वनरक्षक के नाम से एसयूवी खरीदने वाले कंप्यूटर ऑपरेटर ने 80 लाख से अधिक की संपत्ति की खड़ी


मांडू में दैनिक वेतन भोगी के पद पर काम करने वाले कम्प्यूटर ऑपरेटर के राजसी ठाठ। वनरक्षक के दस्तावेज लगाकर खरीदी थी 13.74 लाख की कार।


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धार Published On :

धार। वन विभाग में इन दिनों मांडू में पदस्थ दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी की कारों की चर्चा जोरों पर है। इन चर्चाओं की शुरुआत उस शिकायती आवेदन से हुई जो, विभाग के ही वनरक्षक ने दैवेभो कम्प्यूटर ऑपरेटर के खिलाफ दिया है।

इसमें ऑपरेटर की शिकायत एसपी से की गई थी जिसमें बताया कि ऑपरेटर ने 13.74 लाख रुपये का लोन लेकर कार खरीदी और इसकी जानकारी वनरक्षक तक को लगने नहीं दी।

जब वनरक्षक खुद के लिए जब लोन लेने के लिए बैंक पहुंचा तो उसे इस बात की भनक लगी। अब इस शिकायती आवेदन के बाद अंदरखाने चर्चा शुरू हो गई है कि बगैर आर्थिक संपन्न इस ऑपरेटर ने 8 हजार रुपये की तनख्वाह में आठ साल की नौकरी में 80 लाख से अधिक की संपत्ति और लाखों रुपये की महंगी कारों का शौक कैसे पूरा किया है।

बताया जा रहा है कि वन विभाग मांडू में इन ऑपरेटर की मर्जी के बगैर कोई शुभ-लाभ का गणित संभव नहीं हो पाता है। इस वजह से यह विभाग का बड़ा कामकाजी व्यक्ति है।

इसका फायदा उठाकर ऑपरेटर ने बेहिसाब संपत्ति जुटाने का प्रयास किया है, जो अब सब की नजरों में आ चुकी है। इससे बचने के लिए ऑपरेटर ने लोन भी ले रखे हैं, लेकिन यह भी नाकाफी ही साबित हो रहे हैं।

शिकायत में दबाव बनाने का प्रयास –

वनरक्षक आकाश बडेरा ने दो दिन पूर्व एक आवेदन एसपी आदित्य प्रताप सिंह के नाम पर दिया है। इसमें बताया था कि दैनिक वेतन भोगी कम्प्यूटर ऑपरेटर नितिन पटेल ने वनरक्षक बड़ेरा के दस्तावेजों का उपयोग कर धार की एक प्राइवेट बैंक से 13 लाख 74 हजार रुपये का कार लोन करवाया। लेकिन इसकी जानकारी वनरक्षक को नहीं थी।

दो साल बाद जब वनरक्षक अक्टूबर में बैंक लोन के लिए पहुंचे तो खुद का सिविल स्कोर कम था। इसके बाद पूछताछ  में पता लगा कि बड़ेरा के नाम पर एक कार फाइनेंस है जबकि यह कार पटेल के पास है।

कम उम्र में महंगी कार का शौक –

विभागीय सूत्रों के अनुसार दैवोभो ऑपरेटर कम उम्र में अस्थायी नौकरी में आया। नौकरी में आने से पहले आर्थिक तौर पर ऑपरेटर की स्थिति कमजोर थी जो अब महंगी कारों का शौक रखता है।

सूत्रों की माने तो 8 हजार की तनख्वाह में ऑपरेटर ने बीते तीन साल में तीन महंगी-महंगी कारें बदल दी है। अब चौथी कार लेने की तैयारी में है। इनमें से दो कार खुद ऑपरेटर के नाम पर है।

अब दबाव की राजनीति –

इस कांड के उजागर होने के बाद ऑपरेटर इस मामले में राजनीति का सहारा लेने में लगा हुआ है। साथ ही वनरक्षक पर भी दबाव बनाने के प्रयास किए जा रहे है ताकि किसी भी इस तरह मामले को दबाकर रफा-दफा किया जा सके। इससे बात एफआईआर तक न पहुंचे। अगर मामला एफआईआर तक पहुंचता है तो ऑपरेटर की ऑपरेटरी पर भी खतरा आ सकता है।



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