अथ आंबेडकर कथा… विश्व हिन्दू परिषद ने डॉ. बीआर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान यूनिवर्सिटी में की संगीतमय कथा


यह वीएचपी का संस्कृति मंत्रालय के साथ एक नया प्रयोग है। जहां डॉ. आंबेडकर को एक ईश्वर के रुप में दिखाकर उनके संघर्षों, अनुभवों से लोगों को सीख दी जा रही है। कार्यक्रम में विभाग की मंत्री उषा ठाकुर मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहीं।


आदित्य सिंह आदित्य सिंह
उनकी बात Updated On :

इंदौर। डॉ. बीआर आंबेडकर को लेकर इन दिनों राजनीति गर्म है। आंबेडकर जन्मभूमि महू में विश्व हिन्दू परिषद सक्रिय है। उन पर आंबेडकर को भगवा रंगने के आरोप लगते रहे हैं और अब तस्वीर कुछ और साफ़ होती जा रही है।

इसी साल 13 मार्च को यहां वीएचपी ने संविधान यात्रा निकाली थी तो अब प्रदेश के संस्कृति मंत्रालय ने यहां आंबेडकर कथा का आयोजन किया है। यह वीएचपी का संस्कृति मंत्रालय के साथ एक नया प्रयोग है। जहां डॉ. आंबेडकर को एक ईश्वर के रुप में दिखाकर उनके संघर्षों, अनुभवों से लोगों को सीख दी जा रही है। कार्यक्रम को लेकर भाजपा के नेता खुले तौर पर आंबेडकर को भगवान बताते रहे और उनकी तुलना राम से करते रहे।

आंबेडकर कथा में पहुंचे श्रोता

इस कार्यक्रम में आंबेडकर कथा वाचक के रुप में वीएचपी के अंतराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार मौजूद रहे। जिन्होंने संगीतमय आंबेडकर कथा का वाचन किया। वहीं कथा श्रोता के रुप में संस्कृति मंत्री और महू से विधायक उषा ठाकुर और भाजपा के कार्यकर्ता पहुंचे थे। यहां डॉ. आंबेडकर के जन्म से लेकर उनके तमाम संघर्षों की कहानी एक अलग तरीके से सुनाई गई। विश्व हिन्दू परिषद के द्वारा यह आंबेडकर को भगवान के रुप में दिखाने की संभवतः पहली कोशिश है।

महू में विश्विद्यालय के बाहर लगे आंबेडकर कथा के इश्तेहार

दिलचस्प बात यह है कि 21 अप्रैल को आंबेडकर कथा का यह कार्यक्रम डॉ. आंबेडकर के ही नाम पर बनाए गए देश के पहले सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय में किया गया। कार्यक्रम बुद्ध हॉल में आयोजित हुआ। जहां विश्वविद्यालय के बहुत से प्राध्यापक, छात्र आदि मौजूद रहे। हालांकि विश्वविद्यालय की ओर से सीधे तौर पर इस कार्यक्रम में कोई भाग नहीं लिया गया।

विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. दिनेश शर्मा ने इस कार्यक्रम को संस्कृति मंत्रालय का बताया। कार्यक्रम के दौरान डॉ. शर्मा विश्वविद्यालय परिसर में मौजूद भी नहीं थे। वहीं रजिस्ट्रार अजय वर्मा ने भी इस कार्यक्रम से विश्वविद्यालय का कोई अकादमिक संबंध न होने की बात कही।

विश्विद्यालय परिसर में भाजपा के बैनर

इस कथा में डॉ. आंबेडकर से जुड़े प्रसंगों को सुनाया गया। इस दौरान कथा वाचक आलोक कुमार ने बताया कि आंबेडकर के जीवन में दो गुरु ब्राम्हण रहे। इसके अलावा कथा में संत रविदास और राम के मिलन के बारे में भी बताया गया। वहीं रामायण से जुड़े निचली जातियों के किरदारों को भी यहां वीएचपी शैली की हिन्दू संस्कृति से जोड़कर दिखाने की कोशिश की गई।

आलोक कुमार, कथावाचक

कथा का आयोजक संस्कृति मंत्रालय था लेकिन भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा को इसकी खास जिम्मेदारी दी गई थी। मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष शैलेष गिरजे ने बताया कि कथा में आंबेडकर का जाति संघर्ष तो इस कथा में था ही लेकिन यह जानकारी भी थी कि आंबेडकर को किस तरह बड़ौदा महराज, छत्रपति महराज जैसे सवर्णों ने सहयोग किया और उन्हें बाहर पढ़ने भेजा, बैरिस्टर बनाया और संविधान सभा का अध्यक्ष चुना।

गिरजे ने कहा कि कथा में डॉ. आंबेडकर के इस पहलू को लेकर काफी जानकारी दी गई क्योंकि अबतक देश के तथाकथित दलित संगठन संविधान के नाम पर लोगों को गुमराह करते आ रहे हैं और दलितों के मसीहा बने बैठे हैं। गिरजे के मुताबिक कथा में बताया गया कि कैसे डॉ. आंबेडकर द्वारा संविधान लिखा गया, आरक्षण की मांग की गई और कैसे महात्मा गांधी ने कैसे डॉ. आंबेडकर की योजनाओं को विफल किया। इन सभी बातों के बारे में लोगों को कथा में बताया गया।

गिरजे ने कहा कि समाज को सच्चाई बताने के लिए यह कथा कही जा रही है और कथा करने में आंबेडकर का धार्मिकीकरण हो रहा है लेकिन यह गलत नहीं है क्योंकि जिस तरह से हिन्दू समाज को बांटने का प्रयास हो रहा है उसे रोकना होगा। संस्कृति मंत्रालय द्वारा हुआ यह आयोजन आगे भी होते रहेंगे। गिरजे के मुताबिक हिन्दू संस्कृति से लोगों को वापस जोड़ने के लिए सारे प्रयास किये जा रहे हैं।

कथा सुनने पहुंचे आंबेडकर विश्वविद्यालय के एक छात्र ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि उन्होंने कभी उम्मीद भी नहीं की थी कि एक महान  आंबेडकर को हिन्दू धर्म का अनुयायी साबित करने की कोशिश की जा रही है जबकि अब तक उन्हें यहां ऐसा नहीं पढ़ाया गया और इतिहास की किताबों में भी यह बात कहीं नहीं है लेकिन आज संगीतमय आंबेडकर कथा सुनकर विश्वविद्यालय और शिक्षा के क्षेत्र से ज्यादातर लोग हतप्रभ थे। हालांकि ज्यादातर प्राध्यापक विश्वविद्यालय के इस बदल रहे स्वरूप को लेकर परेशान होकर भी चुप थे।



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