भगोरिया पर्व के उल्लास में डूबे आदिवासी इलाके, पारंपरिक नृत्य ने बिखेरी चमक

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धार Published On :
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धार। भारतीय संस्कृति और परंपरा में आदिवासियों के रीति-रिवाज आज भी प्रचलित हैं। एक पर्व ऐसा भी है, जो मालवांचल निमाड़ के कुछ जिलों में प्रमुखता से मनाया जाता है, इसे भगोरिया पर्व के नाम से जाना जाता है।

साल में एक बार होली के एक सप्ताह पूर्व से शुरू होकर होली जलने तक बड़े ही धूमधाम से इसे मनाया जाता है। भगोरिया धार, झाबुआ, आलीराजपुर व बड़वानी जिले के आदिवासियों के लिए खास महत्व रखता है। आदिवासी समाज मूलत: किसान हैं।

ऐसी मान्यता है कि फसलों के खेतों से घर आने के बाद आदिवासी समाज भगोरिया उत्सव को हर्षोल्लास के पर्व के रूप में मनाता है। इस पर्व में हर आयु वर्ग का व्यक्ति सज-धज कर शामिल होता है।

भगोरिया आदिवासी संस्कृति की धरोहर है, इसलिए सभी वाद्य यंत्र के साथ मांदल की थाप पर हाट-बाजार में पहुंचते हैं और मौज-मस्ती के साथ उत्सव के रूप में मनाते हैं।

क्या होता है भगोरिया –

कई लोगों की यह मान्यता है कि भगोरिया का अर्थ है भाग कर शादी करना। हालांकि हाल ही के वर्षों में शिक्षित युवा वर्ग ने भगोरिया के माध्यम से चयन को नकारना शुरू कर दिया है। यहां तक कि उसे प्रणय पर्व कहने पर भी तीखी आपत्ति है। इसका मुख्य कारण भगोरिया में आ रही शहरी विकृतियां हैं।

इजहार करने का अनोखा तरीका –

भगोरिया हाट-बाजारों में युवक-युवती सज-धज कर जीवनसाथी ढूंढने आते हैं। इनमें आपसी रजामंदी जाहिर करने का तरीका भी बेहद निराला होता है। लड़का लड़की को पान खाने के लिए देता है। यदि लड़की पान खा ले तो हां समझी जाती है और फिर लड़का, लड़की को लेकर भाग जाता है और शादी कर लेते हैं।

इसी तरह यदि लड़का-लड़की एक-दूसरे के गाल पर गुलाबी रंग मल दे तो भी रिश्ता तय माना जाता है। इसी तरह कुछ जनजातियों में चोली और तीर बदलने का रिवाज है।

वर पक्ष लड़की को चोली भेजता है। यदि लड़की चोली स्वीकार कर बदले में तीर भेज दे तब भी रिश्ता तय माना जाता है। इस तरह भगोरिया आदिवासियों के लिए विवाह बंधन में बंधने का अनूठा त्योहार भी है।

युवक-यु‍वतियों के तय होते हैं रिश्ते –

एक से रंग की वेश-भूषा में युवक-युवतियां नजर आते हैं। इस दौरान कई युवक-युवतियों का रिश्ता भी तय हो जाता है। युवतियां नख से शिख तक पहने जाने वाले चांदी के आभूषण, पावों में घुंघरू, हाथों में रंगीन रुमाल लिए गोल घेरा बनाकर मांदल व ढोल, बांसुरी की धुन पर बेहद सुंदर नृत्य करती हैं।

लोकगीतों से माहौल में लोक संस्कृति का एक बेहतर वातावरण बनता जाता है। साथ ही प्रकृति और संस्कृति का संगम हरे-भरे पेड़ों से निखर जाता है।

विदेशों से भी आते हैं भगोरिया देखने –

देश-विदेश से लोग आते हैं। आजकल इन विदेशियों के रहने और ठहरने के लिए प्रशासन द्वारा कैंप की व्यवस्था भी की जाने लगी है। अब तो इस उत्सव में सीसीटीवी कैमरे से नजर रखी जाने लगी है।

आधुनिक हो रहा भगोरिया –

शरीर पर टैटू बनाना, आदिवासी संस्कृति का हिस्सा रहा है, लेकिन पहले जहां अपने नाम और धार्मिक चिह्न बनाए जाते थे, अब डिजाइनर टैटू ने इनकी जगह ले ली है। परंपरागत परिधानों के साथ जींस, टीशर्ट और सूट पहनकर ग्रामीण भगोरिया हाट में पहुंचते हैं।

भगोरिया हाट में पहुंचने वाले युवा मोबाइल फोन में फोटो और वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड भी करते हैं। पिछले दो-तीन सालों में इसका चलन बढ़ गया है।

मालवा-निमाड़ के आदिवासी जिलों मे धार, झाबुआ, खरगोन, आलीराजपुर बड़वानी आदि कई क्षेत्रों के हाट-बाजार मेले का रूप ले लेते हैं और हर तरफ फागुन और प्यार का रंग बिखरा नजर आता है।

जीप, छोटे ट्रक, दोपहिया वाहन, बैलगाड़ी पर दूरस्थ गांव के रहने वाले लोग इस हाट में सज-धज के जाते हैं। कई नौजवान युवक-युवतियां झुंड बनाकर पैदल भी जाते हैं। भगोरिया पर्व का बड़े-बूढ़े सभी आनंद लेते हैं।

ताड़ी पीना और भजिये खाना इस दौरान ग्रामीणजन ढोल-मांदल एवं बांसुरी बजाते हुए ताड़ी पीते और मस्ती में झूमते हैं।

व्यापारी अपने-अपने तरीके से खाने की चीजें- गुड़ की जलेबी, भजिये, खारिये (सेंव), पान, कुल्फी, केले, ताड़ी बेचते, साथ ही झूले वाले, गोदना (टैटू) वाले अपना व्यवसाय करने में जुट जाते हैं।

बड़ा सा ढोल-मांदल बजाते हैं –

हाट में जगह-जगह भगोरिया नृत्य में ढोल-मांदल की थाप, बांसुरी, घुंघरुओं की ध्वनियां सुनाई देती हैं तो बहुत ही मनमोहक दृश्य निर्मित कर देती है। बड़ा ढोल विशेष रूप से तैयार किया जाता है, जिसमें एक तरफ आटा लगाया जाता है।

ढोल वजन में काफी भारी और बड़ा होता है, जिसे इसे बजाने में महारत हासिल हो वही नृत्य घेरे के मध्य में खड़ा होकर इसे बजाता है।

राजनीतिक दलों ने निकाली गेर –

भगोरिया में दोनों प्रमुख दल भाजपा व कांग्रेस ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हुए पारंपारिक रुप से ढोल-मांदल के साथ गेर निकाली। अपनी-अपनी पार्टियों के कार्यकताओं के साथ झंडे भी लेकर भगोरिया में शामिल हुए।

इस भगोरिया का लुत्फ उठाने में अधिकारी वर्ग भी बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं। अपनी ड्यूटी के साथ-साथ भगोरिया का भी आनंद सपरिवार उठाते हैं।



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