टमाटर अभी बना रहेगा महंगा, थोक मंडी में 2200 रुपये प्रति कैरेट पहुंचा भाव


नरसिंहपुर के सब्जी मंडी में फिलहाल बेंगलुरु से बुलाए जा रहे टमाटर।


ब्रजेश शर्मा ब्रजेश शर्मा
नरसिंहपुर Published On :
tomato vendor

नरसिंहपुर। टमाटर अभी डेढ़ दो महीने और महंगे बने रहेंगे। बेंगलुरु से नरसिंहपुर, जबलपु, मंडला, सतना, सिवनी आदि ज़िलों में 2200 रुपये प्रति कैरेट के हिसाब से टमाटर पहुंच रहे हैं।

टमाटर महंगे होने से खुदरा सब्जी बेचने वालों के व्यवसाय पर असर पड़ा है। उनकी आमदनी एक रुपये से घटकर चवन्नी हो गई है। टमाटर और अन्य सब्जियों के दामों में हुए इजाफे ने आम तौर पर घर परिवारों का बजट बिगाड़ दिया है।

मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा खेतीबाड़ी वाले नरसिंहपुर जिले में रविवार को टमाटर 100 से 130 रुपये किलो थे। टमाटर के साथ-साथ परवल, करेला एवं कई सब्जियों के दाम भी 80 से 100 रुपये किग्रा रहे। प्याज भी बरसात के कारण उछल कर 60 से 80 रुपये प्रति किलो पहुंच गया।

narsinghpur mandi

पिछले 18-20 सालों से सब्जी का धंधा करने वाले रामकिशोर कुशवाहा कहते हैं कि

20-25 दिन पहले जो टमाटर 30 रुपये प्रति कैरेट मिलता था वह अब 2200 रुपये प्रति कैरेट मिल रहा है। एक कैरेट में लगभग 24-25 किलो टमाटर रहता है। 100 रुपये किलो की खरीद में वह मुश्किल 10-15 रुपये प्रति किलो का मुनाफा कमा पाते हैं।

आढ़तिया मुनीश कहते हैं कि

अभी लोकल का टमाटर बिल्कुल नहीं है। बेंगलुरु से टमाटर बुलाया जा रहा है। वह 24 घंटे में यहां पहुंच जाता है जिसे जिले भर में सप्लाई कर देते हैं। बेंगलुरु से आने वाली खेप पड़ोस के सभी जिलों सतना, छिंदवाड़ा, रायसेन, मंडला, सतना, कटनी, सिवनी के मांग के अनुसार पहुंच रही है। लोकल की सब्जी बरसात में वैसे ही कम हो गई है।

एक और आढ़तिया दर्शन सिंह कहते हैं कि

पहले रायसेन से भी टमाटर आ जाता था। प्रदेश में रायसेन जिला टमाटर के लिए खास पहचान रखता है, लेकिन अब यहां से टमाटर दिवाली के आसपास ही पहुंचेगा।

एक सब्जी विक्रेता भरत कहते हैं कि

बेंगलुरु से आने वाले टमाटर में क्वालिटी में भी अंतर है। उसे ज्यादा दिन तक रख नहीं सकते इसलिए कम मार्जिन पर ही उसे निकालना पड़ रहा है।

टमाटर के साथ मिर्ची बेचने वाली मोहम्मद अजीज का कहना है कि टमाटर तो बाहर से बुलाए ही जा रहे हैं। यहां मिर्च भी महाराष्ट्र से बुलाई जा रही है जिसके दाम भी 100 रुपये प्रति किलो से ज्यादा है।

एक महीने पहले किसानों ने खेतों में ही नष्ट किए थे भटा और टमाटर –

अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं जब कुछ किसानों की तस्वीरें सुर्खियों में रहीं थीं जब जिले के कई किसानों ने अपने टमाटर और भटे की फसल खेतों में ही नष्ट कर दिए थे क्योंकि उन्हें इसके सही दाम नहीं मिल रहे थे।

उस समय टमाटर 2 रुपये किलो तक थोक में महंगे हो रहे थे, लागत निकालना मुश्किल हो रही थी इसलिए किसानों ने खेतों में ही नष्ट करना भला समझा। अब हाल यह है कि 2 रुपये का टमाटर 50 गुने दाम में भी सहजता से उपलब्ध नहीं है।

खुदरा व्यवसायियों की टूट रही कमर –

आमतौर पर बरसात में सब्जी की आवक कम होने से खुदरा व्यवसायियों के लिए यह मंदी का दौर होता है। कहीं साइकिल से तो कहीं ठेले पर सब्जी बेचने वालों की व्यवसाय पर असर यह है कि सब्जी महंगी होने से उसे खुद खरीदने की क्षमता नहीं रख पाते और छुटपुट सब्जी लेकर पहुंचते हैं तो महंगी सब्जी भी अब बिकती नहीं है। इससे उन्हें घाटा हो रहा है। उनके लिए बरसात के दिन बहुत मुश्किल भरे हैं। सब्जी बेचना ही उनकी आजीविका का साधन है।

साइकिल से सब्जी लेकर रोजाना बेचने के लिए निकलने वाले झलकन पटेल का कहना है कि

सब्जी में करेला, शिमला मिर्च, प्याज, भटा, टिंडा, आदि के दाम 80 रुपये से कम नहीं हैं इसलिए बिकवाली कम हैं। टमाटर, प्याज बरसात में जल्दी खराब होती है तो उसे रखने के इंतजाम नहीं हैं। अब मांग कम होने से स्टोर करके रखना उनके बूते के बाहर है।

सफेद हाथी साबित हो रहा उद्यानिकी विभाग –

जिले के काश्तकारों, किसानों के लिए जिले में उद्यानिकी विभाग नाम का कोई विभाग है, उन्हें नहीं मालूम है। यह तो पूरी तरह सफेद हाथी है जो कभी भी सब्जी या नगदी फसलों को प्रोत्साहन देने के लिए ना तो कोई सलाह देता है और ना ही कभी मदद करता है।

बकौल ” नारायण पटेल बरेली ” का कहना है कि इस विभाग का तो उन्होंने नाम ही नहीं सुना और फिर आज तक उन्होंने और न उनके अन्य साथियों ने सब्जियों की बुवाई आदि के लिए सलाह सुनी। बरसात में भी सब्जी का अच्छा उत्पादन होने की संभावना के बावजूद किसान उसे समझ नहीं पाते।

ग्राम समनापुर के आनंद पटेल ने पाली सिस्टम से करेला लगाए हैं। उनका कहना है कि उद्यानिकी विभाग कभी भी इस तरह की खेती बाड़ी को प्रोत्साहन नहीं देता। वह तंज कसते हैं कि उसे तो यह भी नहीं मालूम होगा कि जिले में सब्जी या नगदी फसल का रकबा कितना है।

कृषि वैज्ञानिक डॉ. एसआर शर्मा कहते हैं कि हाल ही में हुई अधिक बरसात की वजह से टमाटर की लोकल फसल खराब हो गई है। अब जून में जिसने बुवाई की है उसकी फसल करीब 2 महीने बाद आएगी। डॉ. शर्मा के अनुसार जिले में पहले कुछ किसान ही पाली सिस्टम से टमाटर लगते थे, लेकिन दाम नहीं मिलने से उन्होंने इसे बंद कर दिया।



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