नैनो यूरिया से उर्वरक सब्सिडी में सालाना होगी 25 हजार करोड़ रुपये की बचत


संसदीय पैनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि भारत के चावल की खेती के 50% क्षेत्र को नैनो-यूरिया के तहत लाया जाता है, तो इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 4.6 मिलियन टन की कमी आएगी।


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nano urea saving of subsidy

नई दिल्ली। एक संसदीय पैनल ने कहा है कि महत्वपूर्ण फसल के विकास लिए विभिन्न चरणों में नैनो-यूरिया का सटीक उपयोग मिट्टी के पोषक तत्वों के पारंपरिक अनुप्रयोग के 25-50% उपयोग को प्रतिस्थापित कर सकता है। इसके उपयोग से उर्वरक सब्सिडी पर 20 से 25 प्रतिशत की बचत हो सकती है।

नैनो-फर्टिलाइजर फॉर सस्टेनेबल क्रॉप प्रोडक्शन एंड पैनल ने कहा है कि नैनो यूरिया के इस्तेमाल से सरकार को करीब 20,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन यूरिया की सब्सिडी देने जाने पर विचार किया जा रहा है। प्रतिवर्ष सब्सिडी बिल में लगभग 25,000 करोड़ रुपये की बचत हो सकती है।

पैनल ने यूरिया के आयात में निरंतर वृद्धि के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि देश में यूरिया का आयत 2016-17 में 5.48 मिलियन टन से बढ़कर 2020-21 में 9.8 एमटी हो गया है, इसके चलते देश को आयात के कारण 26% अधिक सब्सिडी का बोझ उठाना पड़ रहा है।

नैनो यूरिया के व्यावसायिक उत्पादन को 2021 में इंडिया फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव (इफको) और राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स (आरसीएफ) के द्वारा शुरू किया गया है।

नैनो यूरिया, पारंपरिक यूरिया के विकल्प के रूप में पौधों को अधिक नाइट्रोजन प्रदान करता है। इसकी सिर्फ 500 मिलीलीटर की मात्रा पारंपरिक यूरिया के 45 किलो बैग के बराबर होती है।

भारत सरकार ने 2025 तक नैनो यूरिया की वर्तमान वार्षिक उत्पादन क्षमता को 50 मिलियन बोतल से बढ़ाकर 440 मिलियन बोतल करने का लक्ष्य रखा है। भारत 35 मीट्रिक टन यूरिया की कुल वार्षिक मांग में से करीब 29 मीट्रिक टन यूरिया का घरेलू उत्पादन करता है और बाकी की निर्भरता आयात पर है।

कृषि मंत्रालय ने भी अगले खरीफ सीजन से नैनो-डायमोनियम फॉस्फेट की शुरूआत के लिए मंजूरी दे दी है। देश के आधे से ज्यादा डीएपी जरूरत का आयात किया जाता है।

संसदीय पैनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि भारत के चावल की खेती के 50% क्षेत्र को नैनो-यूरिया के तहत लाया जाता है, तो इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 4.6 मिलियन टन की कमी आएगी।

पैनल ने कहा है कि यहां तक कि अगर 20-30% यूरिया जो बर्बाद हो रहा है, उसे बदला और उपयोग किया जा सकता है, तो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के मुद्दे को उचित रूप से संबोधित किया जा सकता है।

किसान लगभग 2,650 रुपये प्रति बैग की उत्पादन लागत के मुकाबले यूरिया का एक निश्चित मूल्य 242 रुपये प्रति बैग (45 किलोग्राम) का भुगतान करते हैं। शेष राशि सरकार द्वारा विनिर्माण इकाइयों को सब्सिडी के रूप में प्रदान की जाती है।



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