
“छाती पर मूंग दलना” — यह कहावत अब मध्यप्रदेश के किसानों के हालात को बयां कर रही है। नरसिंहपुर जिले में किसानों ने बुधवार को एक अभूतपूर्व और प्रतीकात्मक प्रदर्शन कर सरकार का ध्यान अपनी गंभीर समस्याओं की ओर खींचने की कोशिश की। अर्धनग्न होकर घुटनों के बल चलते हुए किसानों ने कलेक्टर कार्यालय पहुंचकर मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। उनका एकमात्र और स्पष्ट संदेश था — “हमारी मूंग समर्थन मूल्य पर खरीदी जाए।”
खेती के लिए किया गया प्रोत्साहन अब बना सिरदर्द
पिछले वर्षों में सरकार द्वारा मूंग और सोयाबीन की समर्थन मूल्य पर खरीदी से किसानों में ग्रीष्मकालीन फसलों के प्रति भरोसा जगा। नतीजतन इस बार नरसिंहपुर और नर्मदापुरम जिलों में मूंग की बड़े पैमाने पर बुआई की गई। लेकिन जब फसल तैयार हुई और मंडियों में ले जाई गई, तो किसानों को गहरा झटका लगा — सरकार ने मूंग की खरीदी शुरू ही नहीं की।
सरकारी खरीद नहीं होने की वजह से मंडियों में मूंग का भाव लागत मूल्य से भी नीचे गिर चुका है। इससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है। कई किसानों ने तो खेती के लिए कर्ज लिया है, जिसकी भरपाई अब मुश्किल हो गई है।
प्रदर्शन क्यों हुआ इतना उग्र?
पिछले एक महीने से किसान संगठन और व्यक्तिगत किसान प्रशासन व सरकार से गुहार लगा रहे हैं। नतीजा शून्य। न कोई नोटिफिकेशन, न खरीदी केंद्रों की घोषणा। नतीजतन किसानों का सब्र टूट गया।
बुधवार को जब नरसिंहपुर में किसानों ने अर्धनग्न होकर घुटनों के बल चलकर प्रदर्शन किया, तो यह न सिर्फ शारीरिक रूप से थकाऊ, बल्कि भावनात्मक रूप से भी बेहद प्रतीकात्मक था। किसान यह दिखाना चाह रहे थे कि वे अब सरकार के सामने घुटनों के बल आ चुके हैं।
कलेक्ट्रेट पहुंचने के बाद किसानों ने ज़ोरदार नारेबाज़ी की और कलेक्टर शीतला पटेल को मुख्यमंत्री मोहन यादव के नाम का ज्ञापन सौंपा।
समर्थन मिला कांग्रेस का
इस मुद्दे पर राजनीतिक तापमान भी बढ़ने लगा है। कांग्रेस ने इस आंदोलन को सरकार की नाकामी का प्रतीक बताया है।
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने एक्स (पूर्व ट्विटर) अकाउंट पर वीडियो साझा करते हुए लिखा,
“केंद्रीय कृषि मंत्री खुद को किसान कहते हैं, लेकिन उनका रवैया किसानों का शोषण करने वाला है।”
वहीं नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार ने भी इस मुद्दे पर सरकार को आड़े हाथों लिया और कहा कि यह सरकार केवल घोषणा करती है, काम नहीं।
किसानों की प्रमुख मांगें:
1. ग्रीष्मकालीन मूंग और उड़द की तत्काल समर्थन मूल्य पर खरीदी की जाए।
2. हर ब्लॉक और तहसील में खरीदी केंद्र खोले जाएं।
3. खरीदी प्रक्रिया पारदर्शी और समयबद्ध हो।
4. फसल का भुगतान अधिकतम 7 दिनों में सुनिश्चित किया जाए।
5. मूंग और उड़द के लिए बोनस की भी घोषणा की जाए।
सरकार का रुख अस्पष्ट
अब तक इस मुद्दे पर न तो मुख्यमंत्री कार्यालय से और न ही कृषि विभाग की ओर से कोई ठोस आश्वासन आया है। केंद्रीय कृषि मंत्री की प्रतिक्रिया भी निराशाजनक रही, जिससे किसान संगठनों का आक्रोश और गहरा गया है।