सिंधिया के लिए ‘कल और कुल’ बचाने का चुनाव


कांग्रेस में वे कुछेक नेताओं में से एक थे और कहा जाए तो प्रदेश के सबसे मजबूत युवा चेहरे थे लेकिन भाजपा में नेताओं की एक बड़ी कतार या कहें तो भीड़ है। ऐसे में सिंधिया को अचानक आगे लाने पर यह भीड़ कितने दिनों तक अपनी महत्वकांक्षाएं दबा सकेगी और खुद सिंघिया भी इस भीड़ में कैसे आगे निकल पाएंगे यह देखना दिलचस्प होगा।


DeshGaon
अपनी बात Updated On :

प्रदेश के उपचुनावों में कई नेताओं का भविष्य दांव पर है। इनमें से कुछ ऐसे हैं जो अपनी राजनीति शुरु कर रहे हैं तो कुछ ऐसे भी जो बहुत कुछ पाकर अपनी राजनीति के आखिरी दौर में हैं। इस बीच कुछ वे भी हैं जिन्हें कम समय में बहुत कुछ मिला लेकिन उन्हें अभी बहुत समय और भी गुजारना है। इसी श्रेणी में ज्योतिरादित्य सिंधिया भी आते हैं जिन्होंने अपने राजनीतिक जीवन का एक बड़ा जुआ भाजपा के साथ आकर खेला है।

सिंधिया ने अपने 18 साल के राजनीतिक जीवन में शायद इससे मुश्किल समय नहीं देखा है। लोकसभा चुनावों में अपने ही एक पुराने कार्यकर्ता के हाथों हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद से ही सिंधिया ने मप्र में कांग्रेस सरकार लाने और फिर उसी सरकार को गिराने में पूरा योगदान दिया है।

अपनी पुरानी पार्टी की सरकार इस तरह गिराकर ज्योतिरादित्य को खासा विरोध भी झेलना पड़ रहा है। कभी कभार उनकी चुनावी रैलियों में यह विरोध देखने को भी मिल जाता है। उन्हें गद्दार, बेईमान, बिकाउ और न जाने कौन कौन से शब्दों से संबोधित किया जा रहा है।

भाजपा के नेता भले ही उनके साथ कितनी भी मजबूती से खड़े नजर आएं लेकिन इन आरोपों से सिंधिया को अकेले ही लड़ना है क्योंकि ये हमले उनकी पिछली पीढ़ियों तक भी जा रहे हैं।

अपने मेनिफेस्टो यानी चुनावी वचन पत्र में कांग्रेस ने ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा और स्मारक बनवाने का भी वादा किया है। यह सिंधिया के कुल पर भी हमला होगा। हालांकि सिंधिया कहते हैं कि भाजपा में आने के पीछे उन्होंने अपनी आत्मा की सुनी है।

कांग्रेस पार्टी से सिंधिया के सर्मथक और उसके असंतुष्ट धीरे-धीरे भाजपा में जा रहे हैं। इनकी संख्या रोजाना ही बढ़ रही है। इसे भाजपा में सिंधिया की ताकत के रुप में देखा जाना चाहिए था लेकिन शायद भाजपाई ऐसा नहीं सोचते। पार्टी के कई नेताओं की राय में उनके पास आ रहे इन नेताओं के पास अब भाजपा के अलावा कोई और विकल्प का न होना इसकी वजह है।

सिंधिया का भविष्य क्या होगा यह उपचुनाव ही तय करेगा लेकिन यह तय है कि भारतीय जनता पार्टी में उनकी पहचान वैसी नहीं होगी जैसी कांग्रेस में हुआ करती थी। जहां हर बार उनकी एंट्री किसी बड़े फिल्म स्टार की तरह होती थी। वे कांग्रेस के पोस्टर बॉय थे उनकी ये स्थिति वर्षों तक तकरीबन एक सी ही बनी रही।

कांग्रेस में वे कुछेक नेताओं में से एक थे और कहा जाए तो प्रदेश के सबसे मजबूत युवा चेहरे थे लेकिन भाजपा में नेताओं की एक बड़ी कतार या कहें तो भीड़ है। ऐसे में सिंधिया को अचानक आगे लाने पर यह भीड़ कितने दिनों तक अपनी महत्वकांक्षाएं दबा सकेगी और खुद सिंधिया भी इस भीड़ में कैसे आगे निकल पाएंगे यह देखना दिलचस्प होगा।

भाजपा सिंधिया को अपनी सरकार बनाने के लिए जिम्मेदार तो जरूर मानती है लेकिन उन्हें उतना बड़ा स्टार नहीं मानती। यही वजह है कि पार्टी प्रचार में सिंधिया का नाम कम ही प्रयोग कर रही है। रथ कहे जाने वाले भाजपा के चुनाव प्रचार वाहनों में भी सिंधिया की तस्वीर नहीं है।

भाजपा के कार्यालय में भी तकरीबन यही हाल है और स्टार प्रचारकों की सूची में सिंधिया दसवें नंबर पर हैं जबकि उनके पहले बहुत से कम नामचीन नेता इस सूची में मौजूद हैं। ऐसे में उपचुनावों के बाद सिंधिया भाजपा में कितने महत्वपूर्ण होंगे यह फिलहाल कहना मुश्किल है।

सिंधिया का सबसे मजबूत इलाका ग्वालियर चंबल का उनका क्षेत्र है। जहां सबसे ज्यादा सोलह सीटों पर उपचुनाव होने हैं। यहां उनकी लोकप्रियता गजब की है लेकिन अब उनकी चुनावी सभाओं में आने वाले लोगों में कुछ अंतर आया है।

अब इन सभाओं में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता भी शामिल होते हैं। ये कार्यकर्ता सिंधिया को बड़ा नेता तो मानते हैं लेकिन ये सभी भाजपा के वरिष्ठ नेताओं नरेंद्र सिंह तोमर, जयभान सिंह पवैया, नरोत्तम मिश्रा और प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा के कट्टर सर्मथक भी हैं।

ऐसे में सिंधिया की सभाओं में जुटने वाली भीड़ अब केवल उनके लिए नहीं है बल्कि उसमें इन नेताओं की लोकप्रियता भी घुली हुई है। जिन्होंने वर्षों तक सिंधिया परिवार के राज को चुनौती देकर  राजनीति में अपनी जगह बनाई  है। वहीं सिंधिया ने अपने इलाकों में वर्षों तक कांग्रेस में कोई दूसरा नाम बढ़ने नहीं दिया। ऐसे में वे कांग्रेस से तो यहां सुरक्षित हैं लेकिन भाजपा से होंगे या नहीं या समय बताएगा।

Picture source: Scindia’s Twitter account

इस बीच चुनावी प्रचार की बात करें तो  कांग्रेस भी सिंधिया को परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है। पार्टी ने उनके और उनके साथ गए बाईस विधायकों पर तीखे हमले बोले हैं। अब कांग्रेस अपने प्रचार अभियान में जनता की भावनाओं को भी उकसाने की तैयारी कर रही है।

प्रचार अभियानों में भाजपा को लेकर सिंधिया के पुराने बयान भी दिखाए और बताए जा रहे हैं। जिनमें भाजपा के प्रति उनकी राय आज से बिल्कुल अलग नजर आती है। कांग्रेस सिंधिया को एक बेहद ही अवसरवादी राजनीतिज्ञ सिद्ध करने पर तुली है।

सिंधिया भले ही चुनाव न लड़ रहे हों लेकिन कांग्रेस पार्टी उपचुनावों में भाजपा के प्रत्याशियों का नहीं बल्कि सिंधिया का ही जिक्र कर रही है और उन पर जयचंद जैसे शब्दों से हमला कर रही है।

सिंधिया की सभाओं के दौरान उन्हें लोगों के सवालों का भी सामना करना पड़ रहा है। जिसे कांग्रेसी जमकर प्रचारित कर रहे हैं। सिंधिया इन दिनों अपनी सभाओं में जहां कांगेसी नेताओं खासकर कमलनाथ की खूब नकल उतारते हुए उनका मजाक बना रहे हैं तो वहीं कांग्रेसी भी इन्हीं वीडियो का मीम बनाकर जनता के बीच फैला रहे हैं।

मध्यप्रदेश की राजनीति और सिंधिया को जानने वाले जानते हैं कि उनका रवैया पूरी तरह सामंती है। वे आज भी खुद को श्रीमंत कहलवाना ही पसंद करते हैं और कार्यकर्ताओं के साथ उनका रवैया भी इसी तरह का होता है। हालांकि इस सब के बावजूद अब तक सिंधिया के साथ खड़ी रही कांग्रेस अब उन्हें सामंतशाही का प्रतीक बनाकर भी पेश कर रही है।

http://

इसे लेकर सिंधिया पर व्यक्तिगत हमले भी जमकर हो रहे हैं। हालांकि सिंधिया खुद ही अपनी प्रजा रूपी कार्यकर्ताओं से ये कहते सुने गए हैं कि यह चुनाव जनता का नहीं है यह महराजा सिंधिया का चुनाव है। सिंधिया की यह सामंती स्वीकारोक्ति यह बताने को काफी है कि उपचुनाव में अगर किसी के पास सबसे ज्यादा खोने को है तो वे महराज सिंधिया ही हैं।







ताज़ा खबरें