लहुसन का सही दाम नहीं मिलने से किसान परेशान, लागत भी नहीं निकल रही


कई किसान अब लहसुन फेंकने पर भी उतारू हो गए हैं तो कई किसानों का लहसुन का भाव नहीं बढ़ने से भी आक्रोश बढ़ता जा रहा है। लगातार दो-तीन सालों से किसान उपज रखते हैं मगर सही दाम नहीं मिलता है जिससे उनकी लागत भी नहीं निकल पाती है।


आशीष यादव आशीष यादव
उनकी बात Published On :
garlic produce

धार। कोरोना महामारी से पहले ही किसान परेशान है और सालभर से घरों, गोदामों व अन्य जगह रखी हुई लहसुन को अपने बच्चों की तरह देखभाल कर रहे थे लेकिन एक साल तक उसे रखने के बाद भी उपज के भाव नहीं बढ़ने से किसानों में निराशा है।

कई किसान अब लहसुन फेंकने पर भी उतारू हो गए हैं तो कई किसानों का लहसुन का भाव नहीं बढ़ने से भी आक्रोश बढ़ता जा रहा है। लगातार दो-तीन सालों से किसान उपज रखते हैं मगर सही दाम नहीं मिलता है जिससे उनकी लागत भी नहीं निकल पाती है।

जहां एक और सरकार कृषि को लाभ का धंधा बनाने की बात करती है वहीं जमीनी हकीकत आकर देखे तो किसानों को लागत भी नहीं मिलती है। आज मजदूरों के भाव आसमान छू रहे हैं वहीं दूसरी ओर महंगाई किसानों की कमर ही तोड़ रही है।

इसके बाद भी जब किसानों को अपनी उपज का दाम नहीं मिलता है तो वह आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है। कई किसान अपनी उपज कूड़ेदान में फेंक रहे हैं क्योंकि अगर वह उसे मंडी तक ले भी जाएं तो उसकी लागत व ट्रैक्टर व वाहनों का भाड़ा भी नहीं निकलता है।

भले ही सरकार खेती को लाभ का धंधा बनाकर किसानों की आय दोगुनी करने का वादा कर रही हो लेकिन आज तक किसानों के हाथ कुछ खास नहीं आया है।

दिन-रात खेतों में मेहनत करते हैं व फसल पकने को आती है तो आते-आते उसको प्राकृतिक आपदा मार देती है। उसका भी किसानों को बीमा भी समय पर नहीं मिलता है।

आज महंगाई के दौर में लागत भी नहीं निकल पा रही है –

आज बाजार में महंगाई के दौर में किसान लहसुन में मजदूरों, खाद-बीज व डीजल की महंगाई के कारण भी परेशान है। वह खेतों में लहुसन तो लगा देता है मगर उसका भाव नहीं मिलने से उसकी आस टूट जाती है।

वह मंडियों तक ना ले जाकर उसे अपने खेतों में ही डाल देता है। बीमा कम्पनियों की मनमानी से किसानों की बीमा राशि नहीं मिल पाती है और उनकी बातों को सुनने वाला कोई नहीं है।

यह होती लहसुन में लागत –

सबसे पहले किसान लहुसन को धूप लगाकर फोड़ते हैं। एक बीघा में दो क्विंटल लगती है। इसको किसान से खरीदी 8 से 10 हजार रुपये में चौपाई होती है।

किसान शुरुआत से लेकर उसे निकालने तक कुल खर्च 33670 रुपये जो कि एक बीघा में लगता है। एक बीघा में किसान 15 क्विंटल तक उत्पादन करते हैं मगर आज के मंडी भाव से 2000 हजार रुपये क्विंटल भी लहसुन किसान बेचे तो उसे उसे 3670 रुपए का घाटा है। साथ ही उसे मंडी ले जाने व खेतों से लाने का किराया अलग है।

कुछ हाथ नही आता –

कैसे खेती को लाभ का धंधा बनाएंगे जब किसानों के घर में फसल पककर आती है और जब बाजारों में सरकार बाहर से माल बुलवा लेती है और किसानों का फसल गोदामों में रखा रह जाता है। हमन 10 महीने से भाव के बढ़ने का इंतजार कर रहे हैं।लेकिन, इस साल भी लग रहा लहसुन के भाव नहीं मिलने वाला है। अभी 100 रुपये क्विंटल के हिसाब से बिक्री हो रही है तो कैसे माल मंडी ले जाएं।

– रतन लाल यादव, किसान, अनारद

भाव ही नहीं हैं क्या करें –

अभी हमने लहसुन साफ करके रख ली है। अगर भाव बढ़ेंगे तो मंडियों तक ले जाएंगे। क्या करें लहसुन के भाव ही नहीं हैं। लगातार दो सालों से हमें लहसुन की फसल में घाटा ही उठाना पड़ रहा है। अब मंडियों में नई लहुसन आ गई है और पुरानी के तो भाव ही नहीं मिलना हैं।

– शांतिलाल चौधरी, किसान, सकतली



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