क्या कांग्रेस का 20 साल पुराना इतिहास दोहराने जा रहे हैं राहुल गांधी!


अगले दो महीने से भी कम समय में कर्नाटक विधानसभा चुनाव और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव नतीजे ही इन सवालों का सटीक जवाब होंगे।


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राहुल गांधी की संसद सदस्यता समाप्त हो गई है। इस मामले पर कांग्रेस से दूरी बना चुके दलों ने भी कांग्रेस के पक्ष में बयान दिया है। आम आदमी पार्टी ने इसे विपक्ष की आवाज़ दबाने की साजिश बताया है।

बीजेपी के प्रवक्ताओं सहित तमाम नेताओं ने सूरत कोर्ट के फैसले को सही बताया लेकिन, इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या गृह मंत्री अमित शाह ने कोई बयान नहीं दिया है। भारतीय फिल्म को ऑस्कर और सानिया मिर्ज़ा के संन्यास की घोषणा पर त्वरित प्रतिक्रिया देने वाले प्रधानमंत्री इस मामले पर न तो कोई ​ट्वीट करते हैं, न कोई बयान जारी करते हैं।

क्यों राहुल गांधी का नाम लेने से बचते हैं नरेंद्र मोदी?

बजट सत्र के दौरान राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गौतम अडाणी के बीच रिस्ते होने का दावा करते हैं। अपने आरोप को सही साबित करने के लिए राहुल गांधी संसद में एक फोटो दिखाते हैं जिसमें अडाणी और नरेंद्र मोदी बड़े ही दोस्ताना अंदाज में एक प्लेन में बैठे हुए दिखते हैं।

इस आरोप के बाद उम्मीद की जाती है कि प्रधानमंत्री संसद में इस आरोप का जवाब देंगे लेकिन, ऐसा नहीं होता। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर लोकसभा और राज्यसभा में प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान विपक्ष लगातार मोदी-अडाणी भाई-भाई के नारे लगाता है। इन सबके बावजूद प्रधानमंत्री अपने लगभग एक घंटे लंबे भाषण में राहुल गांधी के नाम तक का जिक्र नहीं करते। वह अडाणी मामले पर भी कोई सफाई नहीं देते।

मोदी ऐसे देते हैं विरोधियों को अपना जवाब

हालांकि, संसद के बाहर एक मीडिया संस्थान के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री कहते हैं कि हमारी सरकार आने से पहले घपले-घोटालों की खबरें अखबारों की हेडलाइन बनती थी। अब घोटालेबाजों के खिलाफ कार्यवाही सुर्खियां बनती हैं। यह सीबीआई, ईडी जैसी जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप का जवाब था।

साथ ही, प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि कुछ लोग भारत को नीचा दिखाने, देश का मनोबल तोड़ने की बात करते हैं। आज देश में इतना शुभ हो रहा है कि कुछ लोगों ने काला टीका लगाने का जिम्मा लिया है ताकि, देश को नज़र न लग जाए। इस टिप्पणी के ज़रिए उन्होंने राहुल गांधी के लंदन में दिए गए भाषण को निशाना बनाया लेकिन, उन्होंने किसी भी पार्टी या नेता का नाम नहीं लिया।

इन दो घटनाओं का ज़िक्र इसलिए जरूरी हो जाता है, ताकि यह समझने में आसानी हो कि आखिर प्रधानमंत्री के द्वारा राहुल गांधी या किसी विपक्षी नेता का नाम क्यों नहीं लिया जाता? साथ ही, यह समझना भी ज़रूरी है कि आखिर क्यों राहुल गांधी सरकार पर हमला करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम ज़रूर लेते हैं?

मोदी पर आरोप लगाने का सबसे बड़ा खतरा!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने राजनीतिक विरोधियों पर हमला करने के मामले में बेहद सजग हैं। वह त्वरित प्रतिक्रिया देने के बजाए सही समय और उचित प्लेटाफॉर्म का इंतज़ार करते हैं। मोदी अपने विरोधियों पर व्यक्तिगत हमला करने के बजाए उनके आरोपों को भारत विरोधी, सेना विरोधी, वंशवादी और विकास विरोधी साबित कर देते हैं।

इसका सबसे बड़ा उदाहरण पाकिस्तान में बालाकोट पर हुए सर्जिकल स्ट्राइक की घटना है। विपक्ष ने इस हमले से हुए नुकसान के सबूत मांग कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को घेरने की कोशिश की थी। मोदी ने विपक्ष के इस आरोप को भारतीय सेना के मनोबल को गिराने वाला और देश विरोधी बता कर विपक्ष को ही कटघरे में खड़ा कर दिया था।

इसी तरह सीबीआई और ईडी के दुरुपयोग वाले विपक्ष के आरोप को उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ देश लड़ाई को कमजोर करने की साजिश बता कर कमजोर करने की कोशिश की। मतलब साफ है कि मोदी खुद पर लगे आरोपों को देश विरोधी, विकास विरोधी, धर्म विरोधी, संस्कृति विरोधी बताकर विरोधियों को ही मुसीबत में डाल देते हैं।

क्यों मोदी से हार जाते हैं उनके विरोधी?

शायद इसी का असर है कि मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री के अब तक के सफर में कोई भी विरोधी उन्हें राजनीतिक तौर पर पराजित नहीं कर सका है। विवाहित होने के बावजूद उनका खुद का कोई घर या परिवार नहीं है। उनके परिवार का कोई भी सदस्य न तो राजनीति में है न ही किसी प्रभावशाली पद पर। इतने लंबे राजनीतिक जीवन में उन्हें कभी छुट्टी या राजनीति से ब्रेक लेते हुए नहीं देखा गया।

राष्ट्रीय राजनीति में बेहद कम समय में एक सफल राजनेता के तौर पर स्थापित हो चुके दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल भी विपश्यना करने चले जाते हैं। राहुल गांधी अक्सर विदेश यात्रा करते हुए दिख जाते हैं। ममता बनर्जी पर अपने भतीजे अभिषेक को आगे बढ़ाने का आरोप लगता है।

इन उदाहरणों से समझा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी अपनी सार्वजनिक छवि को गढ़ने और उसे बनाए रखने को लेकर बेहद सजग हैं। शायद यही वजह है कि उन्हें 24/7 पॉलिटिशियन कहा जाता है।

इस मामले में मोदी से अलग हैं राहुल गांधी

व​ह सार्वजनिक तौर पर वह किसी नेता पर व्यक्तिगत हमला करने से बचते हैं। इसकी एक वजह यह हो सकती है कि शायद वह नहीं चाहते कि किसी नेता को उनका प्रतिद्वंदी बताकर उनके समकक्ष खड़ा किया जा सके।

अब अगर बात राहुल गांधी की करें तो वह अपने सभी आरोपों में चौकीदार चोर, मोदी-अडाणी भाई-भाई, ललित मोदी-नीरव मोदी-नरेंद्र मोदी जैसे उदाहरणों का इस्तेमाल करते हैं। वह सरकार या उसकी नीतियों पर हमला करने के बजाए प्रधानमंत्री पर व्यक्तिगत हमला करते हैं।

राफेल खरीद में घोटाले के आरोप से लेकर चौकीदार चोर वाले बयान का राहुल गांधी या कांग्रेस को क्या फायदा हुआ यह किसी से छुपा नहीं है। एक बार फिर से मोदी सरनेम के बारे में राहुल गांधी का बयान चर्चा में है। अपने इसी बयान की वजह से राहुल गांधी संसद की सदस्यता गवां चुके हैं।

क्या 20 साल पुराना इतिहास दोहराने जा रहे हैं राहुल गांधी

फिलहाल, कांग्रेस का आरोप है कि यह राहुल गांधी को संसद में बोलने से रोकने की सोची-समझी साजिश है। कांग्रेस इस फैसले के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने और सड़क पर आंदोलन करने की बात कह रही है। साफ है कि कांग्रेस अभी भी इस लड़ाई को राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी बनाना चाहती है। यह राहुल को मोदी के मुकाबले एक ऐसे नेता के तौर पर पेश करने कोशिश है जो अपनी पार्टी को बचाने के लिए अपने राजनीतिक करियर को भी दांव पर लगाने के लिए तैयार हैं।

क्या कांग्रेस या राहुल गांधी की यह कोशिश कामयाब होगी? क्या यह बलिदान राहुल गांधी को सोनिया गांधी की तरह पार्टी अध्यक्ष या प्रधानमंत्री से ज़्यादा प्रभावशाली नेता बना देगा?

सोनिया गांधी ने खुद पर लगे विदेशी मूल के आरोपों का ऐसा जवाब (17 मई 2004 का भाषण) दिया था कि वह कांग्रेस पार्टी की लेडी आइकन बन गईं थीं। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बावजूद पार्टी और सरकार पर सोनिया गांधी का प्रभाव किसी भी नेता या मंत्री से ज्यादा था। क्या राहुल गांधी इतिहास को दोहराने जा रहे हैं? अगले दो महीने से भी कम समय में कर्नाटक विधानसभा चुनाव और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव नतीजे ही इन सवालों का सटीक जवाब होंगे।