रिकॉर्ड बुक में नाम आने के बाद फिर शुरु हुआ विवाद, फिर चर्चाओं में पूर्व कुलपति डॉ.आशा शुक्ला का नाम


पूर्व कुलपति के कार्यकाल में वेबिनार श्रंखला करने पर नाम इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड में शामिल हुआ विश्वविद्यालय का नाम, पहले की तारीफ़ अब कर रहे शिकायत


DeshGaon
इन्दौर Published On :
आंबेडकर विश्वविद्यालय, महू


इंदौर। महू की आंबेडकर यूनिवर्सिटी का पिछले दिनों कोरोना काल के दौरान सबसे अधिक शैक्षणिक वेबिनार कराने के लिए इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में नाम दर्ज किया गया। कई महीनों बाद यह पहला मौका था जब यूनिवर्सिटी किसी विवाद के लिए नहीं बल्कि अपनी शैक्षणिक गतिविधियों के लिए चर्चा में थी। लेकिन यह भी ज्यादा समय नहीं चला। देशगांव पर यूनिवर्सिटी को मिले इस सम्मान के बारे में ख़बर प्रसारित हुई और इसके कुछ ही देर बाद विवाद शुरु हो गया।

अब कहा जा रहा है कि विश्वविद्यालय को मिला यह सम्मान उस काम के लिए मिला है जिनका विश्वविद्यालय से कोई लेना देना नहीं है और जिन पर फिज़ूल पैसा ख़र्च किया गया। दरअसल इस बदलाव के पीछे वजह विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति डॉ. आशा शुक्ला हैं जिनके कार्यकाल में यह वेबिनार किये गए थे और उन्होंने इस सम्मान पर ख़ुशी जताई थी। डॉ. शुक्ला को कुछ महीनों पहले कई आरोप लगाकर कुलपति के पद से हटा दिया गया था लेकिन विश्वविद्यालय का नाम रिकॉर्ड बुक में शामिल होने के बाद से वे जैसे फिर चर्चाओं में आ गईं।

आंबेडकर यूनिवर्सिटी के वीसी डॉ. राजेंद्र शर्मा, प्रो. डीके वर्मा और साथी

एक जुलाई को जब इस रिकॉर्ड का मैडल विश्वविद्यालय के कुलपति कक्ष में पहुंचा तो कुलपति डॉ. दिनेश शर्मा ने इसे हाथों में लेकर विश्वविद्यालय के लिए गर्व की मौका बताया था। इसके बाद उन्होंने अपने साथियों के साथ इस मैडल और प्रमाण पत्र की तस्वीरें भी खिंचवाई। इस दौरान डॉ. शर्मा ने खुलकर कहा था कि यह काम पूर्व कुलपति के कार्यकाल में हुआ है लेकिन अब डॉ. शर्मा इस सम्मान पर ही सवालिया निशान लगा रहे हैं।

डॉ. दिनेश कुमार शर्मा, कुलपति, आंबेडकर विश्वविद्यालय, महू

उनके मुताबिक विश्वविद्यालय का नाम होना अच्छी बात है लेकिन इस पर विचार करना चाहिए। डॉ. शर्मा कहते हैं कि विश्वविद्यालय में यह वेबिनार पाठ्यक्रम से अलग हटकर आयोजित किये गए। वे कहते हैं कि बेहतर होता कि वेबिनार हमारे यहां पढ़ाए जा रहे विषयों पर आधारित होते। शर्मा के मुताबिक पूर्व कुलपति ने अपने नाम के लिए विश्वविद्यालयों के संसाधनों का खूब उपयोग किया और जो उचित नहीं है। उनके मुताबिक 240 वेबिनारों में आने वाले लोगों के लिए एक हजार रुपये की दर से राशि दी गई। इस तरह काफी पैसा खर्च किया गया।

इस वेबिनार श्रंखला का आयोजन डॉ. आशा शुक्ला के कार्यकाल में हुआ लेकिन उन्हें जनवरी में पद से हटा दिया गया और फिर डॉ. शर्मा यहां बैठे। जिनके कार्यकाल में वेबिनार को रिकार्ड बुक में शामिल करने के लिए आवेदन दिया गया।

विश्वविद्यालय के रुख़ में अचानक आए इस बदलाव की वजह डॉ. आशा शुक्ला के द्वारा लिखी गई एक फेसबुक पोस्ट है। जिसमें उन्होंने अपने कार्यकाल में हुए इस सम्मान के लिए खुशी जताई थी और अपने साथियों का भी धन्यवाद दिया था। इसके बाद यह संदेश गया कि डॉ. शुक्ला ने इस उपलब्धि का क्रेडिट ले लिया। इस पर विश्वविद्यालय के अंदर और बाहर उनके आलोचक और विरोधी सक्रिय हो गए और यह कल तक जिस सम्मान को सहर्ष स्वीकारा जा रहा था अब उस पर सवाल उठने लगे।

इस विवाद के साथ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति डॉ. आशा शुक्ला पर फिर नए आरोप लगाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि वेबिनार में शामिल होने वाले लोगों के लिए प्रति व्यक्ति एक हजार रुपये का भुगतान किया गया ऐसे में यह कहना गलत है कि इसमें विश्वविद्यालय के संसाधन खर्च नहीं हुए और फिर कहा जा रहा है कि वेबिनार में विश्वविद्यालय से संबंधित शैक्षणिक विषयों पर बात नहीं होती थी। ऐसे में पूर्व कुलपति पर एक बार फिर विश्वविद्यालय की बजाए अपने लिए काम करने के आरोप लग रहे हैं।

डॉ. आशा शुक्ला, पूर्व कुलपति, आंबेडकर विश्वविद्यालय महू (Photo Credit: FB)

इस पर डॉ. आशा शुक्ला से भी उनका पक्ष जाना गया तो उन्होंने बताया कि वेबिनार में शामिल होने वाले लोगों के लिए पहले एक हजार रुपये देने की बात की गई थी लेकिन बाद में उनके अनुरोध पर सभी अतिथि मान गए और बिना किसी मानदेय के वेबिनारों में शामिल हुए इस तरह अधिकतम इंटरनेट के अलावा विश्वविद्यालय का कोई पैसा इस पर खर्च नहीं हुआ है। डॉ. शुक्ला के मुताबिक अगर मौजूदा कुलपति चाहें तो इसकी जांच करवा सकते हैं।

डॉ. शुक्ला आगे कहती हैं कि वेबिनार पूरी तरह शैक्षणिक कार्यक्रमों पर केंद्रित थे। उनके मुताबिक पिछले दिनों विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर काम करने की ज़िम्मेदारी मिली थी। ऐसे में कुल वेबिनारों में से 39 राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर केंद्रित थे। इसके बाद 37 वेबिनार आज़ादी के अमृत महोत्सव पर थे। जिनके लिए प्रधानमंत्री कार्यालय, कुलाधिपति और उच्च शिक्षा विभाग के आदेश भी थे और यह वेबिनार युवा विद्यार्थियों के लिए स्वतंत्रता के इतिहास को लेकर थे। इसके अलावा विश्विद्यालय की अम्बेडकर पीठ, कबीर पीठ, जगजीवन राम पीठ , सावित्री बाई फुले पीठ, ज्योतिबा फुले इत्यादि पीठों ने और 9 मानद पीठों ने भी अपने-अपने विषयों के अनुरूप वेबिनार किये। इस दौरान विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने अकादमिक साप्ताहिक व्याख्यान दिये। शुक्ला के मुताबिक इन वेविनारों से राष्ट्रीय  अंतराष्ट्रीय विद्वान जुड़े।

डॉ. शुक्ला कहती हैं कि केवल व्यक्तिगत द्वेष के कारण इस तरह का वातवरण पैदा करना दुखद है। वे कहती हैं कि यह सम्मान विश्वविद्यालय का है न कि किसी एक व्यक्ति का। ऐसे में अगर वे गलत होतीं तो विश्वविद्याल की ओर से इसके लिए आवेदन किया ही नहीं जाता।

 



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