नरोदा गाम नरसंहार के सभी आरोपी रिहा, पीड़ितों ने कहा 21 साल बाद अब इंसाफ की हुई हत्या


गुरुवार को अहमदाबाद की एक अदालत ने गुजरात दंगों के दौरान नरोदा में ज़िंदा जलाए गए अल्पसंख्यकों के मामले के सभी आरोपियों को बरी कर दिया। इस मामले में कुल 86 आरोपी थे


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उनकी बात Updated On :

अहमदाबाद। साल 2002 के गुजरात दंगों में नारोदा में हुए नरसंहार के सभी आरोपियों को बरी करने का फैसला अहमदाबाद की विशेष अदालत ने कल दिया है। इस फैसले के बाद एक ओर के लोगों में जश्न है तो दूसरी ओर निराशा। इस नरसंहार में 11 लोग मारे गए थे। इनके कत्ल के आरोप में 17 आरोपियों की पहचान की गई थी लेकिन कोर्ट में वे आरोपी साबित नहीं हो सके। एक आरोपी रहे बाबू बजरंगी ने तो एक स्टिंग ऑपरेशन में कैमरे के सामने घटना को लेकर पूरी जानकारी दे दी थी और कहा था कि उन्होंने जब एक गर्भवती महिला का पेट तलवार से चीरा और लोगों को मारा तब उन्हें महराणा प्रताप की तरह अनुभूति हुई थी।

बाबू बजरंगी के छूटने की उम्मीदें भी कुछ साल पहले तक नहीं थीं लेकिन अब वह आरोपों से मुक्त हो चुका है। उनके साथ दूसरे 16 आरोपी भी मुक्त हैं। ऐसे में एक सवाल यह है कि इतने लोगों की हत्या करने वाले आख़िर कौन थे और 21 साल तक पुलिस और जांच एजेंसियां उन्हें क्यों नहीं पकड़ सकीं। और सबसे अहम कैमरे पर हत्याओं की बात स्वीकार कर चुके लोग भी अदालत को दोषी क्यों नहीं नज़र आए। ये सवाल लोगों के दिमाग में उठ रहे हैं लेकिन फिलहाल इनका कोई जवाब नहीं है।

नरोदा के लोग कोर्ट के इस फैसले से असमहत हैं। उन्होंने कहा है कि 2002 में ग्यारह लोगों की हत्या हुई थी तो अब इंसाफ की हत्या हो गई है।  अंग्रेज़ी के एक प्रमुख अखबार ने अपनी रिपोर्ट में नारोदा नरसंहार के चश्मदीद गवाह इम्तियाज़ अहमद कुरैशी के हवाले से कहा है कि मैंने 17 आरोपियों की पहचान की थी। जिसमें विश्व हिंदू परिषद के नेता जयदीप पटेल, प्रद्युम्न पटेल, वल्लभ पटेल और अशोक पटेल शामिल थे। मैंने इन लोगों को भीड़ को उकसाते देखा था। यह लोग भीड़ को मस्जिद को जलाने और विशेष जगहों पर हमला करने के लिए उकसा रहे थे। इन लोगों ने पांच लोगों को मेरे सामने ज़िंदा जलाकर मार दिया। मुझे यह तक याद है कि आरोपियों ने कौन से रंग के कपड़े पहने थे और मैंने सभी सबूत भी पेश किए।

क्या पीड़ितों ने खुद को ज़िंदा जलाया होगा?

इम्तियाज़ ने कहा कि आरोपियों को कम से कम आजीवन कारावास की सज़ा मिलनी चाहिए थी। लेकिन कोर्ट द्वारा इन्हें बरी किए जाने ने न्यायिक व्यवस्था से हमारा भरोसा उठा दिया है। यह पीड़ितों के लिए काला दिन है। जो लोग तब मरे थे क्या उन्होंने ख़ुद को ही ज़िंदा जलाया था? लेकिन हम इस फैसले की चुनौती देंगे। गुजरात हाई कोर्ट जाएंगे। भले ही इस घटना को 21 साल हो चुके हैं लेकिन अभी भी इसकी यादें मेरे ज़हन में कैद है।

वहीं इस मामले में एक अन्य चश्मदीद शरीफ मलिक ने कहा कि इस फैसले ने अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ राज्य द्वारा समर्थित दंगों के आरोपियों को बरी कर दिया है। यह लोगों को परोक्ष रूप से दिया गया संदेश है। इससे न्यायिक व्यवस्था पर हमारा भरोसा टूटा है। लेकिन हमने हार नहीं मानी है। हम अगले और 21 वर्षों तक लड़ने के लिए तैयार हैं। शरीफ मलिक ने इस मामले के 13 आरोपियों की शिनाख्त की थी। इनमें बीजेपी की पूर्व मंत्री मीना कोडनानी भी शामिल है।

गुरुवार को अहमदाबाद की एक अदालत ने गुजरात दंगों के दौरान नरोदा में ज़िंदा जलाए गए अल्पसंख्यकों के मामले के सभी आरोपियों को बरी कर दिया। इस मामले में कुल 86 आरोपी थे, जिसमें तत्कालीन नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री रहीं मीना कोडनानी सहित विश्व हिंदू परिषद के नेता और अन्य आरोपी शामिल थे। इनमें से 18 आरोपियों की मौत भी हो चुकी है।

नारोदा अहमदाबाद से सटा हुआ एक इलाका है। फरवरी 2002 में गोधरा काण्ड के बाद जब गुजरात में दंगे भड़के तब नारोदा इन दंगों की आग में झुलसने वाले सबसे बड़े केंद्रों में से एक था। यहां पर कुल ग्यारह मुस्लिमों को ज़िंदा जलाकर मार दिया गया था।

क्या हुआ था!

28 फरवरी 2002 को, अहमदाबाद के नरोदा गाम क्षेत्र में कुंभार वास नामक इलाके के एक मुस्लिम महोल्ले में भीड़ ने घरों में आग लगाकर 11 मुसलमानों को जलाकर मार डाला था. इसके एक दिन पहले गोधरा ट्रेन जलाने के विरोध में बुलाए गए ‘बंद’ के दौरान, 58 यात्री मारे गए थे, जिनमें ज्यादातर कारसेवक अयोध्या से लौट रहे थे।

 

साभारः हम समवेत



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