैं, जिनमें खेत तालाब, सड़क निर्माण, वॉटर पॉइंट, सार्वजनिक कुएं, वाटर रिचार्ज पिट, पौधारोपण, पुल-पुलिया जैसे कार्य शामिल हैं। लेकिन बीते एक साल से बजट के अभाव में ये सभी कार्य लगभग ठप पड़ गए थे। पंचायतों को सीमेंट, सरिया, गिट्टी और ईंट जैसे निर्माण सामग्री के लिए दुकानदारों पर निर्भर रहना पड़ता है। चूंकि पुरानी देनदारियां चुकता नहीं हुई थीं, इसलिए कई दुकानदारों ने पंचायतों को उधारी में सामग्री देना बंद कर दिया।
सामग्री नहीं, तो निर्माण नहीं
ग्राम पंचायतों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही रही कि बिना बजट के वे निर्माण सामग्री की खरीदी कैसे करें। नतीजतन या तो कुछ जगहों पर निजी उधार लेकर काम करवाया गया या फिर कार्य अधूरे रह गए। अब जाकर 2024-25 की पुरानी देनदारियों की आंशिक भरपाई के लिए राशि प्राप्त हुई है, जिससे पंचायतें पुराने भुगतान कर पाने की स्थिति में आ सकेंगी। हालांकि 1 अप्रैल से शुरू हुए नए वित्तीय वर्ष के तहत जून माह तक जो नए कार्य शुरू हुए, उनका भुगतान अभी लंबित है।
मजदूरी भुगतान भी चुनौती
मनरेगा के तहत जिले में लगभग 3.65 लाख मजदूरों को रोजगार मुहैया कराया गया है। इन मजदूरों को मस्टर रोल के आधार पर सीधा बैंक खातों में भुगतान किया जाता है। लेकिन इसमें भी कई बार देर होती है, जिससे मजदूरों में असंतोष बढ़ता है। कई मामलों में भुगतान दो से तीन महीने तक लटक जाता है।
पलायन पर नहीं लग रही लगाम
हालांकि सरकार द्वारा 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी गई है, फिर भी जिले से हर साल हजारों मजदूर काम की तलाश में महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों की ओर पलायन कर जाते हैं। यह इस योजना की व्यवहारिक असफलता की ओर इशारा करता है। श्रमिकों का कहना है कि स्थानीय स्तर पर स्थायी और समय पर भुगतान वाला रोजगार नहीं मिलने से उन्हें बाहर जाना मजबूरी हो गया है।