दर्द से तड़पते बेटे को ठेले पर अस्पताल लेकर गई मां और जब इलाज नहीं मिला तो ठेले पर ही लेकर लौटी लाश


मौत के बाद भी परिजन  शव को हाथ ठेले पर ही ले गये घर


शिवेंद्र शुक्ला शिवेंद्र शुक्ला
उनकी बात Published On :

प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था एक इस कदर बदहाल हैं इसकी तस्वीरें आए दिन देखी जा सकती हैं। अब एक और तस्वीर बुंदेलखंड के छतरपुर जिले की बकस्वाहा इलाके से आ रही है जो सरकार और स्वास्थ्य विभाग के लिए शर्म का सबब बन गई है।

यहां सामुदायिक स्वास्थ्य छतरपुर जिले के बक्सवाहा में एक परिवार के सदस्य को उसकी मां, और पत्नी हाथ ठेले पर लिटाकर पैदल ही अस्पताल ले जाना पड़ा। जहां मरीज की मौत हो गई और फिर परिवार को वापस इसी तरह सब ठेले पर लाना पड़ा।

मामला बक्सवाहा क्षेत्र के वार्ड नंबर 14 का है जहां जशोदा बंसल अपने बेटे महेंद्र बंसल का इलाज कराने के लिए हाथ ठेला से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंची। जशोदा ने बताया कि हमारे बेटे की पीठ में एक बड़ा ट्यूमर है जिसका इलाज जबलपुर मेडिकल कॉलेज में होना है कुछ दिन पहले जब हम बक्सवाहा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे तो इलाज के दौरान दमोह रेफर कर दिया गया।

उन्होंने बताया कि दमोह में इलाज ना होने के कारण हमें जबलपुर मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया। इलाज के लिए आयुष्मान कार्ड भी लगाया गया लेकिन अस्पताल के डॉ ने आयुष्मान कार्ड का उपयोग ना समझते हुए हम लोगों का बिना इलाज किए ही अस्पताल से बाहर कर दिया और कहा कि आप के मरीज का ऑपरेशन नहीं हो सकता।

जशोदा बंसल के मुताबिक अगर आपको ऑपरेशन करवाना है तो आप पैसों की व्यवस्था करिए हम निर्धन परिवार के लोग कहां जाएं और अपनी व्यथा किसको सुनाएं। उन्होंने कहा कि हमारे बेटे महेंद्र बंसल का ट्यूमर सुबह अचानक फूट गया जिस कारण से उसको घबराहट के साथ-साथ काफी दर्द महसूस होने लगा जिसके बाद हमने कई बार 108 को कॉल किया लेकिन फोन नहीं लगा।

पैसे के अभाव में मां ने बेटे की तकलीफ देखकर वह खुद ही  मोहल्ले में रखे हाथ ठेले को उठाकर अपने बेटे को लिटा कर पैदल अस्पताल की ओर चल पड़ी और करीब एक किलोमीटर का सफर तय कर अस्पताल पहुंची जहां डॉ आसाटी और कम्पोन्डर सचिन ठाकुर द्वारा यथा संभव इलाज किया लेकिन बकस्वाहा मे प्राथमिकी इलाज के बाद दमोह रिफर कर एम्बुलेंस का इन्तजार किया जा रहा था तब तक मेरे बेटे ने दम तोड़ दिया।

इस मामले में बीएमओ डॉ ललित उपाध्याय ने बताया कि उनके परिवार के द्वारा शव वाहन की मांग नहीं की गई, जैसे ही हमें जानकारी लगी वैसे ही शव वाहन की व्यवस्था कराई गई, शव वाहन आने से पहले ही परिजन शव को  हाथ ठेले से ले जा चुके थे।



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