ग्राउंड रिपोर्ट: वायु प्रदूषण के साये में जी रहे कारखानों के साथ रहने वाले नागरिक, धुआं और बदबू बना रही बीमार


– पीथमपुर के सेक्टर दो में प्रदूषण की स्थिति चिंताजनक।
– औद्योगिक और घरेलू कचरे की बदबू से खतरनाक गैसें सूंघ रहे लोग।
– लगभग हमेशा ही 100 से ज्यादा बना रहता है AQI का स्तर।


आदित्य सिंह आदित्य सिंह
हवा-पानी Updated On :

इंदौर। वायु प्रदूषण को लेकर लोग जागरुक तो हो रहे हैं लेकिन यह जागरुकता फिलहाल बेहद सीमित दिखाई देती है। ज़्यादातर लोग नहीं जानते कि ख़राब हवा में सांस लेना किस हद तक उनके स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकता है। इंदौर शहर से सटा हुआ प्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर जहां एक बड़ी आबादी कारख़ानों के बेहद नज़दीक रहती है।

सोमवार सुबह करीब साढ़े आठ बजे पीथमपुर के सेक्टर दो में फैक्ट्रियां शुरु हो चुकी हैं। इन कारखानों की चिमनियां रह-रहकर धुआं निकाल रहीं हैं। पहाड़ी पर मौजूद तारपुरा गांव की बस्ती के ज़्यादातर लोग इन्हीं फैक्ट्रियों में काम करते हैं और काम पर जा चुके हैं। बच्चे, बूढ़े और महिलाएं और घरों में ही है। बाहर से आने वाले लोगों की तरह इन्हें फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं और दूसरी दुर्गंध बहुत परेशान नहीं करती।

हालांकि कुछ लोग इससे बीमार हो रहे हैं। इसी क्षेत्र में पीथमपुर का प्रसिद्ध बोकनेश्वर मंदिर है। यहां के पुजारी परसराम पुरी बताते हैं कि  फैक्ट्रियों की बदबू और धुएं के कारण उनकी आंखों में जलन और कफ़ की समस्या हो रही है। पुरी के मुताबिक यह समस्या परिवार के कई सदस्यों को है।

 

इसी इलाके में पीथमपुर के एक स्थानीय राजनेता डॉ. हेमंत हिड़ौले भी रहते हैं। उनके मुताबिक फैक्ट्रियों से धुआं निकलता ही है और यह कभी भी पूरी तरह साफ नहीं हो सकता ऐसे में इनके बेहद नज़दीक बसे लोगों पर इसका ज़्यादा प्रभाव पड़ता है। हिड़ौले के मुताबिक तारपुरा गांव में कई लोग इस धुएं और बदबू से परेशान हैं लेकिन वे कुछ नहीं कहते क्योंकि इन्हीं फैक्ट्रियों में उन्हें रोज़गार मिला हुआ है।

सेक्टर दो में औद्योगिक कारखाने

सेक्टर दो के इस इलाके में अलग-अलग तरह के कई कारखाने हैं। इसके अलावा यहां तारपुरा गांव में ही पीथमपुर ऑटो क्लस्टर के द्वारा स्थापित खतरनाक कचरे को नष्ट करने वाला एक संयंत्र भी लगा है। यहां प्रदेश की कई कंपनियों का कचरा आता है। जिसे ज़रुरत के मुताबिक नष्ट किया जाता है।

सेक्टर 2 में औधोगिक कचरा निपटान केंद्र में इस तरह जमीन पर कचरे को दबा के रखा जाता है

यहां ज़्यादातर कचरा ज़मीन पर गड्ढे बनाकर या सीधे ही दबाकर रखा जाता है जो धीरे-धीरे सड़ता रहता है। इसी के नज़दीक स्थानीय नगर पालिका का कचरा निपटान केंद्र भी बनाया गया है।

नगर पालिका पीथमपुर सेक्टर 2 में ही सी पहाड़ी पर कचरा जमा करती है

यहां बदबू लोगों के लिए गंभीर परेशानी है। डॉक्टरों के मुताबिक लंबे समय तक ऐसी स्थिति में रहना आपको काफी बीमार बना सकता है और आपकी ज़िंदगी भी कम करता है।

इंदौर के जाने माने पल्मोनोलॉजिस्ट और रेस्पिरेटरी मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉ. सलिल भार्गव बताते हैं यह स्थिति काफी खतरनाक है। बदबू हवा का एक अलग प्रकार है जिसमें तरह-तरह की हानिकारक गैसें घुली होती हैं। लगातार बदबू में रहने वाले लोग खुद को भले ही सामान्य मानें लेकिन यह स्थिति उनके शरीर विशेषकर फेफड़ें, दिल, धमनियां और रक्त संचार पर गंभीर असर डालती है।

डॉ. सलिल भार्गव

डॉ. भार्गव के बताते हैं…

 सड़ांध की बदबू को सामान्य नहीं कहा जा सकता है और जब मामला औद्योगिक कचरे को नष्ट करने का हो तब स्थिति और भी खतरनाक होती है। बदबू में सल्फर संबंधित गैसें होती हैं। इनमें सल्फर डाई आक्साइड, सल्फर ट्राई ऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड जैसी कई गैस होती हैं। इसके अलावा भी और बहुत सी गैसें होती हैं जिनकी बढ़ी हुई मात्रा शरीर को नुकसान पहुंचाती है।

डॉ. भार्गव के मुताबिक बदबू वाले इलाकों में एयर मॉनिटरिंग सिस्टम से मापने की भी ज़रुरत नहीं है क्योंकि बदबू में पहले ही कई खतरनाक गैसें घुली होती हैं और यह तो नुकसानदेह ही हैं।

हवा में घुली इन नुकसानदेह गैसों से प्रभावित इलाकों में घर में ज्यादा समय तक रहने वाले महिलाएं और बच्चे लगातार संपर्क में रहते हैं। ऐसे में उन्हें छाती में बलगम, सांस लेने में दिक्कत, सिरदर्द जैसी कई तरह की समस्याएं होती हैं और लंबे समय बाद जांच कराने में फेफड़े कमजोर हो जाते हैं। बच्चों में इसका प्रभाव निमोनिया, सीओपीडी (chronic obstructive pulmonary disease) , टीवी इन्फेक्शन जैसी परेशानियां देखी जाती हैं।

दिन के समय इस इलाके में कोई बहुत ज़्यादा प्रदूषण या धुआं नहीं दिखता लेकिन बस्ती में रहने वाले लोगों के मुताबिक देर शाम या रात को अक्सर आसमान में चिमनियों से निकलने वाले काले धुएं का गुबार दिखाई देता है। उस समय सांस लेने में या खुले में घूमने में भी लोगों को परेशानी होती है।

कई महिलाओं ने बताया कि वे इस समय अपने घर की खिड़कियां और दरवाजे़ तक बंद कर लेती हैं ताकि घर में धुआं न भरे क्योंकि इसके बाद काफी सफाई करनी पड़ती है। धुएं के कण फर्श पर और कपड़ों पर जम जाते हैं।

इस इलाके के करीब एक किलोमीटर के दायरे में करीब तीन हजार लोग रहते हैं। इसके अलावा फैक्ट्रियों के परिसर में भी बहुत से कर्मचारी अपने परिवार के साथ रहते हैं। कुछ कर्मचारी अपने स्वास्थ्य को लेकर परेशान हैं। इन्हें गहरी सांस लेने में दिक्कत होती है और परिवार के लोगों को आंखों में जलन या पानी आने की परेशानी भी है लेकिन ये खुलकर कैमरे पर आकर कुछ नहीं कहते। इनके मुताबिक ऐसा करने से इनकी नौकरी ख़तरे में पड़ सकती है।

ख़ास बात यह है कि इसी इलाके में पर्यावरण रक्षा संबंधी डिवाइस बनाने वाली कंपनी एकॉम का कारखाना भी है।

फैक्ट्री की छत पर लगा अत्याधुनिक एयर पॉल्यूशन मॉनिटर

इसी कारखाने की छत पर एक अत्याधुनिक फिल्टर बैग डस्ट कलेक्टर यानी वायु प्रदूषण मापक यंत्र भी लगा हुआ है। इसके आंकड़े सीधे मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वेबसाइट पर दिखाए जाते हैं।

एयर पॉल्यूशन मॉनिटर सिस्टम

सीपीसीबी (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) वेबसाइट के मुताबिक पिछले चार दिनों से यहां AQI (Air Quality Index) 110-130 के बीच ही है। इसे एक औसत स्तर माना जाता है। जिसके मुताबिक प्रदूषण है और इस इलाके में रहने वाले लोगों को एहतियात बरतने की ज़रुरत है। ख़ास तौर पर उन्हें जिन्हें फेफड़ों संबंधी बीमारियां हैं।

13 जून को पीथमपुर में प्रदूषण की स्थिति (Source: CPCB)

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सामान्य गाइडलाइन्स के मुताबिक  AQI का स्तर 100 से कम रहने पर ही बेहतर होता है और सौ से दो सौ के बीच में इसे मॉडरेट यानी संतुलित माना जाता है। वहीं AQI बताने वाले अंतर्राष्ट्रीय मानकों के मुताबिक 100 से अधिक का आंकड़ा खतरनाक होता है।

आसपास के वायु प्रदूषण को इन्हीं टेस्टिंग स्टेशन के आंक़ड़ों के आधार पर बताने वाली एक अन्य वेबसाईट  www.aqi.in से भी प्रदूषण को रियल टाइम में देखा जा सकता है। इस वेबसाइट के आंकड़े भी प्रदूषण विभाग और निजी संस्थानों द्वारा लगाए गए महंगे और विश्वसनीय उपकरणों का ही सहारा लेते हैं। 15 जून को इस वेबसाइट के मुताबिक सेक्टर दो में प्रदूषण का स्तर (AQI) 189 था।  जो कि किसी भी लिहाज से स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता।

15 जून की दोपहर वेबसाइट पर AQI के रियल टाइम आंकड़े

इंदौर में प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण विभाग में लंबे समय तक प्रयोगशाला विशेषज्ञ रहे डॉ. दिलीप वाघेला बताते हैं कि बरसात के मौसम में अक्सर हवा तेज चलती है और इसमें कई तरह के धूल के कण उड़ते रहते हैं जो एयर पॉल्युशन मॉनिटर में दर्ज होते हैं और AQI बढ़ा हुआ मिलता है।

डॉ. दिलीप कुमार वाघेला

डॉ. वाघेला आगे कहते हैं

100 से कम AQI होना एक आदर्श स्थिति है लेकिन इससे अधिक बहुत ज्यादा खतरनाक नहीं कहा जा सकता और इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि ऐसी स्थिति लगातार बनी रहेगी तो लोगों को अपने स्वास्थ्य को लेकर बड़ी परेशानी होगी।

इस विषय पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी बताते हैं कि पीथमपुर क्षेत्र में हवा की शुद्धता संतुलित स्तर पर है फैक्ट्रियां अब नियमों का पहले से बेहतर तरीके से पालन करती हैं। क्षेत्रीय अधिकारी कांति चौधरी कांति चौधरी कहते हैं कि बदबू की शिकायत को लेकर उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन इस विषय पर अब वे अपने कनिष्ठ अधिकारियों को जांच करने के लिए कहेंगे।

 

 

 

 

 







ताज़ा खबरें