शहरी गरीबों के लिए आवास: मिशन या मिलीभगत!


दुनिया को बदलने के लिए 17 स्थायी विकास लक्ष्य (एसडीजी) निर्धारित किए गए हैं, जिनमें 11वें नंबर का लक्ष्य टिकाऊ शहरों और समुदायों के बारे में बात् करता है। आवास का मसला भी इसी के अंतर्गत आता है। कहने का मतलब है कि “पर्याप्त आवास” और यहाँ यह मध्यम वर्ग। निम्न मध्यम वर्ग और हाशिये पर रहने वाले यानी गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के आवास पर पूरी तरह से जोर देता है।


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मकान Updated On :

संयुक्त राष्ट्र की आम सभा ने सतत विकास के लिए 2030 एजेंडे को अपनाया है, जिसमें सितंबर 2015 में 17 सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) शामिल किए गए। “कोई भी न छूटे” के सिद्धांत पर चलते हुए नया एजेंडा सभी के लिए सतत विकास को हासिल करने के समावेशी दृष्टिकोण पर जोर देता है।

दुनिया को बदलने के लिए 17 स्थायी विकास लक्ष्य (एसडीजी) निर्धारित किए गए हैं जिनमें 11वें नंबर का लक्ष्य टिकाऊ शहरों और समुदायों के बारे में बात् करता है। आवास का मसला भी इसी के अंतर्गत आता है। कहने का मतलब है कि “पर्याप्त आवास” और यहाँ यह मध्यम वर्ग। निम्न मध्यम वर्ग और हाशिये पर रहने वाले यानी गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के आवास पर पूरी तरह से जोर देता है।

भारत में इस समस्या से निपटने के लिए पहले भी कई प्रयास किए गए थे। लेकिन नौकरशाहों, किताबी ज्ञान वाले शिक्षाविदों, बिल्डरों और निश्चित रूप से भ्रष्ट राजनेताओं  के बीच की आपसी मिलीभगत से फायदे की रणनीति अपनाने के कारण प्रयास बार-बार विफल होते गए। लेकिन नौकरशाहों, किताबी ज्ञान वाले शिक्षाविदों, बिल्डरों और भ्रष्ट राजनेताओं की चौकड़ी को लाभ पहुंचता रहा।

भारत के लिए भी यह अनिवार्य था कि वह खुद को अंतरराष्ट्रीय समुदाय  का हिस्सा साबित करे और एसडीजी को अपनाए, और इसे ही साबित करने के लिए हमने बहुत सी योजनाओं और परियोजनाओं की घोषणा की और एसडीजी नंबर 11 से निपटने के लिए, प्रधान मंत्री आवास योजना (शहरी) मिशन 25 जून 2015 को शुरू किया, जो वर्ष 2022 तक शहरी क्षेत्रों में सभी के लिए आवास प्रदान करने का इरादा रखता है।

 

मिशन पीएमएवाई (यू) के दिशानिर्देशों के अनुसार, 1.12 करोड़ के लिए घरों की वैध मांग के लिए पात्रता रखने वाले सभी परिवारों/लाभार्थियों को घर प्रदान करने के लिए, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्रीय नोडल एजेंसियों के माध्यम से कार्यान्वयन एजेंसियों को केंद्रीय सहायता प्रदान करता है।

लेकिन जब हम इसे करीब से देखते हैं तो हम स्पष्ट रूप से जमीनी हकीकत कुछ और दिखती है। दरअसल हुआ यह है कि पात्र परिवारों और मान्य मांग की परिभाषा कूटनीतिक रूप से उस उपरोक्त चौकड़ी के पक्ष में बदल दी गई है। एक नज़दीकी पर्यवेक्षक के तौर पर राज्य आधारित अरबन लेबर फेडरेशन, एमपीएनएनएम (मध्य प्रदेश नव निर्माण मंच) ने कई बार परिवर्तित परिभाषाओं का मुद्दा उठाया है। क्योंकि यह घर प्रदान करने या आवास सुधार करने के लिए नहीं था। बल्कि यह पूरी तरह से शहरों या शहरी केंद्रों के कार्यबल से भूमि को हथियाने के लिए था।

जब हम इंदौर, भोपाल, जबलपुर, उज्जैन के उदाहरण देखते हैं, तो हम पाते हैं कि लोगों को सुधारों के नाम पर उनके अच्छी तरह से तैयार किए गए जलवायु के प्रति संवेदनशील  घरों से जबरदस्ती निकाल कर कबूतरखानों जैसे आवास स्थलों में फेंक दिया गया है। उन्हें सीमेंट कंक्रीट के ‘वर्टिकल स्लम्स’ में डाल दिया गया है और उनकी जमीन को हड़प कर लाभ कमाने के लिए बिल्डरों को हस्तांतरित कर दिया गया है। क्योंकि अगर हम पीएमएवाई को देखें तो इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि हासिल की गई भूमि संसाधन के रूप में देखी जाएगी।

संगठनों द्वारा निजी स्तर पर एकत्र किए गए आंकड़े साफ तौर पर इस बात को रेखांकित करते हैं कि बदतर स्थिति और गैर-टिकाऊ तथाकथित घर आवंटित किए गए थे और नकली विकास के नाम पर अच्छी स्थिति वाले घरों को तोड़ दिया गया था। और यहां भी जिन परिवारों के घरों को ध्वस्त कर दिया गया था। उनको ‘वर्टिकल स्ट्रक्चर यूनिट’ प्रदान नहीं की गईं। इसका स्पष्ट रूप से मतलब है कि ध्वस्त किए गए घरों की तुलना में दिए गए घरों की संख्या कम रही। यद्यपि मध्य प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में शहरी गरीब श्रमिकों को अपने घरों के लिए भूमि अधिकार प्रदान करने के लिए मध्य प्रदेश के अपने स्वयं के सर्वोत्तम कानून और प्रावधान हैं।

मध्य प्रदेश में पट्टा अधिनियम है, जो 1984 में श्री अर्जुन सिंह द्वारा पहली बार शहरी समुदाय को आवास के लिए पट्टे पर अधिकार प्रदान करने के लिए पेश किया गया था। यह देश में सबसे अच्छे अधिनियमों में से एक है जो शहरी गरीब श्रमिक को भूमि अधिकार देता है, और कई अन्य राज्य इसे अपना रहे हैं। उड़ीसा इसका हालिया उदाहरण है।

आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्लूएस) के लिए 15% भूमि संरक्षण (जो अब पूरी तरह से समाप्त हो गया है) – का प्रावधान उन सबसे अच्छे प्रावधानों में से एक था, जो शहरी कामगार परिवारों को मध्यवर्गीय समाज के बीच जाने और रहने और अपने बच्चों को एक अच्छा भविष्य देने का मौका देते हैं और मध्यवर्गीय समाज को भी सेवा प्रदान करने वाला समुदाय मिल जाता है।

अब मुद्दा आता है मास्टर प्लान में रिलोकेशन साइट का। शहरी मलिन बस्तियों के लिए पुनर्वास स्थलों को बिल्डरों ने सांठगांठ के सहारे हथिया लिया है, क्योंकि पुनर्वास स्थलों की पहचान के बाद इतने सालों में शहर का विस्तार होने के कारण, वे क्षेत्र शहर के केंद्र में आ गए। जबकि मार्किंग के समय वे स्थल शहर की परिधि पर थे। सिटी योजना में यह निर्णय लिया गया था कि यदि किसी बस्ती या परिवार की भूमि किसी अन्य सार्वजनिक उद्देश्य के तहत आ रही है, तो उन्हें स्थानांतरित किया जाना चाहिए।

लेकिन उनकी आजीविका प्रभावित नहीं होनी चाहिए। उन्हें 1971-91 मास्टर प्लान में उनके मौजूदा रहने की जगह से 2 किमी के दायरे में जमीन दी गई थी। लेकिन यह जमीन समय अवधि के भीतर ही हथिया ली गई और अब शहरी कार्यबल को अन्य अनुपयुक्त और अनियोजित स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया गया है, जहां वे निकट भविष्य में फिर से बेदखली का सामना करेंगे।

इन मौजूदा कानूनों और प्रावधानों को प्राथमिकता देते हुए अपनाने के बजाय राज्य केंद्र द्वारा संचालित योजनाओं को अपना रहे हैं और उन्हें स्मार्ट सिटी मिशन (एससीएम), एएमआरयूटी, पीएमएवाई, एसबीएम आदि के लिए रूपांतरित कर रहे हैं। आज जलवायु के प्रति संवेदनशील शहरों और समुदायों की आवश्यकता है।

जहां केंद्रीय रूप से जमा किया गया कचरा एक बड़ा अवरोध है और जहां स्थानीय निवासियों की सहमति के बिना उनके घरों को ध्वस्त करने के बजाय उनकी पूरी भागीदारी के साथ झुग्गियों को अपग्रेड करने की आवश्यकता है। इसमें लागत भी कम लगेगी। लेकिन यहां तो इरादा ही अलग है। यहां इरादा भूमि हड़पने का है। ताकि लाभ कमाने के लिए जमीन निजी बिल्डरों को दी जा सके, और यह सोच और कदम एसडीजी नंबर 11 और अन्य लक्ष्यों के भी कथित उद्देश्य से बिलकुल अलग है।

  (आनंद लाखन मध्यप्रदेश नव निर्माण मंच (एमपीएनएनएम) के संस्थापक हैं)