कृषि कानूनों और सरकारी संपत्तियों को बेचने पर भाजपा से जुदा है संघ के मूर्धन्य चिंतक गोविंदाचार्य की राय


आरएसएस के प्रचारक रहे चिंतक गोविंदाचार्य की किसान आंदोलन और सरकारी संपत्तियों को बेचने को लेकर राय कुछ अलग है। वे यहां सरकार की कुछ ख़ामियां भी गिनाते हैं। उनकी नज़र में सरकार द्वारा संपत्तियों को बेचना भी लाभप्रद नहीं है।


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साक्षात्कार Updated On :

एक ज़माने में भारतीय जतना पार्टी की धुरी रहे प्रचारक गोविंदाचार्य आजकल ख़बरों से दूर हैं। वे अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना नहीं करते और उनसे जुड़े ज्यादातर मामलों पर बोलने से बचते हैं।   

गोविंदाचार्य नर्मदा यात्रा पर नरसिंहपुर पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने देशगांव के बृजेश शर्मा से कई मुद्दों पर बात की। बहुत से मुद्दों पर उनके जवाब घुमावदार रहे लेकिन किसान आंदोलन और सरकारी संपत्तियों को बेचने को लेकर उनकी राय कुछ अलग है।

बातचीत के कुछ अंश…

सवालः  आप बीस साल से अध्ययन अवकाश हैं और वैश्वीकरण पर आपका बेहतर चिंतन व मंथन रहा है। वैश्वीकरण के अध्ययन में क्या नई प्रवृत्तियां पाईं हैं और इस दौरान कितने नए ट्रेंड पनपे हैं?

जवाबः मैंने इस अध्ययन में पाया कि ग्रामीण गरीबी बाजारवाद से नहीं घटेगी, शहरी गरीबी कुछ घटी पर उसके साथ कुछ विसंगति, बेरोजगारी, गंदगी, भ्रष्टाचार, उपभोगवास, स्वेच्छाचार, अपसंस्कृति पनपी। कमजोर वर्ग विशेष तौर पर महिलाओं पर हिंसा बढ़ी। पर्यावरण का विध्वंस बढ़ा। इसके समाधान के लिए कौटिल्य शोध संस्थान, भारत विकास संगम, राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के जरिए रचनात्मक काम करना शुरू किया है।

सवालः  तीन कृषि बिल को लेकर किसानों का जो आंदोलन चल रहा है। कृषि बिल व आंदोलन को लेकर आपका क्या रूख है?

जवाबः दोनों खेमों की बात को ध्यान में रखते हुए मैंने अपनी बात रखी। वह यह कि विश्वास और संवाद आवश्यक है। सरकार बड़े भाई का पक्ष और आंदोलनकारी छोटे भाई हैं।

मैंने तीन बातें रखीं। एक यह कि जब सरकार एमएसपी की बात कर रही है तो उस पर कानून बना दिए जाए तो क्या हर्ज है। इससे किसानों में विश्वास बढ़ेगा।

दूसरी बात यह कि एडीएम को सर्वे सर्वा बना दिया गया है तो किसानों को लग रहा है कि वह कहीं न कहीं दबाब में रहेगें। कोर्ट में जाने का कोई आप्शन नहीं रखा है। मैंने इस पर कहा कि 11 लोगों की कमेटी बना दी जाए जिसमें चार लोग किसान भी रहें। एक दो आढ़तिए रहें। इस पर भरोसा बनेगा। मुख्य समस्या यह है कि अविश्वास का निदान हो।

और तीसरी बात यह है कि आप कानून में 23 जिन्सों की बात कर ही रहे हैं तो उसमें गेहूं चांवल को बाहर क्यों कर रहे हैं। अभी तनाव की स्थिति है तो ऐसी क्या अर्जेन्सी है कि उन्हें बाहर किया गया है। अभी फिलहाल उन्हें बहाल कर दीजिए हालांकि अब मैं ज्यादा दखल नहीं दे सकता।

 

सवालः आप नर्मदा की यात्रा किस उद्देश्य से कर रहे हैं?

जवाबः मैं तो शुद्ध रूप से धाार्मिक व आध्यामिक भाव से यात्रा कर रहा हूं। बीस साल पहले अप्रैल २००३ में नर्मदा जी की यात्रा पर था और अब फिर नर्मदा जी की यात्रा पर हूं। नर्मदा जी का भौतिक स्वरूप किस तरह का है यह देख रहा हूं। कोई दूसरा ध्येय नहीं है। प्रार्थना है कि नर्मदा जी मुझे राह बताएं ताकि मैं अच्छा कर सकूं।

सवालः मप्र में उमाभारती शराबबंदी की बात कर रही हैं। आप मप्र में वर्षों बाद फिर सक्रिय हुए हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि यह सब मौजूदा शिवराज सरकार के अनुकूल संकेत नहीं है?

जवाबः आप गौर करेगें, हमने तो 1 सितंबर से 2 अक्टूबर तक गंगा प्रवाह यात्रा की थी। वहां उसका न तो कोई राजनैतिक संबंध था और न यहां पर है। सब अपने परिचित हैं। सबके साथ शुभेच्छु हैं। सबका अपना-अपना दायरा है। काम अपना- अपना है। मुझे तो अपनी सीमाओं का ध्यान है। जिस रास्ते को लेकर छुट्टी ले ली थी उस रास्ते में कितने आम और नीम के पेड़ हैं। इसे गिनने में मैं क्यों वक्त लगाऊं। मैं, अपने काम में सामाजिक स्तर पर लगा हूं। मैं पूर्णत: संतुष्ट हूं। मेरा कोई राजनैतिक एजेंडा नहीं है।

सवालः आपका एक बयान था कि नरेन्द्र मोदी जी बड़े बुद्धिमान है। आप राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन से भी जुड़े हैं। तब केन्द्र द्वारा पब्लिक सेक्टर के उपक्रम प्राइवेट सेक्टर में दिए जा रहे हैं इस पर आप क्या कहेंगे?

जवाबः निश्चित तौर पर मैंने सात्विक भाव से कहा था कि वह बुद्धिमान हैं और काफी परिश्रमी हैं। उनमें पहल है। डिसीजन मैकिंग हैं। नियम व गुणों की चर्चा सर्वत्र होती है। दोष सभी स्थानों पर नहीं बताए जाते। आत्मनिर्भर भारत के लिए काम किया जाना चाहिए। सोलर एनर्जी की दिशा में आगे बढ़ा जाना जरूरी है।  लाभदायी सार्वजनिक उपक्रमों को नहीं बेचना चाहिए। इससे लाभ नहीं होगा,  इस आशंका के कारण यदि बेच रहे हैं तो यह उचित नहीं है। कई उपक्रम घाटे में हैं तो उनके लिए कई विकल्प भी हैं। जहां तक संभव है देश की संपदा देश के ही हाथ में रहे तो बेहतर है।

सवालः आप वैश्वीकरण पर बेहतर अध्ययन कर चुके हैं। भारत में पेट्रोलियम पदाथों की कीमतें जिस तरह कीमती बढ़ रही हैं। दुनिया के अन्य देशों की अपेक्षा उन पर आप क्या कहेगें?
जवाबः आयल पूल की बात चलती है। सरकार को और भी कामों के लिए पैसों की जरूरत पड़ती है। बढ़ती कीमतों पर सरकार को विचार करना चाहिए कि इसका क्या पैमाना हो।

सवालः समाज का एक नैसर्गिक सिद्धांत है कि दूसरे पक्ष को भी सुनो। पर अब दूसरे पक्ष को सुनने वाली बात धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। दिशा रवि का उदाहरण है।
जवाबः साख एक कारण है। अभी जैसा किसान आंदोलन हुआ मैं तो उसे भूल व गलती मानता हूं। रेहाना और पर्यावरण एक्टिवेट ग्रेटा थानबर्ग को बीच में क्यों लाना। ऐसे में समाजहित में काम करने वालों की साख गिरती है। विश्वसनीयता घटती है। रेहाना और ग्रेटा थानवर्ग को अपने देश का देखना चाहिए। हम भारत हैं सक्षम हैं।

सवालः आप आरएसएस के प्रचारक रहे हैं। भाजपा में पूर्व महासचिव रहे हैं। अटल जी की भाजपा और नरेन्द्र मोदी जी की भाजपा में क्या अंतर है?
जवाबः मैं तो नए भाजपा कार्यालय में अब तक गया हीं नहीं। कभी सामाजिक समारोह में सभी से भेंट हो जाती है। मेरे पास काम बहुत है। सभी अनुभवी लोग हैं। बेहतर कर रहे हैं। हम  फैसला देने वाले कौन हैं। हम अपना काम ठीक से कर रहे हैं।

सवालः  गंगा की अविरल प्रवाह के बाद अब नर्मदा और नदियों के अस्तित्व पर आपक क्या कहेगें?
जवाबः नर्मदा व पूरक नदियों के प्रवाह पर भी ध्यान देने की जरूरत है।