बुंदेलखंड: दबंगों के साथ पुलिस के भी डर में जी रहा पत्रकार का परिवार, अपने ही अपहरण के बाद भी खुद पर ही है FIR


उत्तर प्रदेश पुलिस के दरोगा का न्याय, पीड़ित पक्ष पर ही कर दी एफआईआर


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उनकी बात Updated On :

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश पुलिस के कामकाज पर अक्सर सवाल उठते रहते हैं। न्याय की अवधारणा पर ऐसे ही सवाल उठाने वाला एक मामला फिर सामने आया है। जब पुलिस ने एक व्यापारी के अपहरण के मामले को तेजी से सुलझाने का दावा किया और अपने तेज कामकाज का परिचय दिया लेकिन दो दिन बीतते ही मामला बदल दिया। जिस व्यापारी के अपहरण की रिपोर्ट में पुलिस ने चार लोगों को आरोपी बनाया था अब उन्हीं आरोपियों की रिपोर्ट पर पुलिस ने व्यापारी और उनके बेटे पर मारपीट की धाराएं लगा दी हैं। ये व्यापारी अब परेशान हैं कि क्योंकि अब उन्हें न केवल उन अपराधियों से खतरा है बल्कि पुलिस से भी है।

बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले के राठ नाम के कस्बे में 7 जून को यह घटना हुई। बिल्डिंग मटेरियल सप्लायर शिव कुमार गुप्ता को एक चौराहे से दिन के ग्यारह बजे उनके वाहन से जबरदस्ती उतारकर चार लोगों द्वारा अपनी गाड़ी में बैठा लिया गया। इसके बाद गुप्ता के साथ करीब दो घंटे तक मारपीट की गई। घटना सरेबाजार हुई थी तो इसकी खबर फैलते देर नहीं लगी। खबर गुप्ता के पत्रकार बेटे अमन तक भी पहुंची जो खुद पेशे से पत्रकार हैं और एक रोज पहले ही दिल्ली गए हुए थे।

जिले की एसपी दीक्षा शर्मा ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और कुछ ही देर में अब तक शिथिल दिखाई दे रही स्थानीय पुलिस सक्रिय हो उठी। हालांकि इस सब की खबर अपहरण करने वालों तक भी पहुंच गई थी। अब तक वे गुप्ता को करीब दो घंटे तक पीटते रहे थे और लखनऊ की किसी बड़ी कार्रवाई से घबराकर उन्होंने गुप्ता को लगभग अधमरी हालत में थाने के सामने पटक दिया। इस दौरान वहां मौजूद लोग पुलिस से ज्यादा सक्रिय थे। जिन्होंने मुख्य आरोपियों में से एक मोहर सिंह उर्फ बाबा को पकड़ लिया और पुलिस को सौंप दिया।

स्थानीय पुलिस के अधिकारियों ने इस मौके का तुरंत फायदा उठाया और इसे अपनी कामयाबी बता दी। कहा गया कि पुलिस ने दो घंटे में ही अपरहणकर्ताओं से गुप्ता को बचा लिया है और एक आरोपी भी पकड़ लिया है जबकि तीन फरार है। यह खबर स्थानीय स्तर पर खूब देखी-पढ़ी गई।

इस विषय पर अलग-अलग प्लेटफार्म पर कई खबरें प्रकाशित हुईं।

इसके बाद से करीब 48 घंटों तक पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की और बाकी आरोपी फरार रहे। इस दौरान गुप्ता के परिवार के लोग कई बार पुलिस के पास जाकर मिलते रहे लेकिन बदले में उन्हें पुलिस से अकड़ में ही जवाब मिला। आरोपियों की ओर से भी लोग थाने पहुंचने लगे।

पुलिस के मुताबिक उन्हें बताया गया आरोपियों ने दो दिन पहले गुप्ता की दुकान से अपना कुछ सामान उठाने में मदद के लिए कुछ मजदूर मांगे थे लेकिन मजदूर उपलब्ध न होने के कारण दुकान पर मौजूद अमन गुप्ता उनकी मदद नहीं कर सके और यही बात मोहर सिंह को ठीक नहीं लगी और उन्होंने अमन से गालीगलौज कर हाथापाई की। इस झूमाझटकी के बाद लगा की बात खत्म हो गई लेकिन गुप्ता परिवार को अंदाज़ा नहीं था कि व्यापारिक स्तर पर हुआ यह अव्यवहारिक झगड़ा इस तरह से उनकी जान पर बन आएगा। इस बीच गुप्ता परिवार के मुताबिक उन पर समझौते के लिए लगातार दबाव डाला जा रहा है और ऐसा न करने पर गंभीर परिणाम की धमकी दी जा रही है।

इसे लेकर पीड़ित अमन गुप्ता का कहना है कि पुलिस उनके पिता का अपहरण करने वाले मोहर सिंह को बचा रही है। उस पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं लेकिन निशाना हमें बनाया जा रहा है।

इस मामले में थाना इंचार्ज भरत कुमार से कई बार बात करने की कोशिश की गई लेकिन उन्होंने कहा कि यह दो तरफ़ा झगड़ा है और गुप्ता परिवार के व्यवहार के कारण मोहर सिंह ने यह कदम उठाया। खुद ही अपहरण का मामला दर्ज करने वाले ये अधिकारी दो दिन बाद यह भी कहते पाए गए कि यह अपहरण नहीं था एक झगड़ा था। थाना इंचार्ज ने बताया कि अपहरण के आरोपी भी संभ्रांत परिवार से हैं और अच्छे आदमी हैं उन पर पूर्व में कोई मामला दर्ज नहीं है।

इसके उलट गुप्ता परिवार का कहना है कि आरोपी मोहर सिंह पर जिले के अलग-अलग थानों में हत्या, लूटपाट, मारपीट के तहत कई मामले दर्ज हैं। जबकि पुलिस इस मसले को सामान्य विवाद बता रही है।

शनिवार, 10 जून, दैनिक भास्कर समाचार पत्र में प्रकाशित समाचार

एसएचओ द्वारा देशगांव को दिए इस बयान के बाद अपहरण किये गए और मारपीट के शिकार व्यापारी शिव कुमार गुप्ता और उनके बेटे पर मारपीट की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया। इसकी शिकायत अपहरण करने वाले आरोपी मोहर सिंह की पत्नी संतोष रानी ने की गई। इसके बाद दर्ज एफआईआर में गुप्ता और उनके बेटे पर धारा 323, 504 और 506 के तहत मामला दर्ज किया गया है।

इस बारे में जब दोबारा एसएचओ से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अपहरण का इकतरफा मामला नहीं बनता था। इसके बाद अधिकारी ने किसी सवाल-जवाब का मौका नहीं दिया और फोन काट दिया।

ऐसे में समझना मुश्किल नहीं कि एक जिले की एसपी ने जिस मामले को गंभीरता से लेकर हल करने के लिए कहा उसी जिले के उनके ही एक कनिष्ठ अधिकारी ने मामले को इस कदर उलझा दिया कि पीड़ित परिवार ही यहां आरोपी दिखाई दे रहा है। परिजन खुलकर तो कुछ भी नहीं बोल रहे हैं लेकिन उन्हें डर है कि अब उन पर मामला वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा है। एसएचओ की यह कार्रवाई यह भी सवाल उठाती है कि क्या मामूली कहा सुनी पर प्रदेश में किसी को किसी का अपहरण करने और उसके साथ बेदर्दी से मारपीट करने की भी छूट मिल रही है। स्थानीय थाना प्रभारी फिलहाल अपनी ओर से पीड़ित को आरोपी बता चुके हैं।



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