मांडू की धरोहर खुरासानी इमली के पेड़ों को बिना अनुमति काट कर ले जाया जा रहा था हैदराबाद, अफसर थे अनजान


वन विभाग की मिलीभगत से बॉटनिकल गार्डन की आड़ में करोड़ों का व्यवसाय कर रहा है व्यापारी रामदेव।
राजस्‍व अनुमति के नाम पर काट दिए गए कई पेड़। सामाजिक संगठनों व आमजनों की जागरूकता से रोका गया ट्रॉला तो टूटी प्रशासन की नींद।


आशीष यादव आशीष यादव
धार Published On :
khurasani imli tree

धार। ऐतिहासिक और पुरातत्‍व‍िक धरोहर मांडू में खुरासनी इमली का अपना अलग स्‍थान है। पूरे भारत में मांडू ही एकमात्र ऐसा स्‍थान है, जहां यह दुर्लभ खुरासनी इमली के पेड़ पाए जाते हैं, लेकिन यहां पर यह बहुतायत में नहीं है।

इन संरक्षित करने योग्‍य धरोहर को काटकर तस्‍करी करने की तैयारी की जा रही है। हैदराबाद के एक प्राइवेट गार्डन में इन पेड़ों को लगाने के लिए धड़ल्‍ले से इन्‍हें काटा जा रहा है। मांडू से लगे आसपास के गांवों में बड़ी-बड़ी मशीनों से इन दुर्लभ पेड़ों की कटाई की जा रही है।

काटने के बाद इन्‍हें ट्रॉलों पर रखकर ले जाने की कवायद की जा रही थी, लेकिन मांडूवासियों और सामाजिक संगठनों के विरोध के कारण इन ट्रॉलों को रोक दिया गया। इसके बाद मामला मीडिया में आया तो पटवारी से लेकर तहसीलदार और वन विभाग के अफसर इस मामले में तलब कर लिए गए और कलेक्‍टर प्रियंक मिश्रा ने इस मामले में खुद संज्ञान लेकर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।

खुरासनी इमली के पेड़ों को काटने का सिलसिला अचानक से नहीं आया है। एक अनुमति के नाम पर गत वर्ष खुरासनी इमली के 18 पेड़ों को काटकर हैदराबाद ले जाया गया था, लेकिन इसके बाद दोबारा इमली के पेड़ों को काटने के लिए उसी निजी गार्डन के संचालक ने मशीनों और ट्रकों को भेज दिया।

मांडू से लगे ग्राम पनाला और जीराबाद के आसपास खुरासनी इमली के हरे-भरे पेड़ काटवा दिए गए और इन्‍हें ले जाने के लिए ट्रक में लोड तक करवा लिया गए, लेकिन जब लोगों को इसकी भनक लगी तो उन्‍होंने विरोध कर ट्रक को वहीं खड़ा करवा दिया।

khurasani imli tree dhar

80 हजार रुपये में बेच रहे पेड़ –

जानकारी के मुताबिक, मांडू में किसानों द्वारा रुपये लेकर खुरासनी इमली के पेड़ों को काटने के लिए दिया जा रहा है। ग्राम पनाला के एक बीचवान की मदद से किसानों को 80-80 हजार रुपये प्रति खुरासनी इमली के पेड़ के मान से रुपये देकर पेड़ों की कटाई करवाई गई।

अब ऐसे में आशंका है कि खुरासनी इमली के पेड़ों की तस्‍करी शुरू कर दी गई है. लेकिन थोड़े से लालच के चक्‍कर में मांडू की दुर्लभ धरोहर से छेड़छाड़ की जा रही है।

जाने खुरासनी इमली का इतिहास –

मांडू की मिट्टी का ऐसा जादू है कि जो यहां आया, वह यहीं का होकर रह गया। अलग-अलग सभ्यताओं के राजवंश हों या दुनिया भर की वनस्पतियां, सब यहां की मिट्टी से एकाकार हो गए।

ऐसा ही एक उदाहरण अफ्रीका के शुष्क राज्य से बाओबाब का है, जिसे 14वीं शताब्दी में महमूद खिलजी के शासनकाल के दौरान मांडू लाया गया था और इसका नाम ‘बाओबाब’ से बदलकर “खुरासानी इमली” कर दिया गया।

इसे एक और नाम मांडू इमली के नाम से जाना जाता है। बिना पत्तों वाला लॉकेट जैसा फल (मंकी ब्रेड) लोगों का ध्यान खींचने में कभी नहीं चूकता। कहा जाता है कि इस फल को खाने के बाद 3-4 घंटे तक प्यास नहीं लगती है।

फ्रांसीसी प्रकृतिवादी और खोजकर्ता मिशेल एडनसन के अनुसार, इस पेड़ के तने का व्यास 30 मीटर से अधिक हो सकता है। यह पेड़ न केवल 5,000 से अधिक वर्षों तक जीवित रहता है बल्कि यह अपने जीवनकाल में 1,20,000 लीटर तक पानी भी जमा कर सकता है।

हजारों मील दूर अफ्रीका के शुष्क प्रदेश में उगने वाला ‘बाओबाब’ इसका एक उदाहरण है। 14वीं शताब्दी में महमूद खिलजी के शासन के दौरान यह वृक्ष अफ्रीका से मांडू लाया गया और ‘बाओबाब’ से ‘खुरासानी इमली हो गया।

बारिश के मौसम को छोड़कर इस पेड़ में पत्तियां नहीं होतीं। लटकते बड़े-बड़े लॉकेटनुमा फल (मंकी ब्रैड) बरबस ही लोगों का प्रयान अपनी ओर खींच लेते हैं।

कलेक्‍टर ने पूरे अमले को किया तलब –

इस मामले के सामने आने के बाद कलेक्‍टर प्रियंक मिश्रा ने अधिकारियों के साथ एक संयुक्‍त बैठक की जिसमें वन विभाग, राजस्‍व व पुलिस के साथ पूरे मामले की समीक्षा की गई।

बैठक के बाद कलेक्‍टर मिश्रा ने बताया कि खुरासनी इमली का पेड़ दुर्लभ प्रजाति का पेड़ है। जैव विविधता के नियमों की शिथिलता के कारण ऐसी स्थिति बनी है। इसे भी समाप्‍त करने के लिए शासन को प्रशासन की तरफ से प्रस्‍ताव भेजा जाएगा। साथ ही जिन पेड़ों को काटा गया है, उन्‍हें फिर से प्‍लांट करने के लिए विशेषज्ञों से सलाह ली जा रही है।

जनजातीय समाज का हो रहा आर्थिक नुकसान –

अवैध तरीके से खुरासानी इमली के 40 पेड़ ले जाने से मांडू क्षेत्र में रहने वाले जनजाति समाज की आजीविका पर भी प्रभाव पड़ने वाला है। खुरासानी इमली पर लगने वाले फल जनजातीय समाज के ग्रामीणों द्वारा विदेशियों को 150 से 200 रुपये तक प्रति फल और भारतीय पर्यटकों को 50 से 100 रुपये तक प्रति फल बेचा जाता है।

साथ ही इस फल को काटकर इसके पैकेट 20 से 25 रुपये प्रति पैकेट बेचा जाता है, इस तरह के 7 पैकेट एक फल में बनते हैं। सैकड़ों वर्ष पुराने इन पेड़ों पर सैकड़ों फल लगते हैं जिससे जनजातीय समाज की आजीविका चलती रहती है, लेकिन अवैध तरीके से पेड़ ला जाए जाने की वजह से जनजाति समूह की आजीविका पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।

khurasani imli

कांग्रेस प्रवक्‍ता ने ग्रामीणों के साथ दिया धरना –

खुरासनी इमली की कटाई का मामला सामने आने के बाद ग्रामीणों में नाराजगी देखने को मिली थी। इस मामले में गुरुवार शाम कांग्रेस के संभागीय प्रवक्‍ता रेवती रमन राजूखेड़ी ने भी अपना विरोध दर्ज करवाते हुए ग्रामीणों के साथ मांडू के ग्राम पनाला में धरना दिया।

इस दौरान चक्‍काजाम करते हुए कुछ देर के लिए ट्रैफिक भी रोक दिया गया था। इसके बाद प्रशासन की समझाइश के बाद यातयात बहाल करवाया गया जबकि धरना जारी रहा। राजूखेड़ी ने इमली के पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने की मांग की है। साथ ही ऐसा नहीं होने पर आंदोलन की भी बात कही है।

6 दिन से पेड़ ट्रॉलो में लोड कर खड़े हैं –

khurasani imli tree on truck

खुरासानी इमली के पेड़ काटकर ट्रांसप्लांट करने हैदराबाद ले जाने के लिए शनिवार की रात को ही ट्रॉलों में लोड कर लिए गए थे। ग्रामीणों के विरोध करने पर पेड़ तस्कर ट्रॉले ले जाने में सफल नहीं हो पाए।

आज 6 दिन से मांडू की प्राकृतिक धरोहर खुरासानी इमली के पेड़ ट्रॉलों में लदे अपनी सांसें गिन रहे हैं। कोई इस और देखने वाला नहीं है। प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी भी मूकदर्शक बन इन ऐतिहासिक पेड़ों को मरते हुए देख रहे हैं।

तत्काल प्रभाव से लगाया प्रतिबंध –

खुरासानी इमली के पेड़ काटने और परिवहन पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसी के साथ काटे गए पेड़ों को पुनः उसी स्थान पर ट्रांसप्लांट करने के बारे में विशेषज्ञों से राय ले रहे हैं। – प्रियंक मिश्रा, कलेक्टर, धार

टीपी निरस्त कर दी गई है –

14/6/22 के अनापत्ति प्रमाणपत्र के आधार पर हमने टीपी जारी की थी जो कि अब कलेक्टर साहब के आदेश पर निरस्त कर दी गई है। – जीडी वरवड़े, डीएफओ, धार

 

पूर्व की अनुमति थी –

हमारे पास पूर्व में ले जाए गए पेड़ो की अनुमति थी। उसी आधार पर हम ये पेड़ भी ले जा रहे थे। अभी वर्तमान में अनुमति नहीं मिलने पर ये पेड़ यहीं छोड़ने का हमने निर्णय लिया है। – रामदेव राव, व्यवसायी, हैदराबाद



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