…तो क्या मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज का विकल्प तलाशा जा रहा है?


भारतीय जनता पार्टी के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया एक तरह से विजय की शील्ड हैं। पार्टी के शीर्ष नेता कांग्रेस मुक्त भारत चाहते थे और इसके लिए प्रयास भी कर रहे थे। साल 2014 में कही गई इस बात पर लगातार काम तो होता रहा लेकिन इसमें असली कामयाबी साल 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के रूप में मिली है।


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भारतीय जनता पार्टी से जुड़े बहुत से लोगों का अंदाज़ा है कि अब पार्टी प्रदेश नेतृत्व को बदल सकती है यानी संभव है कि प्रदेश के सबसे लोकप्रिय नेता और मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब केंद्र की राजनीति में चले जाएं। हालांकि शिवराज के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री की ज़िम्मेदारी कौन संभालेगा, इसका फ़ैसला लेना बेहद कठिन काम है क्योंकि नौकरशाही पर शिवराज ने अच्छी पकड़ बनाई है और जनता के बीच इतनी लोकप्रियता शायद ही पार्टी के किसी और नेता की हो।

इस बीच भारतीय जनता पार्टी में ज्योतिरादित्य सिंधिया की पैठ लगातार गहरी होती जा रही है और कई भाजपाइयों तक का मानना है कि शायद वे ही भविष्य में मुख्यमंत्री बना दिए जाएं। हालांकि जानकार इसकी संभावना से इंकार करते हैं लेकिन इस बात से इंकार करना उनके लिए भी मुश्किल है कि प्रदेश भाजपा में मौजूदा दौर के नेताओं में ज्योतिरादित्य सिंधिया किसी भी बड़े पद के लिए एक सबसे मज़बूत विकल्प हैं।

सिंधिया की भाजपा में पैठ इतनी गहरी हो रही है कि अब पार्टी अपने ही बनाए नियमों और कानूनों से उन्हें छूट दे रही है। भाजपा की अहम और अंदरूनी बैठकों में नए-नए भाजपाई बने सिंधिया भी शामिल हो रहे हैं। हालांकि वे नए हैं और पार्टी के अंदरुनी संगठनों का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन उनकी स्वीकार्यता में फिलहाल कोई कमी दिखाई नहीं दे रही है।

मध्यप्रदेश में केवल दो साल में ही भाजपा ने वापसी की है और इसका पूरा श्रेय ज्योतिरादित्य सिंधिया को जाता है। यही वजह है कि पार्टी मे उन्हें पूरा महत्व दिया जा रहा है और हर ज़रुरी निर्णय में उनकी राय भी ली जा रही है। पिछले दिनों उन्हें कोर ग्रुप की बैठक में भी शामिल किया गया। इसे लेकर पिछले दिनों प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव से सवाल पूछ लिया गया।

इसके जवाब में राव ने कोर ग्रुप को ही अवैध बताया। उन्होंने कहा कि प्रदेशाध्यक्ष बीडी शर्मा जिस नेता को ज़रूरी समझें उसे बुला सकते हैं। ज़ाहिर है कि संगठन और अपने नियमों को सबसे अहम मानने वाली पार्टी ने सिंधिया को दोनों हाथों से अपना लिया है।

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कुछ महीनों पहले तक सिंधिया के इस निर्णय पर सवाल भी उठ रहे थे और लोगों को आशंका थी कि उन्हें बहुत जल्द विधानसभा चुनावों में ही इसका असर भी देखने को मिल जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सिंधिया कमज़ोर नहीं हुए। भले ही उनके कुछ करीबी चुनाव हार गए, लेकिन इससे सिंधिया पर खास असर नहीं पड़ा। उनका साथ मिलने के बाद भाजपा भी खुद को ग्वालियर चंबल क्षेत्र में मज़बूत महसूस कर रही है।

भारतीय जनता पार्टी के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया एक तरह से विजय की शील्ड हैं। पार्टी के शीर्ष नेता कांग्रेस मुक्त भारत चाहते थे और इसके लिए प्रयास भी कर रहे थे। साल 2014 में कही गई इस बात पर लगातार काम तो होता रहा लेकिन इसमें असली कामयाबी साल 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के रूप में मिली है।

ज्योतिरादित्य सिंधिया भी पार्टी भारतीय जनता पार्टी में पूरी तरह घुल गए हैं। वे संगठन में नीचे से लेकर उपर तक लगातार सक्रिय हैं। वे कार्यकर्ताओं की बैठक में शामिल हो रहे हैं तो अपने इलाकों में जाकर भाजपा को लगातार मज़बूत करने के लिए भी काम कर रहे हैं। सिंधिया के साथ अब तक हज़ारों की संख्या में कांग्रेसी अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं। यही वजह रही कि कांग्रेस कमज़ोर होती रही।

हालांकि सिंधिया के जाने से कांग्रेस को अपनी कमज़ोरियां भी नज़र आईं और उन्होंने अपनी इन कमज़ोरियों पर गौर करना भी शुरू किया है। मौजूदा माहौल में कांग्रेस ज्यादा सक्रिय नज़र आ रही है। ग्वालियर चंबल इलाके में नए कांग्रेसियों के लिए संभावनाएं नज़र आ रहीं हैं। ऐसे में बहुत से नेताओं का मानना है कि सिंधिया का कांग्रेस से भाजपा में जाना दोनों ही पार्टियों के लिए बेहतर भी साबित हो सकता है।

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