मूर्तिकारों के सामने अब नई मांग, राक्षस वध नहीं, देवी को अब शांत चित्त में देखना चाहते हैं लोग


कलाकारों के करीब 15 परिवार इस काम में जुटे हैं जबकि इससे पहले यहां के करीब 50 से अधिक परिवारों के लिए यह जीवनचर्या का एक मात्र साधन था।


अरूण सोलंकी अरूण सोलंकी
इन्दौर Updated On :

रविवार से नौ दिनों तक चलने वाला नवदुर्गा उत्सव शुरू हो गया है। इस दुर्गा उत्सव में प्रदेश के अनेक शहरों में महू के कलाकारों द्वारा बनाई गई आकर्षक दुर्गा मूर्तियों की स्थापना की जा रही है। जिसके लिए 200 से अधिक कलाकार व उनके सहयोगी विगत एक माह से इन मूर्तियों का अंतिम रूप देने में दिन रात जुटे हुए हैं।

सनातन मतावलंबियों के इस लोकप्रिय पर्व में मूर्तियां, मटके तथा दूसरा मिट्टी का सामान बनाने वाले प्रजापति समाज के लोगों का अहम काम होता है। धार्मिक आस्था के अनुसार इस समाज के लोग देवी मूर्तियां और पूजा में उपयोग होने वाले मिट्टी के तमाम दूसरे पात्र बनाते हैं।

हालांकि अब इन्हें भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। पहले इस क्षेत्र में इनकी संख्या काफी अधिक थी और लगभग हर परिवार किसी न किसी तरह से अपने इस पारंपरिक काम में जुटा हुआ था लेकिन अब यह संख्या लगातार कम होती जा रही है।

फिलहाल महू के धारनाका क्षेत्र के प्रजापति मोहल्ले में रहने वाले करीब 15  से अधिक प्रजापति परिवार इन मूर्तियों को अंतिम रूप दे रहे हैं। इनमें दो सौ से अधिक सहयोगी कलाकार शामिल हैं जिनमें से ज्यादातर इन्हीं परिवारों के नाते रिश्तेदार हैं। किसी समय में यहां के 50 तक परिवार मूर्तियां बनाने का काम करते थे।

अब केवल शांत चित्त वाली मूर्तियां चाहिए

इन कलाकारों के हाथों में इतनी अच्छी खूबी है कि इनके द्वारा बनाई गई मूर्तियों पूरी तरह जीवंत दिखाई देती हैं। कलाकार कहते हैं की कुछ साल पूर्व तक आयोजकों की मांग पर देवी के विराट व क्रोध वाले रूप की मूर्तियां बनाई जाती थी जिसमें विशेष कर राक्षसों का वध दर्शाया जाता था लेकिन अब यह मांग बिल्कुल खत्म सी हो गई है। अब हर कोई सार्वजनिक रूप से स्थापित किए जाने वाली मूर्तियां माता के शांत आकर्षण रूप में देखना चाहता है।

एक कलाकार नंद किशोर प्रजापति बताते हैं कि इन मूर्तियों को  दिन रात की मेहनत से तैयार किया जा रहा है शांत स्वभाव के रूप में मूर्तियों की मांग पिछले 2 साल से काफी अधिक है। अधिकांश आयोजित दुर्गा मूर्तियों की स्थापना कर रहे हैं कुछेक स्थान पर ही काली की मूर्ति बनवाई गई है।

वर्तमान समय में करीब 70 से अधिक बड़ी मूर्तियां बनाई गई हैं जिनकी ऊंचाई 10 से 14 और अधिकतम 16 फीट तक है। इस बार इन मूर्तियों में विशेष कर देवास में स्थापित होने वाली एक ऐसी मूर्ति भी है जिसने माता के आठ हाथ आदर्श गए हैं और आठों हाथों में आठ माता की मूर्तियां मौजूद हैं जो आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।

कई शहरों में मांग

इसके अलावा प्रदेश के अन्य शहर मंदसौर, नीमच, सेंधवा, खंडवा सनावद, धार, बड़वानी, झाबुआ, उज्जैन में भी महू के कलाकारों द्वारा बनाई गई मूर्तियां स्थापित की जाएगी।

ईको फ्रेंडली मूर्तियां

कलाकारों द्वारा शासन के नियमानुसार इन मूर्तियों के निर्माण में मिट्टी, चूना और घास का अधिक प्रयोग किया जा रहा है ताकि विसर्जन के समय नदी व तालाब दूषित ना हो।

मूर्ति कलाकार मनोज प्रजापति ने बताया कि इस बार देवास में स्थापित होने वाली मूर्ति आकर्षण का केंद्र ही है। जिसकी ऊंचाई करीब 12 फीट है इस मूर्ति को देखकर अब अन्य आयोजन भी ऐसी ही मूर्ति बनवाने की मांग कर रहे हैं लेकिन समय अभाव के कारण मूर्ति बनाना अब संभव नहीं हो पा रहा है।

चिंतित हैं कलाकार

नंदकिशोर प्रजापति ने बताया कि धारनाका के प्रजापति मोहल्ले के परिवारों द्वारा 70 से अधिक बड़ी मूर्तियां का निर्माण किया है तथा छोटी मूर्तियां की संख्या सैकड़ो में है।

यह कलाकार अपने काम को लेकर चिंतित हैं वह बताते हैं कि अब इस काम को पहले की तरह कलाकारी के रूप में नहीं देखा जाता। वह कहते हैं किस काम में काफी मेहनत है और यह 12 महीनों तक रोजगार भी नहीं देता। इसके अलावा मूर्तियों की लागत भी काफी बढ़ चुकी है जिसके सामने मुनाफा बेहद कम है। यही वजह है कि नई पीढ़ी के लोग इसमें आना नहीं चाहते। ऐसे में आने वाले कुछ दशकों में मूर्तिकार और भी काम होते जाएंगे।

 



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