जो कहता है कि व्यापम की लड़ाई खत्म है, समझो उसका मोरल खत्म है…


व्‍यापम की लड़ाई आशीष चतुर्वेदी या आनंद राय की लड़ाई नहीं है। मेरी जमीन किसी ने नहीं ले ली। यह मध्‍य प्रदेश के हर उस व्‍यक्ति की लड़ाई है जिसका परिवार इससे प्रभावित है।


आदित्य सिंह आदित्य सिंह
बड़ी बात Published On :

आशीष चतुर्वेदी
विसिल ब्‍लोअर, व्‍यापम घोटाला, ग्‍वालियर

मेरी मां को 2007-08 के दौरान कैंसर का पता चला था। ग्‍वालियर में एक कैंसर हॉस्पिटल हैं डॉ. बीआर श्रीवास्‍तव का, जिनके यहां हमने उनको दिखाया था। उन्‍होंने मां को भर्ती किया और कई दिन रखने के बाद उनका ऑपरेशन किया। मुझे अच्‍छी तरह से याद है कि वह धनतेरस का दिन था जब वे बोले कि अब मां को घर ले जाओ क्‍योंकि ये बचेंगी नहीं जबकि ऑपरेशन के पहले उन्‍होंने कहा था कि सब ठीक हो जाएगा। हम मन मार के उन्‍हें ले आए। कुछ दिन बाद मम्‍मी घर के नियमित कामधाम में लग गईं और ऐसे ही सब चलता रहा। हमें आश्‍चर्य हुआ कि डॉक्‍टर ने तो दस-पंद्रह दिन ही उनके बचने का कहा था लेकिन देखने में तो ऐसा कुछ लग नहीं रहा, बल्कि उलटे वे रिकवर हो रही थीं।

हमने कुछ और डॉक्‍टरों से सलाह ली। उनकी राय थी कि या तो ऑपरेशन गलत हुआ है या बीमारी गलत डायग्‍नोस हुई है। इसलिए हमें सेकंड ओपिनियन लेना चाहिए। मेरे पिता जिंदगी में कभी ग्‍वालियर-चंबल के बाहर नहीं गए थे, भोपाल भी नहीं। बहुत दबाव के बाद हालांकि हम लोग जैसे-तैसे मुंबई में टाटा मेमोरियल गए। वहां के डॉक्‍टरों का कहना था कि ऑपरेशन गलत हुआ है। मां को कैंसर पैंक्रियाज में था लेकिन डॉक्‍टर ने गॉल ब्‍लैडर निकाल दिया था

उनका कहना था कि इस कैंसर का ऑपरेशन ग्‍वालियर में संभव ही नहीं था। ये तो सीधे-सीधे फ्रॉड समझ में आया। बहरहाल, इसके बाद टाटा में ऑपरेशन हुआ और मां तीन साल तक जिंदा रहीं। मेरी लड़ाई यहीं से शुरू हुई। बहुत बाद में जाकर मैंने मां का ऑपरेशन करने वाले डॉक्‍टर श्रीवास्‍तव और उनकी दोनों बेटियों के खिलाफ व्‍यापम घोटाले में एफआइआर करवाई। इस बीच की पूरी कहानी एक संयोग से शुरू हुई।

संयोग से हुई ब्रजेंद्र रघुवंशी से मुलाकात –

दरअसल, मैं आरएसएस में ग्‍वालियर में म‍ेडिकल शाखा का काम देखता था। लौट कर आने पर मेडिकल के कुछ दोस्‍तों से बात हुई। उनका कहना था कि मेडिकल में कुछ अयोग्‍य लोग मौजूद हैं, लेकिन वे आते कैसे हैं यह उन्‍हें नहीं पता था। संयोग कहिए कि मेडिकल शाखा में मेरी मुलाकात एक मेडिकल छात्र से हुई जो 2009 बैच का सातवां टॉपर था। उसका नाम ब्रजेंद्र रघुवंशी था। उसके पिता देवेंद्र रघुवंशी आरएसएस में संगठन मंत्री थे और ये लोग विदिशा के रहने वाले हैं। मुझे लगता था कि टॉपर है तो तेज होगा ही, लेकिन वह पहले ही इम्तिहान में फेल हो गया। मुझे थोड़ा आश्‍चर्य हुआ।

इसके बाद वह आरएसएस के प्रचारकों के पास दौड़ने लगा। उस समय नरोत्‍तम मिश्र के भाई आनंद मिश्र जीवाजी युनिवर्सिटी में रजिस्‍ट्रार हुआ करते थे। यहां जिला प्रचारक थे खगेंद्र भार्गव। उन्‍होंने उससे कहा कि विस्‍तारक जी को लेकर आनंद मिश्र के पास चले जाना। विस्‍तारक जी मतलब मैं। और मुझे ही पता नहीं था कि मामला क्‍या है, मिलने क्‍यों जाना है। चूंकि ऊपर से कहा गया था तो मैं उसे लेकर चला गया। वो अंदर से मिलकर आया तो उसने बताया कि भाई साहब ने बोला है पुनर्मूल्‍यांकन में पास करवा देंगे।

हुआ भी वही। धीरे-धीरे मुझे संदेह हुआ। फिर मैंने अनाम शिकायतें दर्ज करवानी शुरू कीं, कि मेडिकल में फर्जी मुन्‍नाभाई रहे हैं। मैंने तो 2009 बैच की ही शिकायत की थी चूंकि उसके पहले का मुझे कुछ मालूम नहीं था। 2011 में एक जांच कमेटी मध्‍य प्रदेश शासन ने गठित की। इस कमेटी ने मध्‍य प्रदेश के 111 छात्रों की पहचान की जिसमें ग्‍वालियर के 36 छात्र थे। इनमें ब्रजेंद्र रघुवंशी का नाम भी शामिल था।

‘आरटीआई लगवा के फर्जी मुन्नाभाई को निकलवाओ’ –

जब ब्रजेंद्र का नाम लिस्‍ट में आया, उस वक्‍त मैं आरएसएस के ओटीसी कैम्‍प में था और मेरा मोबाइल जमा था। बाहर आया तो देखा ब्रजेंद्र के कई कॉल आए हुए थे। उसने मुझे बताया कि उसके पापा ने कहा है आशीष की मदद लो। उसके पिता ने उसे एक स्‍कीम बताई थी कि अगर उसके जैसे और मुन्‍नाभाई निकल आए, अगर 111 के एक हजार हो जाते हैं, तो सरकार बहुमत के आगे झुक जाएगी। इसलिए तुम आशीष की मदद से आरटीआई लगवा के और फर्जी मुन्‍नाभाई को निकलवाओ।

मैंने कहा कि तुमने तो बहुत मेहनत कर के पढ़ाई की थी, फिर डरने की क्‍या जरूरत है। कोर्ट में केस करते हैं कि तुम्‍हारा नाम गलत आया है और मुझे बदनाम किया गया है। तब जाकर इसने पूरी कहानी बताई कि ऐसा नहीं है, उसका सेलेक्‍शन उसके पापा ने करवाया है। जब उसका पेपर हो रहा था, तब वह भोपाल के डीबी मॉल में बैठकर फिल्‍म देख रहा था। मुझे तो विश्‍वास ही नहीं हुआ।

पीठ पीछे मैं लगातार शिकायतें दर्ज करवा रहा था –

फिर उसने मुझे अपनी योजना बताई। उसने कहा कि आशीष जी, अब मुझे माफिया बनना है। मैं पीजी कर लूंगा, फिर हम लोग अस्‍पताल डालेंगे। आपके नाम से गरीब लोगों को लाएंगे, उनका फ्री इलाज दिखाएंगे और उनकी किडनी, लिवर निकाल के बेचेंगे।

मेरे दिमाग में आया कि इसके साथ रह के सिस्‍टम को जब तक समझेंगे नहीं, तब तक सिस्‍टम क्रैक नहीं होगा। उसको भी लगा कि इसकी मां बीमार है, इसको पैसे की जरूरत है और लोकल लड़का भी है, तो साथ ले लो। इसने मुझसे कई आरटीआई लगवायी जिससे और भी फर्जी मुन्‍नाभाई लोग सामने आए।

इसके पीठ पीछे मैं लगातार शिकायतें भी दर्ज करवा रहा था। इसको कुछ पता नहीं था। इसके बाद 2011 में पीएमटी की परीक्षा हुई, तो इसके माध्‍यम से मैं पूरे फर्जीवाड़े का गवाह बना। निजी कॉलेजों में सीट बेचने का पूरा फर्जीवाड़ा मेरे सामने हुआ। इसके खिलाफ पहली एफआईआर मैंने ही करवाई। अक्‍टूबर आते-आते इन लोगों को आखिर पता लग ही गया कि मैं इनके खिलाफ शिकायत करवा रहा हूं।

ashish chaturvedi in hospital

धोखे से बुलाकर की मारपीट, अदालत में भी आरोपियों के वकीलों ने दी धमकी –

इन्‍होंने मुझे बहुत बुरी तरह धमकाया। मैं थाने पहुंचा, तो उलटा मुझे ही सुना कर वापस भेज दिया गया और एफआईआर नहीं ली गई। चार दिन बाद इन्‍होंने मुझे एक ट्रैप में फंसाकर मेडिकल कॉलेज बुलाया और हॉस्‍टल में ले जाकर रूम नंबर 16 में बंद कर दिया।

फिर इन्‍होंने मेरी बहुत पिटाई की और दबाव में कागज पर अंगूठे के निशान लगवाए। इस बीच एक लड़की के सहारे इन्‍होंने मुझे फंसाने की भी कोशिश की, लेकिन किसी तरह मैं बच गया। मैं एकदम मरने की स्थिति में आ गया था। एक भला लड़का था उसी हॉस्‍टल में, उसने मेरे परिचित एक सीनियर को कॉल कर के सारी स्थिति बतला दी।

उन्‍होंने जब लड़कों को धमकाया, तो मुझे सड़क किनारे ले जाकर फेंक दिया गया। मैं ट्रॉमा सेंटर में भर्ती हुआ। वहां भी मुझे जान से मारने की धमकी मिली। फिर अदालत में भी इनके वकीलों ने मुझे धमकी दी, लेकिन मेरी लड़ाई चलती रही।

एसआईटी ने सबसे ज्यादा फर्जी डॉक्टर ग्वालियर में पकड़े –

जब इंदौर में 2013 में पीएमटी का पेपर लीक हुआ और जांच शुरू हुई, तब मैं कागजात लेकर वहां गया लेकिन पुलिस ने बहुत दिलचस्‍पी नहीं दिखाई। मामला तूल पकड़ चुका था, तो मुख्‍यमंत्री ने एसटीएफ को घोटाले की जांच का काम सौंप दिया। दरअसल, एसटीएफ को जांच इसलिए सौंपी गई क्‍योंकि उसके एडीजी सुधीर कुमार शाही विदेश की पोस्टिंग से आए हुए थे और सरकार को लगता था कि उनको ज्‍यादा कुछ मालूम नहीं होगा। उलटे शाही साहब की इसमें दिलचस्‍पी पैदा हो गई।

उन्‍होंने हमें बुला-बुला के सब कुछ समझा और चीजें आगे बढ़ती गईं। हर जिले में एसआईटी बनाई गई। सबसे ज्‍यादा फर्जी डॉक्टर ग्‍वालियर एसआईटी ने पकड़े क्‍योंकि उसके पास सबसे ज्‍यादा इनपुट थे। अखबार ने उस दौरान लिखा था कि ग्‍वालियर के इतिहास में जितने डकैत नहीं हुए, उससे ज्‍यादा फर्जी डॉक्‍टर निकले। इसके बाद सरकार ने एसटीएफ के ऊपर एक एसआईटी बना दी और एसटीएफ के हाथ-पैर बांध दिए। फिर हम लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और अदालत ने 2015 में जांच सीबीआई को सौंप दी।

ashish chaturvedi on bed

पूरे एक साल तक कैमरे से हुई मेरी रिकॉर्डिंग –

मैं व्‍यापम घोटाले में इकलौता आदमी हूं जिसकी सरकार और पुलिस ने पूरे एक साल तक कैमरे से रिकॉर्डिंग की। मेरे साथ सुरक्षा के लिए एक पुलिसवाला रहता है। सरकार ने उसके साथ एक कैमरामैन को तैनात कर दिया था। मेरे खिलाफ बहुत सारे आरोप लगाए गए थे। उसके बाद निगरानी शुरू हुई।

मैंने जब इसकी वैधता पर सवाल उठाए तब कहा गया कि मैं साइकिल से चलते-चलते गायब हो जाता हूं और कैमरे में कैद नहीं हो पाता हूं। उन्‍होंने मुझे आदमी ही नहीं छोड़ा। अखबार ने मुझे मिस्‍टर इंडिया लिख दिया। जब खबर मीडिया में आई तो सारे अधिकारियों ने इनकार कर दिया कि किसी ने ऐसा आदेश दिया था। फिर मैं अदालत गया। अदालत ने अगली तारीख पर कैमरा मंगवाया, तो कैमरा गायब हो गया। आज तक मेरी शिकायत लंबित है।

उस समय मध्‍य प्रदेश के एडीशनल एडवोकेट जनरल थे एमपीएस रघुवंशी। उन पर भी मेरे आरोप थे। उन्‍होंने मुझे धमकी दी थी। उन्‍होंने मुझे कहा कि तुम रोड पर चलते हो, रोड पर एक्सिडेंट बहुत होते हैं, संभल कर चलना। इनके खिलाफ भी मेरी शिकायत लंबित है। आप इतने बड़े वकील हो। अगर मेरे आरोप गलत थे तो मेरे खिलाफ एक्‍शन ले लेते।

सुरक्षा के बावजूद भी कुल 19 बार हुए हमले –

ashish chaturvedi with gunner

मुझे आज भी सुरक्षा मिली हुई है, इसके बावजूद मेरे ऊपर कुल 19 बार हमले हुए हैं। सिक्‍योरिटी होते हुए भी 13-14 बार हमले हुए। सारी घटनाएं मैंने रिपोर्ट करवाईं। अभी तो मेरे पिताजी पर भी हमला हो गया। वे स्‍कूटी से ऑफिस जा रहे थे। कोई मार के निकल गया। पुलिस उसे पकड़ ही नहीं पाई।

पिछले एक साल से मैं बीमार चल रहा हूं इसलिए हमले तो नहीं हुए लेकिन बीमारी से मरते-मरते बचा। मेरे दोनों हाथ और फेफड़ों का ऑपरेशन हुआ था। अभी भी मेरा इलाज चल ही रहा है। असल में पिछले साल 25 अप्रैल को मैं बीमार हुआ। पहले वायरल हुआ, फिर पेट में, फेफड़ों में इनफेक्‍शन हुआ। हार्ट में पानी भर गया।

हालत जब ज्‍यादा बिगड़ गई, वेंटिलेटर पर आ गया, तब परिवार के लोगों ने 15 अगस्‍त को दिल्‍ली के गंगाराम अस्‍पताल में भर्ती करवाया। वहीं ऑपरेशन हुआ। मेरा दायां हाथ तो इतना ज्‍यादा इनफेक्‍टेड हो गया था कि काटने की नौबत आ गई थी। उसका पांच बार ऑपरेशन हुआ था।

ashish chaturvedi vyapam scam

100 से ज्यादा शिकायतों में कुछ नहीं हुआ जबकि 50 से ज्यादा में एफआईआर होना बाकी –

ये लड़ाई मैंने जब शुरू की थी तब 19 साल का था। आज 33 साल का हो चुका हूं। आज भी व्‍यापम में सौ से ज्‍यादा शिकायतें ऐसी हैं जिन्‍हें छुआ नहीं गया और पचास से ज्‍यादा ऐसी शिकायतें हैं जिनमें जांच पूरी हो चुकी है लेकिन एफआईआर दर्ज होना बाकी है। इनमें दस-पंद्रह तो मेरी ही होंगी।

खुद एडीजी एसटीएफ सुधीर कुमार शाही ने टिप्‍पणी की है कि मेरे द्वारा लगाए आरोप प्रथम दृष्‍ट़या सही पाए गए हैं। इसके बाद कौन सी जांच बच जाती है? व्‍यापम की लड़ाई आशीष चतुर्वेदी या आनंद राय की लड़ाई नहीं है। मेरी जमीन किसी ने नहीं ले ली। यह मध्‍य प्रदेश के हर उस व्‍यक्ति की लड़ाई है जिसका परिवार इससे प्रभावित है। जो भी कहता है कि व्‍यापम की लड़ाई खत्‍म हो गई है, समझो उसका मोरल खत्‍म हो चुका है।

(आदित्‍य सिंह से बातचीत पर आधारित)
यह स्टोरी देशगांव के साथी आदित्य द्वारा मूल रूप से आउटलुक के लिए लिखी गई थी, जिसे हम साभार लगा रहे हैं



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