सांवेर में सीएम के कार्यक्रम के लिए 600 बसें अधिग्रहित, हाईकोर्ट का आठ को नोटिस

DeshGaon
बड़ी बात Updated On :
mp high court indore

इंदौर। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सांवेर विधानसभा में हुए कार्यक्रम में भीड़ जुटाने और सरकार खजाने से खर्चा उठाए जाने के मामले में याचिका पर मंगलवार को हाईकोर्ट ने सुनवाई की। हाईकोर्ट ने मामले में भारत निर्वाचन आयोग, मध्यप्रदेश निर्वाचन आयोग, मुख्य सचिव मध्यप्रदेश शासन, कलेक्टर समेत 8 को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

युवा कांग्रेस के प्रवक्ता जयेश गुरनानी (विधि छात्र) ने निर्वाचन आयोग को शिकायत की थी कि पिछले महीने सांवेर विधानसभा में नर्मदा परियोजना भूमिपूजन समारोह में मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में जिला प्रशासन द्वारा 600 बसें जुटाने और सरकारी खजाने से डीजल का भुगतान किया गया। कोरोना गाइडलाइन का उल्लंघन कर हजारों की संख्या में भीड़ भी जुटाई गई। मामले में आयोग द्वारा संतोषजनक कार्रवाई नहीं होने पर गुरनानी ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी।

मंगलवार को मामले में डबल बेंच ने सुनवाई करते हुए अधिवक्ता गौरव वर्मा के तर्कों से सहमत होते हुए भारत निर्वाचन आयोग, मध्यप्रदेश निर्वाचन आयोग, मुख्य सचिव मध्यप्रदेश शासन, प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन विभाग, कलेक्टर जिला इंदौर, क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी, कार्यपालन यंत्री नर्मदा विकास इंदौर संभाग एवं कार्यपालन यंत्री नर्मदा विकास सनावद को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

याचिका में कहा गया कि कोविड-19 महामारी के चलते केंद्र सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन के अनुसार कार्यक्रम करने के लिए अधिकतम 100 लोगों को इकट्ठा करने की अनुमति थी। जिला प्रशासन ने आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए सरकारी तंत्रों का दुरुपयोग कर हजारों की भीड़ जुटाने के लिए 600 से अधिक बसों का अधिग्रहण किया, जिसका औचित्य क्या है? तथा उक्त अधिग्रहित की गई बसों का किराया तथा पेट्रोल डीजल की खरीदी का पैसा सरकारी खजाने से क्यों दिया गया?

याचिका में कहा गया कि तमाम सरकारी निर्देशों के बाद भी कोविड-19 महामारी के चलते हजारों की संख्या में भीड़ जुटाकर मध्यप्रदेश ग्वालियर खंडपीठ के आदेश की अवमानना क्यों की गई? मुख्यमंत्री जैसे जवाबदार लोकसेवक मध्यप्रदेश की जनता को कोरोना वायरस की महामारी में क्यों झोंका गया? आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 56 के तहत यदि कोई सरकारी अधिकारी केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकार के निर्देशों का पालन नहीं करता है तो जवाबदार अधिकारी को एक साल के कठोर कारावास की सजा हो सकती है।



Related