नर्मदा को स्वच्छ और अविरल रखना समाज और सरकार की प्राथमिकता हो


जबलपुर शहर के 25 हजार घरों का गंदा पानी, सैकड़ों अस्पताल का गंदगी, रेलवे और कार वाशिंग का गंदा पानी 60 नालों के माध्यम से गंदगी हर दिन नर्मदा में मिल रहा है।


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राज कुमार सिन्हा

बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ (नर्मदा जयंती पर विशेष टिप्पणी)

नर्मदा किनारे छोटे- बङे शहरों का मलमुत्र नर्मदा में गिरता है।बरगी से भेङाघाट के बीच करीब जबलपुर शहर के 25 हजार घरों का गंदा पानी, सैकड़ों अस्पताल का गंदगी, रेलवे और कार वाशिंग का गंदा पानी 60 नालों के माध्यम से गंदगी हर दिन नर्मदा में मिल रहा है। इन नालों से 30 लाख लीटर प्रति घंटा गंदा पानी नर्मदा में मिल रहा है जबकि 4.5 लाख प्रति घंटा नगर निगम के वाटर ट्रिटमेंट की क्षमता है अर्थात 25.5 लाख लीटर प्रति घंटा पानी बीना ट्रिटमेंट के नदी में मिलता है।

जबलपुर में नर्मदा नदी को प्रदूषित करने में शहर के आस-पास करीब 100-150 डेरियां हैं, जहां से निकलने वाला मवेशियों का मलमूत्र नर्मदा की सहायक नदी परियट और गौर में गिरता है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट 2015 के अनुसार मंडला से भेड़ाघाट के बीच 160 कि.मि., सेठानी घाट से नेमावर के बीच 80 कि.मि. और गुजरात में गरूरेशवर से भरूच के बीच नर्मदा प्रदुषित है।आश्चर्य की बात है कि जिस आबादी का मलमूत्र ढोने के लिए नर्मदा अभिशप्त है। वे सभी शहर पेयजल के लिए नर्मदा पर ही निर्भर है।

बूँद- बूँद नर्मदा जल का दोहन:

राजस्थान में बाड़मेर से लेकर गुजरात के सौराष्ट्र और मध्यप्रदेश के 35 शहरों और उद्योगों की प्यास बुझाने की जिम्मा नर्मदा पर है।इंदौर, भोपाल समेत मध्यप्रदेश के 18 शहरों को नर्मदा का पानी दिया जा रहा है।नर्मदा के पानी को क्षिप्रा, गंभीर, पार्वती, ताप्ती नदी सहित मालवा, विंध्य और बुंदेलखंड तक पानी पहुंचाने की योजना बनी है।

गंगा-यमुना की तरह नर्मदा ग्लेशियर से निकलने वाली नदी नहीं है।यह मुख्य रूप से वर्षा और सहायक नदियों के पानी पर निर्भर है।नर्मदा की कुल 41 सहायक नदियां हैं। सहायक नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में जंगलों की बेतहाशा कटाई के चलते ये नदियाँ अब नर्मदा में मिलने की बजाय बीच रास्ते में सुख रही है।केंद्रीय जल आयोग द्वारा गरूडेश्वर स्टेशन से जुटाये गये वार्षिक जल प्रवाह के आंकड़ों से नर्मदा में पानी की कमी के संकेत मिलते हैं।

खनन से खोखली होती नर्मदा:- नर्मदा घाटी में बाक्साइट और रेत जैसे खनिजों की मौजूदगी भी नर्मदा के लिए संकटों की वज़ह बनी है।नर्मदा के उदगम वाले क्षेत्रों में 1975 में बाक्साइट का खनन शुरू हुआ था।जिसके कारण वनों की अंधाधुंध कटाई हुईं।जहां बालको कम्पनी ने 920 हैक्टर क्षेत्र में खुदाई कर डाली है वहीं हिंडालको ने 106 एकड़ क्षेत्र में खनन किया था।अब खनन कार्य पर रोक लगा दी गई है परन्तु तबतक पर्यावरण को काफी क्षति पहुंच चुकी थी।

दिसंबर 2016 में डिंडोरी जिले में बाक्साइट के बड़े भंडार का पता चला था।इसका पता लगते ही भौमिकी एवं खनकर्म विभाग ने जिले के दो तहसीलों में बाक्साइट की खोज अभियान शुरू कर दिया था। इस खनन का विरोध होने के कारण मामला शांत है। अपर नर्मदा बेसिन के डिंडोरी और मंडला जिले में वनस्पति और जानवरों का जीवाश्म बहुतायत में पाये जाते हैं।दूसरी ओर अवैध रेत खनन माफिया नर्मदा नदी को खोखला कर दिया है।

 

 







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