अब बहन जी भाई योगी आदित्यनाथ से ब्राह्मणों और राम मंदिर जैसे प्रतीकों के सहारे लड़ेंगी। इसे आप ‘कांटे से कांटा निकालना’ या ‘लोहे से लोहा काटना’ भी कह सकते हैं।
पेगासस जासूसी का मामला अभी दुनिया के पचास हज़ार लोगों तक ही सीमित बताया जा रहा है पर यह संख्या किसी दिन पांच लाख या पांच और पचास करोड़ तक भी पहुंच सकती…
कोविड महामारी ने हमें साल भर में इतना तो सिखा ही दिया है कि लाख आशंकाओं के बाद भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना है। जीतने की आस नहीं छोड़नी है। फीके मंडप…
इस देश में प्राणवायु पर भी शुरू से अब तक सियासत ही ज्यादा हो रही है। कोविड के कठिन काल में भी ऑक्सीजन सप्लाई को लेकर केन्द्र और राज्य सरकारों ने एक-दूसरे पर…
वैसे वो ही सत्ताएं टैप करने में ज्यादा भरोसा रखती हैं, जिनका अपने आप पर विश्वास कम हो जाता है। अगर फोन टैप का आरोप सही सिद्ध हुआ तो यह मोदी सरकार की…
’कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट’ के बैनर तले जारी इस पत्र में आरोप लगाया गया है कि उत्तर प्रदेश में शासन-व्यवस्था (गवरनेंस) पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है।
हिंदी सिनेमा के दूसरे बड़े अभिनेता अमिताभ बच्चन ने दिलीप कुमार के बारे में उन्होंने लिखा है “जब भी भारतीय सिनेमा का इतिहास लिखा जाएगा वो हमेशा दिलीप कुमार से पहले और दिलीप…
अगर ये मुद्दा चल गया और भाजपा यूपी में सत्ता में लौटी तो यही मोदी सरकार का अगला चुनावी मुद्दा भी बन सकता है। हो सकता है कि आगामी लोकसभा चुनाव ‘जनसंख्या नियंत्रण’…
अपनी मौत के साथ ही स्टेन स्वामी तो सभी तरह की सांसारिक हिरासतों से मुक्त हो गए हैं।
प्रधानमंत्री के कहे पर दूसरी प्रतिक्रिया इस आंतरिक आश्वासन की होती है कि उनकी सरकार घोषित तौर पर तो कभी भी देश में आपातकाल नहीं लगाएगी।
सवाल यह है कि जब ट्विटर बार-बार भारतीय कानूनों की अवहेलना और भारत सरकार की चेतावनियों को भी हल्के में ले रही है, तब सरकार उस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने से क्यों हिचक…
न्यायपालिका न तो विधायिका और कार्यपालिका का स्थान ले सकती है और न ही नागरिक प्रतिरोधों का संरक्षण स्थल ही बन सकती है।
भारतीय जनता पार्टी में सरकार के स्थायित्व को लेकर इन दिनों जैसी राजनीतिक हलचल दिखाई पड़ रही है वैसी पहले कभी नहीं दिखाई दी।
जितिन प्रसाद के जाने को कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने देश में ‘प्रसाद राजनीति’ का आगाज बताया है। जो भी हो, कांग्रेस यूपी में इस झटके से हैरान और हताश है तो भाजपा…
संकट में समाज का संबल बनकर मीडिया नजर आया। कई बार उसकी भाषा तीखी थी, तेवर कड़े थे, किंतु इसे युगधर्म कहना ठीक होगा। अपने सामाजिक दायित्वबोध की जो भूमिका मीडिया ने इस…
संगठन की कार्यसमिति न हुई, राजनीतिक रेवड़ी का भंडारा हो गया, जहां सब को कुछ न कुछ टिकाना जरूरी है। कुल मिलाकर ‘एजडस्टमेंट’ की यह आजमाई हुई ‘वैक्सीन’ है, जिसे हर पार्टी को…
समय बीतने के साथ ऐसा हो रहा है कि प्रधानमंत्री के मंच और जनता के बैठने के बीच की दूरी लगातार बढ़ती जा रही है। दोनों ही एक-दूसरे के चेहरे के ‘भावों’ को…
जो बहस का मुद्दा बन रहा है, वो ये कि लूडो कौशल का खेल या किस्मत का? किस्मत का खेल मानने वालों का तर्क यह है कि लूडो का खेल गिरने वाले पांसे…
मीडिया को अपनी छवि पर विचार करने की जरुरत है। सब पर सवाल उठाने वाले माध्यम ही जब सवालों के घेरे में हों तो हमें सोचना होगा कि रास्ता सरल नहीं है। इन…
चंद अपवादों को छोड़ दें तो मुख्य धारा के प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का एक बड़ा हिस्सा इस समय सरकारी बंदरगाह (गोदी) पर लंगर डालकर विश्राम कर रहा है।