
चार दशकों से ज्यादा समय तक अपने ही खेतों की ज़मीन पर अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे धार और झाबुआ जिले के हजारों किसानों को आखिरकार बड़ी राहत मिली है। राज्य सरकार ने सरदारपुर क्षेत्र के आसपास स्थित खरमोर पक्षी अभयारण्य से 216.28 वर्ग किलोमीटर राजस्व भूमि को डीनोटिफाई कर दिया है। यह निर्णय 14 गांवों के करीब 34 हजार हेक्टेयर खेती करने वाले किसानों को सीधा लाभ देगा, जिन्हें अब अपनी जमीन का पूर्ण स्वामित्व मिलेगा।
क्या है मामला?
1983 में वन विभाग ने प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ सलीम अली की सिफारिश पर सरदारपुर क्षेत्र की कुल 348.12 वर्ग किमी भूमि को खरमोर अभयारण्य घोषित किया था। इसमें अधिकांश क्षेत्र राजस्व भूमि थी, जहां किसानों की पीढ़ियां खेती करती आ रही थीं। अभयारण्य अधिसूचना के बाद से इन किसानों को न तो अपनी जमीन बेचने की अनुमति थी, न खरीदने की। न ही वे सरकारी योजनाओं जैसे फसल बीमा, लोन, या मुआवजा का लाभ ले सकते थे।
अब 3 जुलाई 2025 को जारी राजपत्र के अनुसार, केवल 132.83 वर्ग किमी वन भूमि को अभयारण्य में बरकरार रखा गया है, जबकि बाकी राजस्व भूमि से रोक हटा दी गई है। इसमें धार के साथ-साथ झाबुआ जिले के पेटलावद और झाबुआ तहसील के भी कई गांव शामिल हैं।
राजनीति में श्रेय की होड़
इस ऐतिहासिक फैसले के बाद भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों में श्रेय लेने की होड़ मच गई है। केंद्रीय राज्य मंत्री सावित्री ठाकुर ने मुख्यमंत्री मोहन यादव का आभार जताया, वहीं कांग्रेस के पूर्व विधायक वेलसिंह भूरिया और वर्तमान विधायक प्रताप ग्रेवाल ने याद दिलाया कि वे 2008 से विधानसभा में यह मुद्दा उठाते रहे हैं। किसानों के साथ धरना, प्रदर्शन और ज्ञापन सौंपने की लंबी श्रृंखला उनके खाते में दर्ज है।
कौन से गांवों को मिली राहत?
गुमानपुरा, बिमरोड, छड़ावद, धुलेट, पिपरनी, सेमल्या, केरिया, करनावद, सियावद, अमोदिया, सोनगढ़, महापुरा, टिमायची और भानगढ़—इन गांवों के हजारों किसान अब स्वतंत्र रूप से अपनी भूमि का उपयोग कर सकेंगे। जमीन के दस्तावेज, ऋण सुविधा, भूमि क्रय-विक्रय, और सरकारी योजनाओं के लाभ अब उन्हें सहज उपलब्ध होंगे।
अब तक नहीं दिखा खरमोर
गौर करने वाली बात यह भी है कि इस बार खरमोर पक्षी अभी तक इन इलाकों में दिखाई नहीं दिया है। जुलाई से अक्टूबर तक इसके आगमन की संभावना रहती है, लेकिन लगातार कम होती उपस्थिति ने विशेषज्ञों को चिंता में डाल दिया है। एक समय पूरा भारत इसका निवास स्थान था, लेकिन अब यह केवल कुछ क्षेत्रों में ही सीमित रह गया है।