भाजपा के सबसे मज़बूत क्षेत्र इंदौर में भी अब अंर्तकलह, देपालपुर से सीएम के करीबी मनोज पटेल का विरोध


इंदौर जिले की तीसरी विधानसभा में देखने को मिला विरोध, भाजपा कार्यकर्ताओं ने पार्टी कार्यालय का घेराव किया


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इन्दौर Published On :

इंदौर।  मप्र में विधानसभा चुनावों में टिकिट को लेकर भारतीय जनता पार्टी में कई विवाद दिखाई दे रहे हैं। ये अंदरूनी विवाद पार्टी को कमजोर कर रहे हैं। अब तक सबसे सुरक्षित मानी जानी वाली इंदौर इकाई में भी विवाद बराबर बना हुए हैं। यहां अब ग्रामीण क्षेत्र की देपालपुर विधानसभा  में अंदरूनी असंतोष दिखाई दे रहा है। यहां एक बार फिर पूर्व विधायक मनोज पटेल को टिकिट दिया गया है और कई भाजपाई चाहते हैं कि यह फैसला बदला जाए।

चुनावी सरगर्मियां तेज़ होने के बाद से ही इंदौर में भाजपा में अंदरूनी उलझनें बढ़ गई हैं। महू में मंत्री और स्थानीय विधायक उषा ठाकुर और इंदौर क्रमांक एक में महेंद्र हार्डिया का भी विरोध भाजपा कार्यकर्ताओं ने किया और अब विधान देपालपुर से राजेंद्र चौधरी को उम्मीदवार बनाने की मांग कर रहे पार्टी कार्यकर्ताओं ने शुक्रवार को इंदौर में भाजपा कार्यालय के बाहर जमकर हंगामा किया। भाजपा कार्यकर्ता प्रत्याशी बदलने की मांग पर अडिग हैं और हाईकमान को चेतावनी दे रहे हैं कि यदि प्रत्याशी को नहीं बदला गया तो पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ेगा। विरोध करने वाले भाजपा कार्यकर्ता यहां से राजेंद्र चौधरी को टिकिट देने की मांग कर रहे हैं।  इस मांग को लेकर देपालपुर विधानसभा क्षेत्र के बीजेपी कार्यकर्ता शुक्रवार को इंदौर में आए और यहां पर पार्टी कार्यालय का घेराव किया।

इन कार्यकर्ताओं ने यहां हनुमान चालीसा का पाठ किया। भाजपा संगठन के नेताओं ने देपालपुर विधानसभा के कार्यकर्ताओं को समझाइश भी दी लेकिन विरोध करने वाले कार्यकर्ता नहीं माने। इन कार्यकर्ताओं ने मांग की कि भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय को वहां बुलाया जाए और उनके सामने ही कार्यकर्ता अपनी मांग स्पष्ट तौर पर दोहराएंगे। मनोज पटेल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी बताए जाते हैं।

इससे पहले भी राजेंद्र चौधरी के समर्थकों ने सांवेर भाजपा कार्यालय में भी अपना विरोध जताया था। वहां कार्यकर्ताओं ने मंत्री और स्थानीय विधायक तुलसी सिलावट का घेराव कर कहा था कि पार्टी ने क्या सोचकर मनोज पटेल को टिकट दिया है, जबकि उन्हें 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाया था लेकिन वे चुनाव हार गए थे। ऐसे में हारे हुए प्रत्याशी को दोबारा से टिकट देना स्थानीय कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करना है। बातचीत के दौरान बहस इस हद तक बढ़ गई कि मंत्री तुलसी सिलावट को सांवेर बीजेपी ऑफिस छोड़कर वहां से उलटे पांव लाैटना पड़ गया था।



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