पहलवानों का प्रदर्शनः जवाब नहीं, जनादेश का इंतजार कीजिए


क्या आंदोलन कर रहे खिलाड़ियों से भी सरकार वैसे ही निपटेगी जैसे किसानों और शाहीन बाग के आंदोलनकारियों से निपटा गया? या हिंडनबर्ग और ईडी के दुरुपयोग के आरोप की तरह इसे भी अनदेखा कर दिया जाएगा?


wrestlers protest

महिला पहलवानों ने भारतीय कुश्ती संघ (IWF) के प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया। आरोपियों में एक नाबालिग महिला खिलाड़ी भी शामिल बताई गई। इसके बावजूद दिल्ली पुलिस ने महिला खिलाड़ियों की रिपोर्ट दर्ज नहीं की। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई।

संगीन आरोप लगने के बावजूद बृजभूषण शरण सिंह अपने पद पर बने रहे। इस दौरान वह खिलाड़ियों की मंशा पर सवाल खड़े करते रहे। उन्होंने इसे एक बड़े व्यापारी और एक राज्य के अखाड़े विशेष के खिलाड़ियों की साजिश बताया। आरोपी होने के बावजूद बृजभूषण शरण सिंह ने आरोप लगाने वालों को ही कटघरे में खड़ा करने की पूरी कोशिश की।

क्या यह सर्वे है खिलाड़ियों के आरोपों का जवाब –

इस दौरान जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे खिलाड़ियों को बलपूर्वक वहां से हटाया गया। सरकार और पुलिस की ओर से कोई कार्यवाही न होता देख खिलाड़ी निराश हुए। उन्होंने उस सम्मान को गंगा में विसर्जित करने का फैसला किया जिसकी वजह से उनकी पहचान बनी थी। हालांकि, मेडल बहाने के पहले कुछ संगठनों के कहने पर उन्होंने अपने फैसले को टाल दिया।

इतना सब होने के बावजूद सरकार के किसी मंत्री या प्रधानमंत्री ने इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया देना तक उचित नहीं समझा। संकेत साफ है कि सत्ताधारी दल को पिछले नौ साल में हुए आंदोलन और विरोध के बावजूद चुनावों में कोई खास नुकसान नहीं हुआ है। इसका प्रमाण है हाल ही में हुआ सीएसडीएस और लोकनीति का सर्वे।

सीएसडीसी और लोकनीति के सर्वे में लोगों से सवाल पूछा गया कि प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी पहली पसंद कौन है। इसके जवाब में 2014 में 35%, 2019 में 44% और 2023 में 43% लोगों ने मोदी को पहली पसंद बताया। यानी, सर्वे भी यह बताता है कि चाहे जितना विरोध हो, मोदी की लोकप्रियता पर कोई असर नहीं पड़ता।

आंदोलन तो किसानों ने भी किया था –

मोदी सरकार के पिछले नौ साल के शासन के दौरान सरकार को तीन बड़े आंदोलनों का सामना करना पड़ा है। कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन। यह आंदोलन एक साल से भी ज्यादा चला। कई किसानों की जान गई। अंत में एक दिन अचानक मोदी जी सामने आए और कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी।

माना जा रहा था कि इस आंदोलन का पंजाब और यूपी के विधानसभा चुनावों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। पंजाब में तो बीजेपी को 117 में से केवल दो सीटें मिलीं, लेकिन यूपी में 403 में से 255 सीटों पर जीत मिली। योगी आदित्यनाथ दूसरी बार सरकार बनाने में सफल हुए। बीजेपी को संदेश मिल चुका था।

कृषि कानूनों का विरोध करने वाले पूरी ताकत लगाने के बावजूद बीजेपी को सत्ता से बाहर नहीं कर सके। यूपी के बाद गुजरात, उत्तराखंड और पूर्वोत्तर के चुनाव नतीजे बीजेपी के पक्ष में रहे। बीजेपी यह स्थापित करने में सफल रही कि मोदी जी को मौके पर चैाका मारना आता है।

प्रदर्शन तो शाहीन बाग में भी हुए थे –

दूसरा मौका किसान आंदोलन से पहले का है। सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पास किया। इस बार कानून के विरोध की शुरुआत पूर्वात्तर से हुई। धीरे-धीरे विरोध का दायरा बढ़ता गया। दिल्ली का शाहीन बाग इस कानून के विरोध का सिंबल बन गया।

इस दौरान कोरोना महामारी के चलते आंदोलन धीरे-धीरे सुस्त पड़ गया। सरकार ने कानून तो वापस नहीं लिया, लेकिन इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। इस विरोध का भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर कोई खास असर होता नहीं दिखा।

रिपोर्ट तो हिंडनबर्ग की र्भी आई थी –

तीसरा मौका हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद आया। इस रिपोर्ट में अडानी ग्रुप पर अनियमितता का आरोप लगा। कांग्रेस सहित विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाने की कोशिश की। संसद का पूरा शीतकालीन सत्र इस विवाद की भेंट चढ़ गया। सरकार ने जेपीसी गठित करने की विपक्ष की मांग नहीं मानी।

इस दौरान अडानी मामले में सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करने वाले कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मानहानी मामले में दोषी मानते हुए सूरत कोर्ट ने दो साल की सजा सुना दी। इस फैसले के साथ ही राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता भी जाती रही। इस घटना से क्या संदेश मिलता है, यह बताने की जरूरत नहीं है।

आरोप तो ईडी-सीबीआई के दुरुपयोग का भी लगा था –

चैाथी वजह सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स विभाग बना। इंडियन एक्सप्रेस अखबार में खबर छपी कि 2004 से 2014 के बीच ईडी ने कुल 26 नेताओं के खिलाफ मामले दर्ज किए जिसमें 54% नेता विपक्षी पार्टियों के थे।

वहीं, 2014 के बाद दर्ज हुए 121 में से 115 मामले विपक्षी पार्टियों के नेताओं पर दर्ज किए गए। यानी, कुल दर्ज मामलों में 95% मामले विपक्ष के नेताओं पर दर्ज किए गए। सत्ता पक्ष के केवल 5 नेताओं के खिलाफ ईडी ने मामला दर्ज किया।

केंद्र सरकार पर ईडी, सीबीआई और आईटी जैसी संस्थाओं के दुरुपयोग का आरोप लगा। विपक्ष की 14 पार्टियों ने ईडी के दुरुपयोग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। विपक्ष को जवाब देते हुए मोदी सरकार ने भ्रष्टाचारियों के एकजुट होने की बात कहते हुए विपक्ष को ही कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की। समय के साथ यह मामला भी ठंडा पड़ गया।

जवाब नहीं, जनादेश का कीजिए इंतजार –

क्या यही वजह है कि मोदी सरकार किसी भी विरोध और आंदोलन को आसानी से अनदेखा कर देती है? क्या सरकार को जनभावनाओं से ज्यादा अपनी जीत और मोदी की लोकप्रियता पर भरोसा है? या सरकार की इस बेरुखी की कोई और वजह है? जब तक सरकार इन सवालों का जवाब नहीं देती तब तक तो कयास ही लगाए जा सकते हैं।

यह अलग बात है कि नए संसद भवन के उद्घाटन के दिन खिलाड़ियों पर पुलिस कार्यवाही की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल रहीं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खिलाड़ियों के साथ हो रहे व्यवहार की आलोचना हो रही है। सरकार की चुप्पी पर भी सवाल उठ रहे हैं। इन सबके बावजूद क्या सरकार खिलाड़ियों से कोई सीधी बात करेगी?

क्या आंदोलन कर रहे खिलाड़ियों से भी सरकार वैसे ही निपटेगी जैसे किसानों और शाहीन बाग के आंदोलनकारियों से निपटा गया? या हिंडनबर्ग और ईडी के दुरुपयोग के आरोप की तरह इसे भी अनदेखा कर दिया जाएगा? देखना होगा कि सरकार इन सवालों के जवाब खुद देती है या 2024 के जनादेश तक जनता के जवाब का इंतजार करती है।