एमपीः कोरोना काल में मुनाफ़ा कमाने की हवस, घर पर ही बनाया जाता है नकली प्लाज़्मा


अख़बारी ख़बरें बताती हैं कि मामले का आरोपी अपने घर पर ही डिस्टिल्ड वॉटर और नार्मल सेलाइन मिलाकर एक यूनिट से पांच यूनिट तक प्लाज़्मा तैयार कर लेता था। आरोपी को शनिवार को ही पकड़ लिया गया था इसके बाद से ही पुलिस जांच कर रही है। रविवार को जब पुलिस उसे लेकर उसके घर पहुंची तो अधिकारी भी अचरज में पड़ गए। 


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प्रतीकात्मक चित्र


भोपाल। प्रदेश में कोरोना से साढ़े तीन हजार मौत हो चुकी हैं। इस दौरान कितने ही परिवार उजड़ चुके हैं और कई आर्थिक रूप से टूट चुके हैं लेकिन इसके बाद भी कुछ लोगों की कोरोना से पीड़ितों से मुनाफ़ा कमाने की हवस कम नहीं हुई है।

ग्वालियर में नकली प्लाज़्मा चढ़ाए जाने के बाद एक की जान चली गई। नकली प्लाज़्मा पुलिस और स्वास्थ्य विभाग के लिए भी अचरज की बात थी। अब पता चला है कि नकली प्लाज़्मा बनाने के लिए आरोपी अजय शंकर त्यागी घर पर ही पूरी प्रक्रिया को अंजाम देता था और थोड़े बहुत पैसे खर्च कर बीसीयों हज़ार रुपये कमा लेता था।

ख़बरों के मुताबिक दतिया के रहने वाले मनोज कुमार गुप्ता को कोरोनावायरस के चलते ग्वालियर के अपोलो अस्पताल में भर्ती किया गया था यहां अस्पताल की ओर से उनसे  प्लाज़्मा की मांग की गई थी। अस्पताल के कर्मचारी ने ही यहां उनके लिए प्लाज़्मा का इंतज़ाम करने की बात कही थी।  यहां 18 हजार रुपये में दो घंटे के अंदर प्लाज़्मा उपलब्ध करा दिया गया और जिसे डॉक्टर ने बिना जांच किए ही मरीज़ को चढ़ा दिया। कुछ समय बाद मरीज की मौत हो गई।

अख़बारी ख़बरें बताती हैं कि आरोपी त्यागी अपने घर पर ही डिस्टिल्ड वॉटर और नार्मल सेलाइन मिलाकर एक यूनिट से पांच यूनिट तक प्लाज़्मा तैयार कर लेता था। आरोपी को शनिवार को ही पकड़ लिया गया था इसके बाद से ही पुलिस जांच कर रही है। रविवार को जब पुलिस उसे लेकर उसके घर पहुंची तो अधिकारी भी अचरज में पड़ गए।

आरोपी त्यागी अपने घर पर एक कई तरह की सुविधाएं जुटाए हुए था। यहां खाली ब्लड बैग, क्लिप, सिरिंज, सेलाइन के अलावा फर्जी सील, क्रॉस मैचिंग रिपोर्ट, रेडक्रास सोसायटी की रसीदें उसके पास  मिलीं। यह सभी उसे घटिया प्लाज़मा तैयार करने और इसके बाद बाजार में बेचने में काम आते थे।

अजय दस साल पहले रेडक्रॉस में काम कर चुका है। उस समय से ही वह खून की खरीद-फरोख़्त में शामिल था। इसके बाद कोरोना काल के दौरान उसे प्लाज़्मा और इसकी मौजूदा ज़रूरत के बारे में पता चला तो उसने अस्पताल की फर्जी सील और रसीदें बनवा लीं। त्यागी ने 80 रुपये का खाली ब्लड बैग एक पैथालॉजी के नाम के साथ 200 रुपये में खरीदा।

त्यागी साढ़े चार सौ एमएल के ब्लड बैग खरीदा हुआ प्लाज़्मा भरकर उसमें नार्मल सलाइन लगाकर मात्रा बढ़ा लेता था और फिर वह एक से दो-चार बैग बना लेता था। त्यागी ने मुनाफ़े का लालच देकर अपने साथ अस्पताल के कई लोगों को शामिल कर लिया था।मु



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