नई दिल्ली। केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय अंतरिक्ष नीति 2023 को मंजूरी दे दी है। इसका उद्देश्य देश के अंतरिक्ष विभाग की भूमिका को बढ़ावा देना और अनुसंधान, शिक्षा, स्टार्टअप और उद्योग को बड़ी भागीदारी देना है।
यह नीति भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और निजी क्षेत्र की संस्थाओं जैसे संगठनों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को निर्धारित भी करती है। इसके साथ ही कैबिनेट ने महाराष्ट्र के हिंगोली में LIGO (लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी) की स्थापना को भी मंजूरी दी है।
आइए विस्तार से समझते हैं कि आखिर क्या है राष्ट्रीय अंतरिक्ष नीति 2023 और आखिर इसे भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए क्यों इतना महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
क्या है राष्ट्रीय अंतरिक्ष नीति –
अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिए खोलने के लगभग तीन साल बाद, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को निजी क्षेत्र के खिलाड़ियों द्वारा भागीदारी की प्रक्रिया को कारगर बनाने के लिए भारतीय की अंतरिक्ष नीति 2023 को मंजूरी दी।
ये नीति साफ तौर से न केवल निजी खिलाड़ियों बल्कि सार्वजनिक-निजी मध्यस्थ इन-स्पेस और विभाग की वाणिज्यिक शाखा, न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को भी स्पष्ट रूप से बताएगी।
भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने बताया कि “संक्षेप में, भारतीय अंतरिक्ष नीति स्थापित घटकों (हाल के दिनों में) की भूमिका में स्पष्टता प्रदान करेगी।”
उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र की कंपनियां अब रॉकेट, उपग्रह और प्रक्षेपण यान बनाने, डेटा संग्रह और प्रसार करने में सक्षम होंगी। निजी क्षेत्र को एंड-टू-एंड अंतरिक्ष गतिविधियों तक पहुंच प्राप्त होगी।
अंतरिक्ष विभाग के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम NSIL यानि न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड द्वारा अंतरिक्ष क्षेत्र से संबंधित रणनीतिक गतिविधियों को अंजाम दिया जाएगा, जो मांग-संचालित मोड में काम करेगा।
इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ के मुताबिक अंतरिक्ष नीति का फोकस अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी बढ़ाना होगा।
वे कहते हैं कि हाल ही में बनाई गई एजेंसी INSPACe (भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन और गैर-सरकारी संस्थाओं के बीच इंटरफेस होगी।
बता दें कि न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) भारत सरकार का एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम (PSU) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की वाणिज्यिक शाखा है।
इसकी स्थापना 6 मार्च 2019 को अंतरिक्ष विभाग (DoS) और कंपनी अधिनियम 2013 के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत की गई थी। NSIL का मुख्य उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाना है।
दूसरी ओर भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र ( IN-SPACe ) भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग के तहत एक एकल-खिड़की स्वायत्त एजेंसी है।
पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जून 2020 में अंतरिक्ष क्षेत्र को खोलने और अंतरिक्ष गतिविधियों के पूरे क्षेत्र में भारतीय निजी क्षेत्र की भागीदारी को सक्षम करने और निजी क्षेत्र की भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिए, सरकार ने भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) को एकल-खिड़की, स्वतंत्र, नोडल एजेंसी के रूप में बनाया है जो अंतरिक्ष विभाग (DOS) में एक स्वायत्त एजेंसी के रूप में कार्य करती है।
अंतरिक्ष क्षेत्र में शिक्षा,उद्योग और स्टार्टअप को कैसे फायदा –
इसरो के अध्यक्ष एस. सोमनाथ कहते हैं कि वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी अभी लगभग दो प्रतिशत है और राष्ट्रीय अंतरिक्ष नीति से उम्मीद है कि भविष्य में यह तकरीबन 10 प्रतिशत तक बढ़े।
भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम दुनिया में सबसे अच्छी तरह से विकसित कार्यक्रमों में से एक है और एक राज्य के स्वामित्व वाली एजेंसी यानि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा संचालित है।
इस नीति के माध्यम से भारत दूर संवेदी उपग्रह विकसित करने में अपनी अंतरिक्ष अनुसंधान क्षमता का उपयोग और अधिक कर पाएगा जो मृदा, सूखे की स्थिति और फसल विकास की निगरानी के लिये महत्त्वपूर्ण डेटा प्रदान करता है।
राष्ट्रीय अंतरिक्ष नीति से भारत में ग्रामीण स्तर पर अंतरिक्ष जागरूकता कार्यक्रम शुरू करना भी लाभप्रद होगा। इसके अतिरिक्त, विशेष रूप से छात्राओं के लिये ‘कॉलेज-इसरो इंटर्नशिप कॉरिडोर’ का निर्माण किया जा सकेगा ताकि वे धरती से पार अंतरिक्ष में भी अपने पंख पसार सकने की संभावनाओं से परिचित हो सकें।
हाल ही में भारत की 750 स्कूली छात्राओं द्वारा निर्मित आजादीसैट (AzaadiSAT) इस दिशा में एक दृढ़ कदम था। इसका सबसे बड़ा असर भारत के अंतरिक्ष बाजार के लिये लागत-प्रतिस्पर्द्धी और विश्वस्तरीय उत्पादों के साथ ही सेवाओं पर पड़ेगा जिससे सस्ती और गुणवत्तापूर्ण अंतरिक्ष सेवाओं और वस्तुओं का उत्पादन होगा।
इस क्षेत्र में स्टार्टअप बढ़ने से रोजगार में भी बढ़ोतरी होगी और अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए कई सारे नए अनुसंधान और प्रक्रियों में भी वृद्धि आएगी।
निजी क्षेत्र के लिए अपार अवसर –
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री की पहल पर निजी भागीदारी के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र को खोले जाने की शुरुआत के तीन वर्षों के भीतर इसरो में स्टार्टअप्स की संख्या 150 तक पहुंच गई है।
2020 में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक ऐसे मसौदा कानून को मंजूरी दी, जिसने निजी क्षेत्र को रॉकेट और उपग्रहों के निर्माण/विकास, लॉन्चिंग सेवाएं प्रदान करने और उपग्रहों के मालिक होने जैसी कई अंतरिक्ष गतिविधियों में भाग लेने या शुरू करने में सक्षम बनाया।
चूंकि अंतरिक्ष क्षेत्र को 2020 में निजी खिलाड़ियों के लिए खोल दिया गया था, इसलिए देश में 200 से अधिक अंतरिक्ष स्टार्ट-अप सामने आए हैं और उनमें से कई लॉन्च सेवाएं प्रदान करने की दिशा में भी काम कर रहे हैं।
निजी कंपनी स्काईरूट एयरोस्पेस अपने ठोस ईंधन आधारित सिंगल-स्टेज विक्रम एस रॉकेट के साथ पहले ही उप-कक्षीय उड़ान का संचालन कर चुकी है।
अब राष्ट्रीय अंतरिक्ष नीति से यह उम्मीद की जा सकती है कि बड़े स्तर पर निजी क्षेत्र को भारत के सभी अंतरिक्ष कार्यक्रमों में देखा जाएगा।
भारतीय अंतरिक्ष संघ के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल ए के भट्ट (सेवानिवृत्त) कहते हैं “ कैबिनेट द्वारा भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 को मंजूरी देना एक ऐतिहासिक क्षण है। यह अंतरिक्ष सुधारों में बहुत आवश्यक स्पष्टता के साथ आगे का मार्ग प्रशस्त करेगा और देश के लिए अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के अवसर को चलाने के लिए निजी उद्योग की भागीदारी को बढ़ाएगा।
वे कहते हैं कि हम काफी समय से इसका इंतजार कर रहे थे और आज ये घोषणा सुखद आश्चर्य के रूप में सामने आई है।
भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को कितना होगा फायदा –
भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 से यह उम्मीद की जा रही है कि यह इसरो की गतिविधियों को बढ़ावा देगी और इसे एक अधिक प्रभावी और अधिक उत्तेजक तरीके से अपने लक्ष्यों को हासिल करने में सक्षम बनाएगी।
यह नीति भारत में एक मजबूत अंतरिक्ष उद्योग के विकास के लिए भी एक ढांचा प्रदान करेगी, जो रोजगार के अवसर पैदा करेगा और देश की आर्थिक विकास में योगदान देगा।
केन्द्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि अंतरिक्ष नीति निजी क्षेत्र के लिए इसरो सुविधाओं का उपयोग करने की रूपरेखा भी बताती है।
वे आगे कहते हैं कि निजी क्षेत्र मामूली शुल्क में इसरो की विद्यमान सेवाओं का उयोग कर सकते हैं। साथ ही यह नई नीति उन्हें इस क्षेत्र के लिए नए बुनियादी ढांचे के निर्माण में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित भी करती है।
इसरो के प्रमुख सोमनाथ कहते हैं कि इसरो अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए किसी परिचालन और उत्पादन कार्य को अंजाम नहीं देगा, बल्कि अपनी ऊर्जा को नई तकनीकों, नई प्रणालियों और अनुसंधान और विकास के विकास पर केंद्रित करेगा।
उन्होंने बताया कि इसरो के मिशनों के परिचालन भाग को अंतरिक्ष विभाग के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड ही देखेगा।
महाराष्ट्र में LIGO की स्थापना को भी मंजूरी –
कैबिनेट ने महाराष्ट्र के हिंगोली में LIGO (लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी) की स्थापना को भी मंजूरी दी है।
यह वेधशाला ब्रह्मांडीय गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने और उन्हें ट्रैक करने के लिए है।
केन्द्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत में 2016 में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने से पहले, दुनिया में केवल दो LIGO वेधशालाएं थीं, और वें दोनों अमेरिका में थीं।
उन्होंने जानकारी दी कि यह वेधशाला 2030 तक बन कर पूरी हो जाएगी। उन्होंने आगे कहा कि “यह हमारी खगोलीय क्षमता में वृद्धि करेगी, और हमें न केवल भारत बल्कि दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए इनपुट और फीडबैक देने में भी सक्षम होगी, जिससे भारत को वैश्विक भूमिका मिलेगी।
LIGO (लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी) एक बड़े पैमाने पर भौतिकी प्रयोग और वेधशाला है जिसे ब्रह्मांडीय गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने और एक खगोलीय उपकरण के रूप में गुरुत्वाकर्षण-तरंग अवलोकन विकसित करने के लिए डिजाइन किया जाता है।
लेजर इंटरफेरोमेट्री द्वारा गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने के उद्देश्य से संयुक्त राज्य अमेरिका में दो बड़ी वेधशालाओं का निर्माण किया गया था।
ये वेधशालाएं चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित दर्पणों का उपयोग करती हैं जो एक प्रोटॉन के चार्ज व्यास के दस हजारवें हिस्से से कम के परिवर्तन का पता लगाने में सक्षम है।
भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में योग्यताओं को बढ़ाने और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में स्वावलंबन हासिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
इस नीति से निजी क्षेत्र को अंतरिक्ष गतिविधियों में भाग लेने के लिए एक अनुकूल वातावरण प्रदान किया जाएगा, नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग अंतरिक्ष अनुसंधान और खोज में भी विस्तार देगा।
ये कहा जा सकता है कि भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को अब एक रॉकेट बूस्टर मिल गया है जो अपनी पिछली गति से भी और अधिक तेजी से आगे बढ़ेगा।