विश्व एड्स दिवस: MP में 69,400 HIV पाॅजिटिव केस, इंदौर शीर्ष पर


नरसिंहपुर जिले में अब हर साल औसतन एचआइवी पाॅजिटिव निकलने वाले लोगों की संख्या आधा सैकड़े का आंकड़ा पर कर लेती है। पिछले 3 वर्षो का आंकड़ा देखें तो वर्ष 2018-19 में 58, वर्ष 2019-20 में 52, और अभी वर्ष 2020-21 यह संख्या 14 है। इसके पूर्व वर्ष 2017-18 में एचआईवी पाजिटिव निकलने वालों की संख्या 26 थी।


ब्रजेश शर्मा ब्रजेश शर्मा
सबकी बात Published On :

नरसिंहपुर। लाइलाज बीमारी एड्स की रोकथाम के लिए जागरूकता के प्रयास हो रहे हैं, पर औसतन हर साल प्रदेश में 0.65 के औसत दर पर एचआइवी पाॅजिटिव बढ़ रहे है। प्रदेश में पिछले 15 वर्षो में 1 करोड़ 7 लाख 3 हजार 19 लोगों के सेम्पल परीक्षण में एचआईवी पाॅजिटिव निकले 69 हजार 400 लोगों की संख्या गंभीरता व्यक्त कर रही है कि अगर कोताही बरती गई, चूक हुई तो स्थिति भयावह बनेगी। एक और आंकड़ा यह कि 2005 में 30-39 आयु वर्ग के लोग सबसे ज्यादा एचआईवी पाॅजिटिव (39.69 प्रतिषत) के शिकार रहे और आज भी इस आयु वर्ग के लोग ज्यादा संक्रमित हैं l जिनका प्रतिश त फिलहाल 38.27 प्रतिशत पर टिका है।

सावधानी ही एड्स का इलाज है। लेकिन बरती जा रही कोताही लोगों के लिए परेशानी का सबब बन जाती है। पिछले 15 वर्षो में पूरे मध्यप्रदेश में 1 करोड़ 7 लाख 3 से ज्यादा से हुए सेंपल टेस्ट में 69 हजार 400 एचआईवी पाॅजिटिव निकले हैं। 2005 में पूरे मप्र 15357 टेस्ट हुए थे। जिसमें 1759 एचआईवी पाॅजिटिव आए थे और पाॅजिटिव आने का अनुपात 11.43 प्रतिशत रहा है। यदि लोगों को सचेत या सर्तक नही किया जाता तो यह दर लगातार बढ़ती जाती और स्थिति भयावह होती।

1 2 3

साल 2006 में 27871 सेंपल परीक्षण में 2119 लोग एचआईवी पाजिटिव पाए गए। पाॅजिटिव अनुपात दर 7.67 प्रतिशत थी। अब अक्टूबर 2020 में  जब पूरे प्रदेश में 7 लाख 75 हजार 762 लोगों का परीक्षण हुआ है तो यह पाॅजिविटी घटकर 0.43 प्रतिशत पर स्थिर हो गई है। पाॅजिटिव आने वालों की संख्या 3324 हुई है। विश्लेषण भी यह कि 2008 में एचआइवी पाॅजिटिव होने वाले सबसे ज्यादा 24-25 आयु वर्ग के लोग थे। जिनका प्रतिशत 41.03 था। पर मौजूदा आंकड़े बतला रहे हैं कि अक्टूबर 2020 में यह आंकड़ा 32.60 प्रतिशत पर टिका है। लेकिन पाॅजिटिव आने वाले व्यक्तियों मे अधेड़ उम्र अर्थात 35 से 49 आयु वर्ग के लोग 38.27 प्रतिशत रहे। जबकि 2005 मे यह प्रतिशत 39.69 प्रतिशत था। मतलब यह कि अधेड़ व्यक्ति सेक्स या लापरवाही के मामले में ज्यादा गफलत कर रहे हैं।

गफलत में  सेक्स करने वालों में ऐसे लोगों का प्रतिशत 87.72 है जो एचआइवी पाॅजिटिव निकले हैं। जबकि खून के लेन देन की वजह से संक्रमण का प्रतिशत 0.91 प्रतिशत है। कई बार गलतियों से इंजेक्शन या सिरेंज ऐसे लोगों को लग जाते हैं जो पहले एचआइवी पाॅजिटिव लोगों को लगी थी तो उसका प्रतिशत 3.64 प्रतिशत रहा है। माता पिता की वजह से बच्चों मे एचआइवी पाॅजिटिव का संक्रमण 3.45 प्रतिशत है। जबकि अन्य मामलों मे यह प्रतिश त 1.39 प्रतिशत है।

नरसिंहपुर में मानव श्रृंखला बनाकर जागरूक रहने का संदेश देते हुए स्वास्थ्य कर्मी, छात्र (फाइल फोटो)

 

प्रदेश के स्वास्थ्य महकमे के आंकड़े बतलाते हैं कि सबसे ज्यादा एचआइवी पाॅजिटिव महिलाओं की अपेक्षा पुरूष ज्यादा हैं। अक्टूबर 2020 तक पाॅजिटिव आने वालों मे पुरूषों का  आकड़ा 61.50 प्रतिशत था। जबकि महिलाओं की संख्या 58.90 प्रतिशत रही।

इन जिलों में प्रतिशत अधिक

प्रदेश में कुल पाॅजिटिव लोगों मे सबसे ज्यादा विकट स्थिति इंदौर की है। जहां अब तक 7 लाख 78 हजार 894 के परीक्षण में 12 हजार 773 एचआइवी पाॅजिटिव निकले हैं। जहां यह प्रतिशत 1.64 प्रतिशत है। जबकि जबलपुर में  यह आंकड़ा 1.13 प्रतिशत है। आदिवासी इलाकों में  बड़वानी 1.25 प्रतिशत, बुरहानपुर 1.35 प्रतिशत, मंडला 1.04 प्रतिशत, ग्वालियर 1.04 प्रतिशत है।

नरसिंहपुर जिले में हर साल निकल रहे आधा सैकड़ा लोग HIV पाॅजिटिव

नरसिंहपुर जिले में अब हर साल औसतन एचआइवी पाॅजिटिव निकलने वाले लोगों की संख्या आधा सैकड़े का आंकड़ा पर कर लेती है। पिछले 3 वर्षो का आंकड़ा देखें तो वर्ष 2018-19 में 58, वर्ष 2019-20 में 52, और अभी वर्ष 2020-21 यह संख्या 14 है। इसके पूर्व वर्ष 2017-18 में एचआईवी पाजिटिव निकलने वालों की संख्या 26 थी।

गर्भवती महिलाएं भी शिकार

वर्ष 2019 में जिले में 16 ऐसी महिलाएं थीं  जिन्हें प्रसव के वक्त पता चला कि वह एचआइवी का शिकार हैं। जबकि वर्ष 2020 में ऐसी महिलाओं की संख्या 9 हैं । वर्ष 2017-18 में यह संख्या 7 थी। जो वर्ष 2018-19 बढ़कर 13 हो गई। वर्ष 2019-20 में 9 रही।

जिले में अब 24 स्थानों पर जांच

एचआइवी पाजिटिव की जांच को लेकर पहले से ज्यादा सुविधाएं हैं। अब जिला अस्पताल समेत गाडरवारा की सिविल अस्पताल और गोटेगांव सामुदायिक अस्पताल में आईसीटीसी केंद्र खुल गए हैं । जबकि विभिन्न प्राथमिक स्वास्थ केंद्रों उपस्वास्थ केंद्रों में एफआईसीटीसी केंद्रों की संख्या 21 हो गई है। जहा जांच कराई जा सकती है।

लाॅकडाउन में घर-घर जाकर उपलब्ध कराई दवाइयां

जिला एड्स नियंत्रण समिति के नोडल अधिकारी डाॅ. देवेन्द्र रिपुदमन सिंह और एड्स सेल के प्रशान्त सोनी बतलाते हैं कि अगर समय पर दवाईयां न ली जाए तो रोग और जटिल स्थिति में आ जाता है। इसलिए लाॅकडाउन के वक्त घर-घर जाकर चिन्हित मरीजों को दवाई उपलब्ध कराई। चाहे वह जिले मे इलाज करा रहे हो। या फिर नागपुर या अन्य स्थानों पर।

संक्रमण से नई पीढ़ी को बचाने के प्रयास

एड्स सेल के प्रशान्त सोनी कहते हैं कि अगर माता पिता या कोई एक एचआइवी पाजिटिव हों तो उसके नवजात शिशु को संक्रमण न हो उसके लिए अब प्रयास हो रहे हैं। जन्म के साथ नवजात को एक विशेष दवा (नेभ्रान) दी जाती है और उसे लगभग 18 माह आव्जर्वेशन में रखा जाता है, ताकि वह संक्रमण का शिकार न बने। और यही वजह है कि पिछले दो वर्षो में अगर माँ भी एचआइवी पाजिटिव है तब भी एक भी बच्चा पाजिटिव नहीं आया। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में एचआइवी संक्रमण का अनुपात बहुत कम हुआ है या 0 की तरफ पहुंच रहा है।