जिले में इस बीमारी के करीब दो सौ मरीज़ मिल चुके हैं। शहर के सबसे बड़े अस्पताल एमवाय में ही ब्लैक फंगस इंफेक्शन के 18 मरीज आ चुके हैं। मेडिकल कॉलेज में एचओडी मेडिसिन डॉ. वीपी पांडे के अनुसार, ब्लैक फंगस कोरोना की तरह संक्रामक नहीं है।
कोविड में मृत्युदर 1 से 2 प्रतिशत होती है, लेकिन इसमें करीब 55 प्रतिशत है। इस बीमारी से न केवल मरीज़ की आंख जा सकती है बल्कि उसकी मौत भी हो सकती है। इस बीमारी से ग्रस्त कई मरीज़ों की आंख तक निकालनी पड़ी है।
ब्लैक फंगस नाम की इस बीमारी के इलाज के लिए एम्फोसिटिरिन-बी, पोसाकोनाजोल, आईसेबुकोनाजोल इंजेक्शन फिलहाल बाजार में पर्याप्त उपलब्ध नहीं हैं। ये इंजेक्शन बाजार में पांच से आठ हजार रुपये तक का आता है जिसके पांच से छह डोज एक दिन में लगते हैं।
ऐसी स्थितियों में समझना मुश्किल नहीं है यह बीमारी काफी महंगी है। इंजेक्शन के साथ सर्जरी भी जरूरी है। कोरोना मरीजों में फंगस को जल्द पकड़ा जा सके, इसके लिए अब प्रशासन ने बीस लोगों की एक विशेष टीम तैयार की है।
दवा व्यापारियों के मुताबिक बाजार में ये इंजेक्शन कम ही उपलब्ध होते हैं। हालांकि इसकी खपत भी कम ही है। पूरे देश में इसके दो हजार वायल प्रतिदिन खर्च होते हैं लेकिन फिलहाल इंदौर में ही रोजाना करीब 1500 वायल की जरूरत है। ऐसे में दवा कंपनियां अब इसका उत्पादन बढ़ा रहीं हैं।
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