पंचायत चुनावः गांव की सरकार चुनने के लिए जनता के बीच पहुंच रहे उम्मीदवार


पंचायत चुनाव तो गांव में पांच साल में एक बार होता है, लेकिन उम्मीदारों की आपसी लड़ाइयां अगले कई सालों तक चलती हैं। कई बार गांवों में चुनाव हारने से नाराज उम्मीदार आपस में ही भिड़ जाते हैं और बात खून-खराबे तक चली जाती है।


आशीष यादव आशीष यादव
धार Published On :
panchayat chunav 2022

धार। चुनाव का शोर शहर में जितना नहीं होता है, उससे ज्यादा चहल-पहल ग्रामीण क्षेत्रों में दिखाई देती है। शहर में चुनाव बस लोग जीतने के लिए लड़ते हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में चुनाव अपने वर्चस्व के लिए लड़ा जाता है।

पांच साल में होने वाले चुनावों का गांव में बेसब्री से इंतजार किया जाता है क्योंकि चुनाव गांवों में एक त्यौहार के रुप में होता है जिसके लिए गांव जैसी छोटी जगहों पर भी लोग अपना वर्चस्व दिखाने में पीछे नहीं हटते हैं।

गांवों में कांग्रेस व भाजपा पार्टियों का चुनाव चिन्ह तो उम्मीदवारों को नहीं मिलता है, लेकिन फिर भी गांवों में विधानसभा चुनाव जैसे उम्मीदवार खड़े होते हैं, जिसमें से कांग्रेस पार्टी का उम्मीदवार अलग होता है और भाजपा पार्टी का उम्मीदवार अलग होता है।

इतना ही नहीं कुछ लोग निर्दलीय उतर कर भी अपना मैदान संभालते नजर आते हैं। गांव में भी लोगों को पंचायत चुनाव होने पर उत्साह रहता है व अपना प्रत्याशी बनाने की जोड़-तोड़ से कोशिश होती है।

चुनाव के लिए तय हो गए उम्मीदवार –

पंचायत चुनाव नजदीक आने से पहले ही गांव में प्रत्याशी तय हो गए। अब गांव में उम्मीदवार अपना प्रचार जोर-शोर से कर रहे हैं। सुबह उठकर शाम तक प्रचार करते हुए नजर आ रहे हैं।

गांव में कौन सा उम्मीदवार अच्छा होगा। यह बात चाय की दुकान व चौपालों पर बातें करते लोगों से पता चल रही है व गांव में अलग-अलग गुटों ने अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए भी तैयारियां शुरू कर दी हैं। यह भी तय हो चुका है कि किसे कैसे हराना है।

युवा वर्ग भी ले रहा दिलचस्पी –

आजकल पंचायत चुनाव में अधिकांश गांवों में युवा वर्ग अपनी अलग ही पहचान बनाने लगा है। गांवों में युवा उम्मीदवार भी इस बार चुनाव में अपनी युवा वर्ग को आकर्षित करने में लगे हैं क्योंकि युवा वर्ग में भी राजनीति का अलग ही जोश होता है।

इसके लिए गांवों में युवा टोली बनाकर विकास को लेकर भी बातें करते हैं। वहीं कई पचायतों में अनुभवी सरपंच भी मैदान में हैं क्योंकि उनका अनुभव उनके साथ है और गांव में किए गए विकास भी लोगों को दिख रहे हैं।

हर गांव में होता है एक मास्टरमाइंड –

सभी गांव में एक मास्टरमाइंड होता है जिसे पता होता है कि चुनाव में जीत कैसे होती है। उन्हें ग्रामीण राजनीतिक वैज्ञानिक भी कहा जाता है।

न्हें लंबे समय का चुनावी अनुभव होता है और सभी उम्मीदवार उनके पास जाकर उनके द्वारा दिए जाने वाले आइडिया को अपनाते हैं और जीत भी जाते हैं। कई लोग इसे राजनीतिक आका या गुरु भी कहते हैं जो उनके लिए चुनाव में मेहनत भी करते हैं।

वर्चस्व की होती है लड़ाई –

सरपंच का चुनाव एक ऐसा चुनाव है जहां सामान्य ओबीसी, एसटी, एससी व अन्य वर्गों में वर्चस्व की लड़ाई के लिए चुनाव लड़ा जाता है। इसमें यह सबसे छोटा चुनाव रहता है मगर वर्चस्व के तौर पर यह सबसे बड़ा चुनाव होता है।

इस चुनाव में कई जगह विवाद भी होते हैं व क्षेत्रों में वर्चस्व की लड़ाई होती है, वहां जब दो मजबूत गुट आमने-सामने होते हैं तो टक्कर भी करारी हो जाती है व अपना वर्चस्व जमाने के लिए लाखों रुपये तक खर्च कर दिए जाते हैं।

चुनाव के बाद बढ़ जाती है लड़ाइयां –

पंचायत चुनाव के बाद यह चुनाव लड़ाई के रूप भी देता है क्योंकि हार-जीत के कारण प्रत्याशी आमने-सामने लड़ाई-झगड़े पर उतारू हो जाते हैं।

पंचायत चुनाव तो गांव में पांच साल में एक बार होता है, लेकिन उम्मीदारों की आपसी लड़ाइयां अगले कई सालों तक चलती हैं। कई बार गांवों में चुनाव हारने से नाराज उम्मीदार आपस में ही भिड़ जाते हैं और बात खून-खराबे तक चली जाती है।



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