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आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी किसानों की हालत देश में सुधर नहीं सकी है और यह उस देश का हाल है जिसकी जीडीपी में एक बड़ा योगदान किसानों का होता है। कांग्रेस के बाद उम्मीद भाजपा से की गई लेकिन यहां भी किसानों को निराशा ही मिली। केंद्र सरकार को बुरी तरह झकझोर देने वाले हालिया किसान आंदोलन को सरकार ने किसी तरह शांत तो करवा दिया लेकिन किसान अब का बार फिर महसूस कर रहे हैं कि उस समय किये गए तमाम सरकारी वादे और भलाई के दावे वही रस्म अदायगी थे जो अब तक होती रही है।
अगर ऐसा नही है तो क्या कारण है कि सरकार के सामने अब उसके ही सहयोगी संगठन खड़े नज़र आ रहे हैं ! राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का अनुशांगिक संगठन किसान संघ सरकार से नाराज़ बताया जा रहा है और संभव है कि यह संगठन आने वाले दिनों में अपनी ओर से भी विरोध प्रदर्शन शुरु कर दे!
ख़बर है कि किसान संघ इस समय मध्यप्रदेश व देशव्यापी आंदोलन के लिए तैयारी कर रहा है। ख़बरों की मानें तो संघ को लगता है कि किसानों के हित में क्रांतिकारी फैसले लेने के लिए सरकार को मजबूर करने व हर दिन बढ़ रहे कृषि भूमि अधिग्रहण से किसानों को निजात दिलाने का आंदोलन के सिवा और कोई चारा नही है। भाजपा शासित सरकारों के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक क्या हो सकता है!
मप्र की करीब 20 बरस पुरानी भाजपा सरकार के कृषि विभाग में भ्रष्टाचार व मंडियों में हर दिन किसानों से ठगी, भूमि अधिग्रहण कानून में प्रदेश सरकार द्वारा मनमाने बदलाव ऐसे कई उदाहरण हैं। यही आलम वैश्विक कारपोरेट घरानों जैसी चमक दमक वाले केंद्रीय कृषि मंत्रालय का है। यही वजह है कि तीन माह बाद दिसंबर महीने में भारतीय किसान संघ सड़कों पर उतरने की तैयारी कर रहा है। अगर ये योजना सफल हुई तो यहां देशभर से किसान जुटेंगे और संभव है कि ये संख्या पहले से कहीं ज्यादा बड़ी हो।
केंद्र व राज्यों की सरकारों के किसान हित के लाख दावों के बाद भी खेती व किसानों को कोई आर्थिक लाभ नहीं हो रहा है। इसके लिए किसान भी काफी हद तक जिम्मेदार बताए जाते हैं। मध्य प्रदेश में लहसून प्याज़ की फसल के दाम दो रुपये किलो भी नहीं मिल रहे हैं। इससे पहले बीते साल वर्ष मूंग की भी यही स्थिति थी। ज्यादा मुनाफे के लिए बड़े पैमाने पर फसल लगाई जाती है और आख़िर में आवक इतनी होती है कि फसल फेंकने की नौबत बनती हैं। राजनीतिक दबाव से मूंग की बिक्री, समर्थन मूल्य तय करवा कर सरकार से खरीदी कराई। लहसुन प्याज को लेकर यही स्थिति बन रही है। भावन्तर योजना बतौर मुवावजे के मांगी जा रही है क्यों कि जिस दाम पर फसल बिकती है उसका चार से पांच गुणा लागत खर्च है।
यानी फसल को पैदा करने में दस रु किलो का खर्चा हो , उसका भी लागत मूल्य किसान को नही मिले तो सरकारी नीतियों का क्या औचित्य!
ऐसी तमाम विसंगतियों को लेकर करीब दो वर्ष पहले दिल्ली में पंजाब हरियाणा के किसानों ने आंदोलन किया था। यह आंदोलन यहां-वहां भटकते व तरह तरह की साजिशों ,राजनीति और अलगावाद का शिकार होकर केंद्र के तीन कानूनों को वापस लेने व एमएसपी पर जाकर ठहर गया।
नवंबर 2021 में सरकार ने बेमन से आंदोलन करने वाले किसानों की मांगें मान लीं। (अंदरूनी तौर पर कहा गया कि ऐसा नहीं करने पर पंजाब में फिर अलगाववाद पनप सकता था ) केन्द्र सरकार ने अपने तीन कानून वापस ले लिये। अधिकतम समर्थन मूल्य व स्वामीनाथन रिपोर्ट की सिफारिशों जैसी दो मांगों को मानने का वादा भी हुआ।इस काम के लिए एक कमेटी बनाई गई । इस समय कमेटी अलग-अलग किसान संगठनों से चर्चा कर रही है लेकिन सरकारी रुख देखकर अनुमान यह है कि किसान जैसा चाहते हैं वैसा होना नहीं है।
संघ के अनुषांगिक संगठन भारतीय किसान संघ ने सरकार के तीन नए खेती क़ानून का अध्ययन व फिर पूरे देश मे किसानों से संवाद करके जरूरी बड़े सुझावों के साथ लाभकारी मूल्य का फार्मूला सरकार को प्रस्तुत किया था। ये सुझाव केंद्र को तीन कानून में सुधार के लिए दिये थे। उस समय भी संघ पोषित सरकार ने किसान संघ की बात नहीं मानी। नतीजे में कई किसान संगठनों ने आंदोलन की ऐतिहासिक पटकथा लिख डाली व उसे साकार कर दिखाया। किसान संघ व आंदोलन वाले संगठन शुरूआत में साथ थे, बाद में संघ आंदोलन से अलग हो गया था।
अब एक बार किसान संगठन फिर तैयार होते दिखाई दे रहे हैं और किसान संघ के शीर्ष प्रतिनिधियों की भी बैठक हो रही है। किसान संघ के अखिल भारतीय पदाधिकारी वर्ग की टोली के साथ सरकार के प्रतिनिधि समय समय पर बैठक करते हैं। किसान संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बद्री नारायण चौधरी, महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्र, संगठन मंत्री दिनेश कुलकर्णी के साथ मप्र-छग के क्षेत्रीय संगठन मंत्री महेश चौधरी व देशभर के अन्य क्षेत्रीय मंत्री आदि टोली में है। सरकार की जो कमेटी बनी है उसमें किसान संघ के कृधि आर्थिकी शोध केंद्र के अध्यक्ष प्रमोद चौधरी शामिल है।
इस बारे में किसान संघ के प्रांतीय कोषाध्यक्ष लक्ष्मी नारायण पटेल कहते हैं कि रद्द किए गए तीन कृषि कानून में गम्भीर विंगतियां थीं तो कुछ प्रावधान खेती के हित में भी थे। हमारी मांग हैं कि उन कानूनों में जितने भी संसोधन सुझाए गए हैं वे संसोधन किए जाए और कानून नए सिरे से लागू करें। इसके अलावा कई सारे खेती किसानी को लाभदायक बनाने के बहुआयामी विषय हैं इनका समावेश क़ानून में किया जाए। एक अन्य प्रान्तीय जैविक खेती अध्यक्ष आंनद सिंह पंवार कहते हैं स्वामीनाथन रिपोर्ट के सी 2 फार्मूले को लागू करे ताकि किसानों को लाभदायक मूल्य मिल सके। क्षेत्रीय संगठन मंत्री महेश चौधरी कहते है कि दिसम्बर माह में दिल्ली में आंदोलन होगा। पिछले दिनों इंदौर के राउ में तीन दिन की संगठन बैठक में इस बारे में राष्ट्रीय पदाधिकारियों ने चर्चा की।