आगामी सिंहस्थ मेला उज्जैन में आयोजित होना है, लेकिन इस बार यह केवल आस्था और परंपरा का पर्व नहीं बल्कि किसानों, साधु-संतों और सरकार के बीच टकराव का कारण भी बन गया है। सरकार जहां ‘स्पिरिचुअल सिटी’ के नाम पर स्थाई कंक्रीट निर्माण करने के लिए भूमि अधिग्रहण की नीति पर अड़ी है, वहीं किसान और संत परंपरागत अस्थाई व्यवस्थाओं पर जोर दे रहे हैं। इसी को लेकर यह पूरा मसला संघ परिवार तक पहुंच चुका है और अब यह केवल स्थानीय विवाद न रहकर राजनीतिक और सांस्कृतिक संघर्ष का रूप ले चुका है।
स्थाई निर्माण बनाम सनातन परंपरा
सिंहस्थ मेला हर 12 साल में दो से तीन महीने तक चलता है। परंपरा के अनुसार मेले की अवधि तक अस्थाई निर्माण होते आए हैं और बाद में भूमि वापस किसानों को मिल जाती है। लेकिन इस बार सरकार लैंड पूलिंग एक्ट का इस्तेमाल कर स्थाई अधिग्रहण कर रही है। किसानों का कहना है कि इससे उपजाऊ सिंचित भूमि खत्म हो जाएगी, जो न केवल उनकी आजीविका बल्कि पर्यावरण और सांस्कृतिक परंपरा के लिए भी खतरा है।
किसानों का आक्रोश और आंदोलन
उज्जैन विकास प्राधिकरण ने करीब 2,378 हेक्टेयर भूमि पर निर्माण का खाका तैयार किया है, जिसमें से लगभग 1,300 किसानों ने आपत्तियां दर्ज कराई हैं। किसानों ने जल सत्याग्रह, घेराव और धरना जैसे शांतिपूर्ण आंदोलन किए, लेकिन प्रशासन ने कई बार सख्ती दिखाते हुए गिरफ्तारियां कीं। आधी रात में किसानों के घरों में घुसकर बुजुर्गों तक को जेल भेजने की घटनाएं सामने आईं। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं पर भी दबाव डाला गया, जिससे आक्रोश और बढ़ गया।
संघ परिवार और सरकार के बीच संवाद
भूमि अधिग्रहण को लेकर भारतीय किसान संघ ने मुख्यमंत्री को सात बिंदुओं वाला पत्र भेजा है, जिसमें अस्थाई निर्माण, उचित मुआवजा और पारंपरिक व्यवस्थाओं पर जोर दिया गया है। मामला संघ परिवार तक पहुंचने के बाद सरकार बैकफुट पर दिखाई दी। मुख्यमंत्री ने दिल्ली जाकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की और किसान संघ से बातचीत की कोशिशें भी हुईं। हालांकि प्रशासनिक स्तर पर किसानों पर हो रही कार्रवाई से यह संवाद कमजोर होता दिख रहा है।
राजनीतिक टकराव
यह विवाद बीजेपी के भीतर भी खींचतान का कारण बन गया है। विधानसभा में चिंतामणि मालवीय ने किसानों के पक्ष में आवाज उठाई, जबकि विधायक अनिल जैन ने सरकार के कदम का समर्थन किया। इससे साफ है कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा केवल सामाजिक संघर्ष ही नहीं बल्कि राजनीतिक बहस का भी केंद्र बनेगा।