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खरीफ की फसल का मौसम गुजर गया और नरसिंहपुर जिले में एक लाख हैक्टेयर में पानी पहुंचाने वाली नहर सूखी ही पड़ी रही। कुछ महीनों पहले नहर की मरम्मत का टेंडर निकला था और किसानों को लग रहा था कि नहर की मरम्मत होनी है और इसीलिए इसमें पानी नहीं आ रहा है लेकिन वे गलत थे। नहर में अब शायद रबी के मौसम में भी पानी जल्दी नहीं आएगा। नहर में महीनों पहले जो मेंटेनेंस हो जाना चाहिए था वह आचार संहिता के लागू होने के बाद अब शुरू हो रहा है। इसकी राशि करीब आठ करोड़ रुपए है। हालांकि किसानों का कहना है कि वे जानते हैं कि नहर की मरम्मत एक दिखावा है जो हर साल होता है और नहर की हालत कभी नहीं सुधरती, वे कहते हैं कि असली खेल तो मरम्मत के पैसे का सही उपयोग करना है जो नेता और अधिकारी मिलकर करेंगे।
क्षेत्र के किसानों को जरूरत के वक्त पानी नहीं मिला पर अधिकारी उन्हें झूठा बता रहे हैं और कह रहे हैं कि नहर लगातार चालू रही और आज ही पानी बंद हुआ है। हालांकि नहर खुद ऐसा नहीं कहती। नहर में पानी के कोई निशान नजर नहीं आते और किसान कहते हैं कि नहर महीनों से सूखी पड़ी है और सालों से बदहाल है। किसान कहते हैं कि अधिकारियों और नेताओं की साठगांठ से नहर में पानी नहीं छोड़ा गया और अब ऐन चुनाव के वक्त मेंटेनेंस के नाम पर 8 करोड़ खर्च किए जाएंगे। किसान कहते हैं कि ये पैसे नहर पर खर्च न होकर शायद चुनाव में खर्च हों।
रानी अवंती बाई सागर परियोजना के अंतर्गत जिले में लगभग 1 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में खरीफ एवं रबी सीजन में सिंचाई का लक्ष्य रखा जाता है। जिले में कृषि के अंतर्गत आने वाला रकबा लगभग 3 लाख़ 10 हज़ार हैक्टेयर से ज्यादा है। इस तरह लगभग 1 लाख हैक्टेयर रकबे को करीब 135 किलोमीटर लंबाई की मुख्य नहर के बाद डिस्ट्रीब्यूटर केनाल और फिर फिर माइनर इसके बाद सब माइनर केनाल के जरिए खेतों तक पानी देने की योजना है। हालांकि एक लाख हैक्टेयर के इतने बड़े इलाके में पानी की कमी बांध बनने के करीब तीन दशक तक कायम है और पिछले कुछ वर्षों में तो लगातार सिंचित क्षेत्र बढ़ाने के दावे किए जा रहे हैं।
इन नहरों पर करोड़ों रुपए हर साल मेंटेनेंस के नाम पर खर्च होते हैं पर नहर की हालत खराब है। कई जगह बड़ी-बड़ी झाड़ियां हैं, तो नहर के रास्ते में ही पेड़ पौधे,घास उगने लगी है। ऐसे में समझना मुश्किल नहीं कि नहर का मेंटेनेंस कितना हो रहा है। जिले में नहर की वास्तविक स्थिति बदतर है, ये नहर जिसके भरोसे सिर्फ कागजों में 1लाख़ हेक्टर क्षेत्र में पानी देने का सब्जबाग हर साल खरीफ और रबी सीजन में दिखाया जाता है।
हर साल इन नहरों से जिले में थोड़े बहुत रकबे को ही लाभ मिल पाता है। किसानों से प्रतिवर्ष उनके डिमांड पत्र बुलाए जाते हैं। अधिकारियों को इसकी भी सटीक जानकारी नहीं है कि हर साल कितनी डिमांड किसानों से आई और कितने रकबे में पानी दिया जा रहा है। इस बार खरीफ सीजन में भी नहरें पानी को तरसती रहीं और किसान परेशान होते रहे लेकिन नहरों से पानी नदारद था, पर अधिकारी दावे करते हैं कि नहर में भरपूर पानी था और यह अभी हाल में ही बंद किया गया है।
इसमें खेल यह है कि मार्च अप्रैल में बांध के नजदीक 0 से लेकर 5 किलोमीटर की लंबाई तक मेंटेनेंस और नहर मरम्मत के लिए निविदा निकाली गई। करीब 8 करोड़ रुपए का काम 45 दिन में किया जाना था पर यह कार्य जब अप्रैल मई में शुरू होना था, निविदा में तय काम की समय सीमा के मुताबिक 15 जून गुजर गया लेकिन काम शुरु नहीं हुआ। अब जब आचार संहिता लग गई नामांकन भरे जा रहे हैं तब चुनाव के ऐन वक्त जानबूझकर शुरू कराया जा रहा है ताकि अपने-अपने क्षेत्र में किसानों पर अहसान नज़र आए और बंदरबांट कराई जा सके।
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अंडिया वितरण नहर, परसवाड़ा वितरण, सिवनी सब माइनर और अन्य वितरण नहरें सूखी पड़ी हैं। नहरों के किनारे खेती करने वाले किसान स्पष्ट कह रहे हैं कि खरीफ सीजन में पानी नहीं आया पर इसके उलट अधिकारियों के दावे हैं कि खरीफ सीजन में हाल ही में पानी अभी बंद किया गया है और फिर डिमांड शुरू होगी तो इसे फिर से शुरू कर दिया जाएगा।
आड़िया नहर से लगे एक खेत के किसान राधे कहते हैं कि पिछले साल गर्मी में ही पानी नहर में देखा था इस साल तो पानी देखने को नहीं मिला। एक और किसान कहते हैं कि हाल ही में इसी साल गर्मी के बाद आषाढ़ तक तो पानी था पर इसके बाद पानी नहीं आया। बहोरीपार के किसान चेतराम साहू कहते हैं कि गर्मी में ही पानी था इसके बाद पानी नहर में आया ही नहीं।
नयागांव के एक किसान भूपत कहते हैं कि नहर कचरे से भरी पड़ी हैं। पानी तो उन्होंने काफी समय से देखा ही नहीं। कुम्हरोडा के किसान हरिशंकर नहर के किनारे ही खेती करते हैं। उनका भी कहना है कि इस बार खरीफ सीजन में पानी देखा ही नहीं।
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किसानों की फिक्र नहीं करते नेता, माननीयः खरीफ हो या रबी सीजन, किसानों को पानी मिले या ना मिले, नहर फूट रही हों ,उनमें मेंटेनेंस के नाम पर हर साल करोड़ों रुपए लगाए जाते हैं लेकिन जिले के कोई भी माननीय अपने क्षेत्र के किसानों की फिक्र नहीं होती, ये किसान कहते हैं कि नेताओं ने अब तक उन्हें सिर्फ सब्जबाग दिखाने और विकास के झूठे दावे गिनाने का काम किया है।
इस मामले में एक नाम प्रकाशित न करने की अपील पर एक आरटीआई एक्टिविस्ट व विसिल ब्लोअर कहते हैं कि वह चुनाव आयोग से शिकायत करेंगे। जरूरत पड़ेगी तो कोर्ट तक जाएंगे कि आचार संहिता के वक्त 8 करोड़ रुपए को चुनावी इस्तेमाल में ठिकाने लगाने के लिए अधिकारी और कुछ नेता यह खेल कर रहे हैं क्योंकि ऐसा गलत है।
इस मामले को करीब से देखने वाले एक अन्य व्यक्ति ने हमें बताया कि इस काम के लिए ही रिटायर हो चुके अधिकारियों को सेवा वृद्धि दी गई है और उनकी ही देखरेख में करोड़ो कार्य कराए जा रहे हैं।
अभी तो खरीफ सीजन के लिए नहर में पानी चल ही रहा है। अभी पेंच वर्क करना है इसलिए पानी रोका जा रहा है। रबी सीजन में डिमांड हो शुरू होते ही पानी दिया जाएगा।
महेंद्र कुमार ढिमोले कार्यपालन यंत्री एवं कार्य प्रभारी, जबलपुर
आज ही तो पानी बंद किया है। अब रबी सीजन में जब किसानों की डिमांड आएगी तो पानी छोड़ेंगे।
ज्योति भूषण मिश्रा कार्यपालन यंत्री, डिस्नेट संभाग नरसिंहपुर
इस मामले में रानी अवंती बाई सागर परियोजना के अधीक्षण यंत्री डी.एल. वर्मा भी वही जवाब देते हैं वे कहते हैं कि नहर में पानी बिल्कुल हालिया बंद किया गया है और किसानों का कहना गलत है। वहीं उनके मुताबिक इस समय मरम्मत का काम करना आचार संहिता का उल्लंघन कैसे हो सकता है जबकि टैंडर पहले ही हो चुके हैं और काम शुरू ही नहीं किया गया है।
नहर की स्थिति देखकर ऐसा नहीं लगता कि इस नहर में हालही में कोई पानी छोड़ा गया है और किसानों की बात इस स्थिति से मेल खाती है लेकिन क्षेत्र में नहर की देखरेख करने वाले अधिकारियों ने किसानों के इन दावों को सिरे से खारिज कर दिया है। किसानों के मुताबिक उनकी फसलों में नुकसान हुआ लेकिन उनकी सही बात को भी गलत बताया जा रहा है। वे कहते हैं कि चुनावी वादों के बीच अधिकारियों का जनता के किया जाने वाला यह व्यवहार बताता है कि वे इस व्यवस्था में कहां खड़े हैं।