कभी सोने सा दमकता था छतरपुर का पीतल उद्योग, सरकार की बेरुखी से मंद पड़ी चमक


पीतल के बर्तन बनाने का यह लघु उद्योग सरकारी मदद के अभाव में लगातार सिमटता जा रहा है।  सरकार ने वर्ष 2019 में योजना बनाने का ऐलान किया था लेकिन पिछले डेढ़-दो वर्षों में इस दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं हो सके।


शिवेंद्र शुक्ला शिवेंद्र शुक्ला
उनकी बात Updated On :

छतरपुर। छतरपुर का पुराना लघु उद्योग पीतल के बर्तनों का कारोबार हर साल सिमटता जा रहा है। 10 साल पहले तक शहर के तमरयाई मोहल्ले में लगभग 300 परिवार बर्तनों के कारोबार से जुड़े थे लेकिन अब बमुश्किल 50 परिवार ही इस काम को कर रहे हैं।

पीतल के बर्तन बनाने का यह लघु उद्योग सरकारी मदद के अभाव में लगातार सिमटता जा रहा है।  सरकार ने वर्ष 2019 में योजना बनाने का ऐलान किया था लेकिन पिछले डेढ़-दो वर्षों में इस दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं हो सके।

अब विधानसभा में एक प्रश्न का जवाब देते हुए मप्र सरकार के मंत्री ओमप्रकाश सकलेचा ने कहा है कि सरकार इस दिशा में काम कर रही है और जल्द ही छतरपुर के पीतल से निर्मित बर्तनों को सरकारी माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रमोट किया जाएगा।

परंपरागत काम छोड़ रहे बर्तन निर्माता

तमरयाई मोहल्ले में बर्तनों के कारोबार से जुड़े राकेश ताम्रकार ने बताया कि शहर के इस हिस्से में पहले लगभग 300 परिवार इस कारोबार के माध्यम से अपना भरण-पोषण करते थे अब मुश्किल से 50 परिवार ही इस काम को कर रहे हैं।

इसकी वजह पीतल के बर्तनों की मांग का कम होना है। इसके साथ ही जीएसटी आने के बाद कच्चे माल की खरीदी और विक्रय पर 5 फीसदी की जगह 12 से 18 फीसदी तक टैक्स का लग रहा है। लिहाज़ा मुनाफा काफी घट चुका है। राकेश ताम्रकार बताते हैं कि इन्हीं वजहों के चलते अब पीतल बर्तन निर्माता अपने परंपरागत काम को छोड़कर दूसरे काम कर रहे हैं।

प्लास्टिक और स्टील ने छीन लिया रोजगार 

पीतल बर्तन निर्माता संजय ताम्रकार बताते हैं कि 10 साल पहले तक लोग पीतल के बर्तनों को घरों में रखते थे। इनका इस्तेमाल भी करते थे। अब प्लास्टिक और स्टील का चलन बढऩे से रोजमर्रा में पीतल और तांबे के बर्तनों का इस्तेमाल बेहद कम हो गया है।

पीतल के बर्तन अब सिर्फ शादी में उपहार स्वरूप ही दिए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि बर्तन निर्माण पर मिलने वाली मजदूरी भी सिर्फ 30 रूपए किलो मिलती है जिससे कारीगरों को परिवार पालने में दिक्कत होती है।

दुकानदार ज्यादा मुनाफा चाहते हैं और छोटे कारीगरों को ज्यादा आमदनी नहीं हो रही है ऐसे में वे अपनी यह कला छोड़कर रोटी कमाने के लिए दूसरे काम करते हैं।

सरकार ने नहीं किया सहयोग

बर्तन कारोबारी राकेश ताम्रकार बताते हैं कि सरकार इस लघु उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं करती है। कारीगरों को मशीनें खरीदने के लिए लोन दिया जाता है लेकिन चल संपत्ति के रूप में लोन न मिलने से वे माल की खरीदी और बिक्री नहीं कर पाते। हमारे लिए अलग से भूखण्ड आदि नहीं दिए जाते जिससे कि इस कारोबार को नई पीढ़ी बढ़ावा दे पाए।

सरकार की योजना से बदल सकते हैं दिन 

मप्र सरकार ने छतरपुर के परंपरागत पीतल उद्योग को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2019 में एक साल की कार्ययोजना तैयार की थी। इस कार्ययोजना के तहत दावा किया गया था कि सरकार छतरपुर में बनने वाले पीतल के बर्तनों को ई कॉमर्स कंपनियों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रमोट करेगी। हालांकि सरकार ने विगत रोज विधानसभा में इस वादे को फिर से दोहराया और कहा कि इस दिशा में तेजी से काम किया जा रहा है। जल्द ही इसका लाभ नजर आएगा।



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