आदमियों के बराबर खड़े होने की ज़िद में आगे बढ़ती ये जिंदादिल औरतें


महिला सशक्तिकरण समाज के निचले या शुरुआती स्तर से हो तो कहीं बेहतर है। इंदौर में ऐसा ही हो रहा है जहां महिलाएं हर उस काम में अपना अधिकार खोज रहीं हैं जिसे अब तक पुरुष प्रधान समझा जाता रहा है फिर चाहे वह ड्राईवर का पेशा हो, मैकेनिक या फिर इलेक्ट्रिशियन का काम।


आदित्य सिंह आदित्य सिंह
उनकी बात Updated On :

सुबह के पौने छह बज रहे हैं और बस्ती में कमोबेश अंधेरा ही है। अपने दोनों बच्चों को सोते हुए छोड़ ठीक इसी वक्त शहनाज़ बी अपने घर से निकल जाती हैं। इसके बाद उनके शौहर इरफ़ान घर के रोजाना के कामों के साथ नाश्ता बनाकर बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने में लग जाते हैं।

दरअसल शहनाज़ के कंधों पर एक बड़ी ज़िम्मेदारी है। वे देश के सबसे साफ-सुथरे शहर कहे जाने वाले इंदौर में नगर निगम की कचरा गाड़ी चलाती हैं। वे इंदौर की शुरुआती महिला ड्राईवरों में से एक हैं।

शहनाज़ बी नगर निगम इंदौर में डोर टू डोर कलेक्शन वाहन की ड्राईवर हैं।

शहनाज़ बी के शौहर इरफ़ान कहते हैं कि पहले उन्हें समाज में हिचक महसूस होती थी लेकिन अब उन्हें अपनी पत्नी की इस कामयाबी पर गर्व है। शहनाज़ के लिए भी ‘भले ही ड्राईविंग एक साधारण काम है’, लेकिन महिला होकर यह काम कर पाना उनके लिए असाधारण उपलब्धि है।

इसी तरह 23 साल की शिवानी रावत यंत्रिका गैराज चलाती हैं। यह देश में पूरी तरह से महिलाओं द्वारा संचालित पहला गैराज है। शिवानी ने 18 साल की उम्र में परिवार वालों को बिना बताए बाइक सुधारने की काम सीखा था।

Shivani Rawat is a mechanic at Yantrika Garage, Indore. Deshgaon News
शिवानी रावत यंत्रिका गैराज में मैकेनिक हैं।

उन्होंने बताया कि ’‘मुझे शुरू से काम करना था लेकिन सिलाई, कढ़ाई या ब्यूटी पार्लर जैसा कोई काम नहीं, बल्कि ऐसा काम जो कुछ अलग हो और जिसमें उन्हें मज़बूती का अहसास हो।‘’ ऐसे में उन्होंने बाइक मैकेनिक बनना चुना।

शिवानी अब हर तरह की बाइक सुधार लेती हैं, उनके इंजन तक रिपेयर कर लेती हैं और अब उनकी इच्छा कार रिपेयरिंग सीखने की है।

शुरुआत में शिवानी को केवल मां का सपोर्ट मिला था लेकिन उनके पापा और भाई कुणाल इस काम से बेहद नाराज़ थे और रोज़ डांटते थे।

ऐसे में शिवानी भाई से छिपकर काम सीखने आती थीं। भाई को किसी तरह मनाया तो भाई ने शर्त रख दी कि काम सीख लो लेकिन नौकरी नहीं करोगी और फिर नौकरी करने के लिए ऐसा ही संघर्ष करना पड़ा। लेकिन अब भाई और पापा दोनों खुश हैं और भाई अपने सभी दोस्तों की गाड़ियां रिपेयर के लिए यहीं भेजते हैं।

शिवानी की पड़ोसी यास्मीन बतातीं हैं कि शुरुआत में सभी शिवानी को देखकर तरह तरह की बातें करते थे लेकिन अब सब बदल गया है। वे कहती हैं कि इस लड़की ने साबित कर दिया है कि लड़कियां हर वो सम्मानजनक काम कर सकती हैं जो पुरुष कर पाएं। यास्मीन कहती हैं कि शिवानी की तरह समाज में और भी लड़कियां होनी चाहिए जो सभी को प्रेरित करें।

यंत्रिका गैराज में अब सौ के आसपास महिलाएं हैं। शहर में तीन महिला गैराज हैं। जहां हर गैराज में औसतन चार महिलाएं काम करती हैं। ये गैराज इनका अपना है। गैराज को स्थापित करने में समान सोसायटी ने अलग-अलग लोगों औऱ कंपनियों से मदद ली है और फिर ये इन महिलाओं को सौंप दिया है।

अब महिलाएं अपने हिसाब से इसे चलाती हैं। किराया और दूसरे खर्च निकालने के बाद वे पैसे आपस में बांट लेती हैं। इस तरह इन महिलाओं को हर महीने एक ठीक-ठाक आमदनी होती है।

समाज आगे बढ़ चुका है महिलाएं काफी कुछ कर रहीं हैं लेकिन हमारे समाज के निचले तबके में अभी भी स्थितियां कोई बहुत अलग नहीं हैं। ऐसे पुरुषवादी समाज में इन महिलाओं की कुछ अलग करने की ये कोशिशें  दरअसल बराबरी के दर्जे को हासिल करने की एक छटपटाहट है जिसे वे हर हाल में पाना चाहती हैं। इस बराबरी को पाना आसान नहीं था।

शहनाज़, शिवानी और उनके जैसी कई दूसरी महिलाओं ने साल 2015 में इंदौर की समान सोसायटी से ड्राईविंग सीखने की शुरुआत की थी।

समान सोसायटी के निदेशक राजेन्द्र बंधु बताते हैं कि ‘लैंगिक समानता को हासिल करने के लिए समान सोसायटी साल 2010 में शुरु की थी और कुछ साल तक अलग-अलग कामों के बाद इस संस्था ने 2015 में एक कार्यक्रम के तहत महिलाओं को ड्राईविंग की ट्रेनिंग देना शुरु किया।

Rajendra brothers, founders of Indore's Saman Society, Deshgaon News
राजेंद्र बंधु, इंदौर की समान सोसायटी के संस्थापक

इस दौरान करीब तीन सौ महिलाओं को यह ट्रेनिंग दी गई। इसके बाद से अब तक इंदौर और आसपास के इलाकों में अक्सर महिलाएं सड़कों पर निजी और कर्मशियल वाहन चला रहीं हैं।‘

समान संस्था के साथ करीब तीन सौ महिलाओं ने ड्राईविंग की ट्रेनिंग ली है। ये महिलाएं आज सड़कों पर बस से लेकर ऑटो, कर्मशियल वाहन, नगर निगम की गाड़ियां, निजी वाहन चलाने जैसे तमाम काम कर रही हैं। हालांकि यह इतना आसान भी नहीं है। जिन महिलाओं ने ड्राईविंग सीखी, उनमें से कई परिवार और समाज के दबाव में ये काम छोड़ चुकी हैं लेकिन जिन्होंने नहीं छोड़ा वे आज आत्मनिर्भर हैं।

राजेंद्र बंधु बताते हैं कि महिलाओं को आत्मनिर्भरता के लिए उत्साहित करना मुश्किल नहीं है, लेकिन मुश्किल इसके बाद शुरु होती है। वे कहते हैं कि उनके कार्यक्रमों में अब तक कई महिलाएं शामिल होकर आत्मनिर्भर बनी हैं औऱ समाज में उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई है लेकिन इनकी राह आसान नहीं रही। इनके परिवार और समाज ने इनकी राह में कई तरह की रुकावटें पैदा की।

Ritu Narwale, passenger bus driver, Devgaon News
ऋतु नरवाले, यात्री बस ड्राईवर

इंदौर की ऋतु नरवाले प्रदेश की पहली ऐसी महिला ड्राईवर हैं जिन्होंने बस चलाना शुरु की। वे सुबह छह बजे से दो बजे तक शहर के बीआरटीएस कॉरिडोर में बस चलाती हैं। ऋतु के मुताबिक उनके लिए यह सबसे शानदार अनुभव रहा है। बस चलाते हुए उन्हें महसूस होता है कि वे कुछ अलग कर रही हैं।

बस चलाना शुरु करने से पहले ऋतु शहर के एक नामचीन होटल में गाड़ी चलाती थीं। ऋतु ने बताया कि ‘‘समान सोसायटी की ट्रेनिंग ने मेरी जिंदगी बदल दी है और आज मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं क्योंकि मैं मेहनत से नहीं डरती।’’

ऋतु के पिता राजेश नरवाले एक इलेक्ट्रिशियन हैं वे बताते हैं कि हमें गर्व होता है कि हमारी बच्ची इस मुकाम पर है। वे कहते हैं कि समाज वाले लोग अक्सर बातें करते थे लेकिन अब बेटी को सब पहचानते हैं वह अलग है और उसे इसमें खुशी मिलती है। कई दूसरी बच्चियां भी अब ऋतु को देखकर कुछ कर गुजरना चाहती हैं उनकी हिचक कम हुई है।

ऋतु के साथ ही शहनाज़ शाह भी उसी बड़े होटल में गाड़ी चलाती थीं। उस समय होटल में महिला ड्राईवर को देखकर लोग चौंक जाते थे, लेकिन शहनाज़ गाड़ी अच्छी चलाती थीं, इसलिए लंबे समय तक होटल में बनी रहीं।

अभी कुछ महीने पहले ही उन्होंने अपने निजी कारणों से नौकरी छोड़ दी है। वे बताती हैं कि इससे बच्चों की परवरिश में दिक्कत हो रही थी और उन्हें ऐसी शिफ्ट में काम करना पड़ता था जो परिवारिक रुप से उनके अनुकूल नहीं थी लेकिन इस काम ने उन्हें काफी नाम दिया और आगे भी परिस्थितियां ठीक होने पर वे वापस यह काम करना चाहेंगी।

महिलाओं को पुरुष की बराबरी से काम करवाना और उन्हें आर्थिक आज़ादी देना समान सोसायटी का उद्देश्य है। राजेंद्र बंधु बताते हैं कि ‘‘कई महिलाएं केवल इसलिए काम नहीं जारी रख सकीं, क्योंकि वे अपने पति से ज्यादा कमाती थीं ऐसे में पति ने उन्हें नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया उन पर तरह-तरह के दबाव डाले गए।’’

ड्राईवर महिलाओं की सबसे ज्यादा मांग घरेलू स्तर पर होती है। आज इंदौर में सैकड़ों महिलाएं घरेलू ड्राईवर का काम करती हैं। राजेंद्र बंधु ने इसे लेकर हमें बताया कि महिलाओं को सबसे अच्छा, सुरक्षित और केयरिंग माना जाता है।

ऐसे में ड्राईवर रखने वाले ज्यादातर लोग अपने परिवारों में महिला ड्राईवर की ही मांग करते हैं। हालांकि अभी इनकी संख्या कम है लेकिन यह मांग के मुताबिक ठीक है।

इन महिलाओं ने केवल हुनर, आत्मविश्वास और सम्मान हासिल ही नहीं किया है, बल्कि अपने प्रति समाज का दृष्टिकोण में भी बदलाव लाया है। संतोषी अहिरवार एक पैर से विकलांग हैं लेकिन उनकी ड्राईविंग शानदार है। वे इन दिनों छोटे कर्मशियल वाहन चलाती हैं।

प्रदेश में वे संभवतः पहली दिव्यांग महिला ड्राईवर हैं। उनके लिए ड्राइविंग लाइसेंस हासिल करना भी एक चुनौती रही जिसके लिए परिवहन विभाग ने मदद की। संतोषी के मुताबिक उन्हें लगता है कि उन्होंने सब कुछ पा लिया है।

महिलाओं को ड्राईविंग सिखाने के बाद समान सोसायटी ने एक नई पहल की। राजेंद्र बंधु बताते हैं कि महिलाओं का गाड़ी चलाना सिखाना अधूरा था क्योंकि वे अपनी गाड़ी को सुधारना नहीं जानती थीं। ऐसे में उन्होंने साल 2018 में यंत्रिका गैराज शुरु किया।

महिला गैराज इसलिए क्योंकि गैराज की पहचान आइल ग्रीस से गंदे हुए पुरुषों की जमात वाले स्थान के रुप में होती है जहां गाड़ी चलाने वाली महिलाएं आने से कतराती हैं। ऐसे में उन्हें एक दोस्ताना माहौल यंत्रिका के माध्यम से दिया जा सकता था।

शुरुआत में करीब सौ महिलाओं को गाड़ी सुधारने की ट्रेनिंग दी गई। इनमें से कई महिलाओं ने टू व्हीलर कंपनियों के सर्विस सेंटर में काम किया है और कई अभी भी कर रहीं हैं।

यंत्रिका गैराज ने भी इन महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ाया है। इंदौर के वर्ल्ड कप चौराहे के नज़दीक जिस गैराज में बीते पांच साल से शिवानी काम करती हैं, वहां उनके साथ दुर्गा मीणा भी हैं। दुर्गा ने 2018 में मैकेनिक की ट्रेनिंग ली थी और एक साल काम किया।

Durga Meena, mechanic at Yantrika Garage, Deshgaon News
दुर्गा मीणा, यंत्रिका गैराज में मैकेनिक

इस दौरान उनके पति जीवन सिंह मीणा ने उनका खूब मनोबल बढ़ाया, लेकिन पड़ोसियों ने मज़ाक भी खूब बनाया। साल 2020 में उनके पति जीवन की मृत्यु हो गई और दुर्गा अपने दोनों बच्चों के साथ सिहोर जिले में अपने ससुराल चलीं गईं।

दुर्गा मीणा बताती हैं कि इसके बाद राजेंद्र बंधु का उनके पास संदेश आया और काफी बार सोचने के बाद वे इंदौर आ गईं। यहां यंत्रिका गैराज के लिए उन्होंने नई ल़ड़कियों को ट्रेनिंग देना शुरू किया जिसके लिए उन्हें वेतन दिया जाता था। ट्रेनिंग के बाद वे खुद इसी गैराज में आ गईं हैं। अब रोजाना 6-7 गाड़ियों की सर्विसिंग करती हैं।

दुर्गा कहती हैं कि समानता का अर्थ क्या है, यह उनसे पूछना चाहिए जिन्हें हमेशा ही कमजोरी के अहसास में डुबाकर रखा गया। वे कहती हैं कि जमा पूंजी पति के इलाज में लग गई थी और इसके बाद कोई उम्मीद नहीं थी फिर अपने इसी हुनर और काम  की मदद से वे अपने बच्चों को पढ़ाई करवा सकीं और बड़े बेटे को बीबीए में एडमिशन दिला पाईं।

इसी तरह दुर्गा मीणा की सामाजिक पहचान भी बदली है। इंदौर के पांदा में रहने वाली दुर्गा मीणा के नजदीकी रिश्तेदार कैलाश मीणा भी उनके पड़ोस में ही रहते हैं। शुरुआत में जब दुर्गा काम सीख रही थी तो कैलाश इसे बिल्कुल पसंद नहीं करते थे लेकिन अब उनका नजरिया बदल चुका है। वे दुर्गा की काफी तारीफ करते हैं और उन्हें आज के जमाने की महिला बताते हैं। कैलाश अपनी गाड़ी की सर्विसिंग भी अब्दुल्ला से ही करवाते हैं। कैलाश कहते हैं कि हुनर बड़ी चीज़ है और अब वे मानते हैं कि काम के मामले में मर्द और औरत में भेदभाव बेमानी है।

इसी इलाके के अभिलाष नगर में दुर्गा के देवर बबलू मीणा भी रहते हैं। वे कहते हैं कि पहले जब उनकी भाभी इस तरह से गाड़ियां रिपेयर करती थी तो उन्हें एक शर्म सी महसूस होती थी लेकिन अब जब उनके बड़े भाई नहीं रहे और इसके बावजूद दुर्गा ने हार नहीं मानी और अपने बच्चों को इसी हुनर के सहारे बड़ा कर लिया तो वे उनकी मेहनत और लगन को सराहते हैं। कैलाश की तरह अब बबलू और उनके कई दोस्तों की गाड़ी भी अब दुर्गा ही रिपेयर करती हैं।

यंत्रिका गैराज में 20 साल की शिवानी बंसल भी काम सीख रहीं हैं। वे कुछ करना चाहती थीं और लोगों ने उन्हें ब्यूटी पार्लर वगैरह शुरु करने की सलाह दी लेकिन यह उन्हें ठीक नहीं लगा। शिवानी इंदौर के पालदा इलाके में जहां रहती हैं वहां भी एक यंत्रिका गैराज है और गाड़ी सुधारती महिलाओं को देखकर उन्हें अच्छा लगा और फिर यही काम करने की सोची।

Shivani Bansal is learning work at Yantrika Garage, Indore., Deshgaon News
शिवानी बंसल, इंदौर के यंत्रिका गैराज में काम सीख रहीं हैं।

शिवानी बंसल कहती हैं कि ‘’शुरुआत में मेरे पिता को यह स्वीकारने में कुछ हिचकिचाहट हुई लेकिन बाद में वे मान गए और अब खुश हैं। ये काम मुझे जीवन में आगे बढ़ने में मदद करेगा और नई राह बनाएगा क्योंकि मैं इससे मजबूत महसूस करूंगी।’’

इंदौर में इलेक्ट्रिक लाइट डिस्ट्रिब्यूटर का काम करने वाले कृष्णा तिवारी अब यहीं अपनी बाइक सुधरवाते हैं। वे हमें बताते हैं कि वे केवल इसलिए यहां नहीं आते क्योंकि वे इन महिलाओं की मदद करना चाहते हैं बल्कि इसलिए आते हैं क्योंकि ये लड़कियां दूसरे गैराजों से कहीं बेहतर काम कम पैसे लेकर कर देती हैं। वे कहते हैं कि उनके साथ वाले ज्यादातर लोग अब यहीं अपनी बाइक सुधरवाते हैं।

Krishna Tiwari now regularly gets his car serviced at Yantrika Garage. Deshgaon News
कृष्णा तिवारी अब नियमित रुप से यंत्रिका गैराज में अपनी गाड़ी की सर्विसिंग करवाते हैं।

समान सोसयाटी फिलहाल केवल गाड़ी चलाने और मैकेनिक तक ही सीमित नहीं है, अब कोशिश हो रही है उन दूसरी फील्ड में जाने की जहां अब तक पुरुषों का ही कामकाज रहा है। अब एक ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाया जा रहा है जहां महिलाओं को इलेक्ट्रिशिन बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है। फिलहाल करीब 50 महिलाओं को ट्रेनिंग दी जा रही है। राजेंद्र बंधु कहते हैं कि महिलाओं को समाज के हर स्तर पर हर उस फील्ड में अपना हाथ आज़माना होगा, जहां अब तक उन्हें वर्जित समझा जाता रहा है। इस तरह वे खुद को वो अधिकार दे पाएंगी जो उन्हें अब तक नहीं मिला।

 

 

 

 

 

साभारः आदित्य सिंह द्वारा यह खबर मूल रूप से मोजो स्टोरी नाम के प्लेटफार्म के लिए लिखी गई थी। हम यह साभार देशगांव पर प्रकाशित कर रहे हैं। मूल ख़बर को आप यहां भी पढ़ सकते हैं। 



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